सपनो का सच होना! यानी अच्छे दिन का आना…

Beyond Headlines
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Pravin Kumar Singh for BeyondHeadlines

क्रान्तिकारी कवि अवतार सिंह ‘पाश’ कह गये है ‘सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना…’ सपना देखने का हक़ सबको है. देखना भी चाहिए. इसको देखने में कोई टिकट नहीं लगता है.

बचपन से फिल्म देखने का शौक रहा. फिल्मों में अकेले इंस्पेक्टर को ढेर सारे गुण्डों से ढिसुम-ढिसुम करते देखकर इंस्पेक्टर बनने का सपना देखता था.

जवान हुआ तो हीरो का अभिनय देखकर अभिनेता बनने का सपना देखने लगा. कभी-कभी सपने में किसी हिरोईन के साथ होता तो खुशनुमा एहसास सपना टूटने के बाद भी बना रहता. मेरे हम-उम्र दोस्त भी पुलिस इंस्पेक्टर बनकर गुण्डो को मारने की बात करते. हम ज्यादातर बच्चे खेल में इंस्पेक्टर ही बनना चाहते थे. खलनायक कलाकार को घृणा से देखते थे.

कम्बख्त जवानी के दहलीज़ पर क़दम रखने के बाद इंस्पेक्टर बनने का ख्वाब पीछे छूट गया. हीरो बनने का ख्वाब आने लगा. कोई दिलीप कुमार की बातें करते हुए उनका नकल करता तो कोई ‘प्यार से लोग मुझे देवानन्द कहते है’ डॉयलाग तकिया कलाम की तरह बड़बड़ाता रहता. ‘प्रेम से लोग मुझे प्रेम चोपड़ा कहते है’ डॉयलाग बोलने वालों की भी कमी नहीं थी.

हर कोई राजेश खन्ना, धर्मेन्द्र, अमिताभ बच्चन बनने का सपना देखता. हीरो की तरह जुल्फ रखना, पतलून पहनना, चश्मा, घड़ी, सेन्ट-परफ्यूम लगाकर नकल करते थे. सब का नाम भी हीरो के नाम पर पड़ गया था. किसी को देवानन्द, हीरो हीरा लाल, प्रेम चोपड़ा कहके पुकारा जाता था. ये सुनकर कॉलेज की लड़किया भी लड़को को कभी-कभी इन्हीं नामो से मुस्कुराते हुए पुकार लेती. ये सुनकर लड़के खुश होकर लाल टमाटर हो जाते.

कुछ लड़के क्रिकेट के भी दीवाने थे वे अज़हरूद्दीन और सचिन बनना चाहते थे. समय के साथ-साथ सपने भी पीछे छूट गये. मेरे दोस्तो में न कोई इंस्पेक्टर बन सका न सुपरस्टार और न क्रिकेटर…

अलबत्ता कुछ गली-मोहल्ले की दादागिरी करते हुए नेता बन गये. फिर क्या मंत्री-संत्री बनके समाज सेवा कर रहे है, बदले में मेवा का क्या पूछना…

सपना किसी धर्म में न हराम है न विधर्म और न किसी धारा के विपरीत है. वामपंथी समाजवाद का सपना देखते है और दक्षिणपंथी आर्यावर्त बनाने का सपना देखते हैं. वामपंथिओ से पूछे तो समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे आई गीत गुनगुनाने लगते हैं. दक्षिणपंथियों से पूछे तो तल्ख होकर बोलते हैं –हिन्दू जागेगा, देशद्रोही का खात्मा होगा, फिर आर्यावर्त…..

मेरा अच्छे दिन का सपना कब पूरा होगा कोई नहीं बताता. जिससे अपनी समस्या बताओ वहीं एक और सपना दिखाने लगता है. मतलब सपनों में भारी वृद्धि…

बचपन खत्म जवानी आया साथ में कई सारी मुसीबतें लाया. एक अदद नौकरी की ज़रूरत हुई. जो वैकेन्सी निकलती फार्म भर कर सपने देखने लगता कि नौकरी लग गयी कल ज्वाइन करना है. न नौकरी मिली न वह कल आया. नौकरी का सपना आना अपने आप बन्द हो गया.

मां खाना के साथ उलाहना भी देने लगी. हे भगवान, तुम्हारा क्या होगा, भाग्य में न जाने क्या लिखा है तुम्हारी शादी कब होगी, हमारे दादा-दादी बनने का सपना कब पूरा होगा?

नरेन्द्र भाई के अमेरिका जाने का सपना न जाने कितनी बार टूटा. लेकिन सपने को मरने नहीं दिया. अब जाके पूरा हो रहा है. ये हमारे अच्छे दिनों का श्रीगणेश है.

चिन्ता न करो भाई मोदी भाऊ… अच्छे दिन का सपना ज़रूर साकार करोगे. तभी तो मीडिया के चकाचौंध से दूर संन्यासी की तरह मौन होकर अच्छे दिन का खोज कर रहे हैं

हमारे अच्छे दिन के लिए ही तो शुभ एफडीआई आ रहा है, यहां तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा और फौज के मामले में भी. अपुन के जेब  में वहीं चवन्नी, अठन्नी, कटे-फटे नोट होते थे, जिसे लेते देते हाथ भी मैला हो जाता था. अब डालर और यूरो लेते देते भी मजा आएगा. जो मुंडे एनआरआई बनने का सपना देख रहे थे अब उनका सपना सच होगा.

बचपन में बुलेट मोटरसाइकिल की दनदनाती आवाज़ बड़ी अच्छी लगती थी. वो बुलेट तो दुर्लभ हो गई. धनभाग मोदी भईया का बुलेट ट्रेन का सपना सच कर दिये. तीन सौ कि.मी. रफ्तार से चलेगी. सफर में मौजा ही मौजा… जो नासपीटे पटरी का हायतौबा मचा रहे हैं. एफडीआई के द्वारा पटरी विदेश से आयेगी. किराया बढ़ने का रोना है तो भाई बढे़गा ही घटता कौन सी चीज है. यमराज का यान थोड़े है कि फ्री में बैकुंठ जावोगे.

हम मामूली लोग सपना भी मामूली देखते है, वही आलू-प्याज, टमाटर का सपना. सपना देखो तो मोदी भाई की तरह देखो. विनिवेश और एफडीआई से हिन्दुस्तान की तरक्की के देखो.

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