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बदायूं और मोहनलालगंज की तरह मेरठ घटना की सीबीआई जांच कराए प्रदेश सरकार – रिहाई मंच

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : रिहाई मंच ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में कथित तौर पर एक लड़की को मदरसे में बंधक बनाकर गैंगरेप करने तथा उसका धर्म परिवर्तन कराने की खबर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि यह बेहद निंदनीय है.

रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्म्द शुऐब ने कहा कि जिस तरह से पीडि़त लड़की के गर्भाशय गायब होने की खबर आ रही है, वह किसी बड़ी मानव तस्करी की ओर इशारा है.

उन्होंने मांग की कि उत्तर प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा पर गंभीर संकट छाया हुआ है, ऐसे में जिस तरह से बदायूं और मोहनलालगंज में हुई घटनाओं की सीबीआई से जांच करवाई जा रही है, ठीक उसी आधार पर मेरठ में हुई घटना की भी सीबीआई जांच करवाई जाए.

रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम और गुफरान सिद्दीकी ने कहा कि लोकसभा चुनावों के बाद प्रदेश में जिस तरह से 600 से अधिक सांप्रदायिक घटनाओं में 259 घटनांए सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में घटित हुई हैं और 358 घटनाएं उन 12 विधान सभा क्षेत्रों में हुई हैं, जहां पर उपचुनाव होने हैं. ऐसे में यह साफ हैं कि सांप्रदायिक वोटों की राजनीति के लिए प्रदेश की जनता को सांप्रदायिकता की आग में झोंका जा रहा है. ठीक इसी तरह लोकसभा चुनावों के पहले भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा हुई, जिसमें आज भी लोग विस्थापित हैं.

उन्होंने मांग की कि ऐसे हालात में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच समिति का गठन किया जाए और इन हालात के मद्देनज़र केन्द्रिय चुनाव आयोग को हालात सामान्य होने तक उपचुनावों को टाल देना चाहिए, क्योंकि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ऐसे हालात में चुनाव कराना उपयुक्त नहीं होगा. उपचुनाव क्षेत्रों में सांप्रदायिक घटनाओं में राजनैतिक दलों की संलिप्तता की जांच करवाई जाए और जांच होने होने तक चुनाव आयोग चुनावी प्रक्रिया पर रोक लगाए.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अधिवक्ता राघवेन्द्र प्रताप सिंह और रिहाई मंच आज़मगढ़ के प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा मौलाना खालिद की हत्या की जांच नए सिरे से डीजीपी द्वारा कराने के आदेश ने यह साफ कर दिया है कि प्रदेश सरकार ने पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह, बृजलाल, मनोज कुमार झा, आईबी और एसटीएफ अधिकारियों को बचाने के लिए निष्पक्ष जांच नहीं करवाई.

उन्होंने कहा कि रिहाई मंच द्वारा लगातार इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की जाती रही है, क्योंकि निमेष आयोग ने साफ कर दिया था कि तारिक और खालिद बेगुनाह हैं, ऐसे में अपने को बचाने के लिए पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह, बृजलाल, मनोज कुमार झा, आईबी और एसटीएफ ने मौलाना खालिद की हत्या करवाई.

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