BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: क्यों ज़रुरी है मिड डे मिल योजना?
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > Lead > क्यों ज़रुरी है मिड डे मिल योजना?
Leadबियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी

क्यों ज़रुरी है मिड डे मिल योजना?

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published August 28, 2014 1 View
Share
11 Min Read
SHARE

Abhishek Kumar Chanchal for BeyondHeadlines

बिहार भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को एक नई दिशा देने का काम करता आ रहा है. चाहे वो शिक्षा हो, धर्म हो या आजादी की लड़ाई में उसकी भूमिका रही हो, सभी क्षेत्र में उसने अपना उल्लेखनीय योगदान दिया है.लेकिन इस बार एक ग़लत कारणों की वजह से बिहार चर्चा में है. बिहार में एक ऐसी योजना पर बहस चल रही है जो विश्व भर में एक लोकप्रिय योजना है.

बिहार के गोरौल प्रखंड के नवसृजित प्राथमिक विद्यालय कोरिगांव में 5 जुलाई  2014 को मिड डे मिल खाने से 33 बच्चे बीमार पड़ गए. बिहार या अन्य राज्यों में यह कोई नई घटना नहीं है. इससे पहले भी मिड-डे मिल से कई बच्चे मौत के मुहं मे जा चुके है. केवल बिहार में ही नहीं, पूरे देश में मिड- डे मिल में लापरवाही की घटना अक्सर सुनने को मिल जाती है और जब तक यह आलेख आप तक पहुंचेगी तब तक यह भी संभव है कि इस तरह की कोई नई घटना आप तक पहुंच जाए.

दरअसल, इस तरह की लापरवाही को रोकनें के लिए सरकार को कोई तरकीब नहीं सूझ रही है. केंद्र सरकार राज्य सरकार पर और राज्य की सरकार केन्द्र सरकार पर आरोप लगाती रही है, जिसके चलते यह योजना बच्चों को कुपोषण से बचाने के बजाए मौत के मुंह में धकेल रहा है.

अब इस योजना पर कई सारे सवाल उठ रहे हैं. पहला सवाल कि जब इस तरह की घटनाएं आ रही हैं तो सरकार इन्हे बंद क्यों नहीं कर देती है. दूसरा सवाल की स्कूल में पढ़ाई की ज़रुरत है न कि खाने की. तीसरा सवाल कि स्कूल में भोजन की गुणवत्ता बहुत ख़राब होती है,जहां दाल नहीं दाल का पानी मिलता है.

चौथा सवाल कि इस योजना में भाड़ी मात्रा में भ्रष्टाचार शामिल है. शिक्षा विभाग का करोड़ों का बजट, प्राथमिक शिक्षा और मिड-डे-मिल के नाम पर खर्च हो रहा हैं. पांचवा सवाल कि प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी होने के कारण बच्चों को शिक्षा नहीं मिल पा रही है और जो शिक्षक हैं, उन्हें स्कूल भवन बनवाने, ‘मिड-डे-मिल’ का हिसाब-किताब लगाने से लेकर जनगणना, पल्स पोलियो, चुनाव जैसे काम भी करने होते हैं. इसलिए कुछ लोगों का यह भी कहना है कि गरीब के बच्चों को ‘मिड-डे-मिल’ खाने का झुनझुना पकड़ाया गया है.

इन सारे सवालों का उठना लाज़मी है.लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस योजना ने स्कूलों में बच्चों के नामंकन को बढ़ाया है. अब स्कूल में सभी समुदाय के बच्चे एक साथ बैठ कर खाना खाते हैं जिसके कारण मिड-डे मिल ने सामाजिक विषमता को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है.

जाने-माने पत्रकार पी.साईनाथ ने आंध्रप्रदेश में गरीबी पर एक रिर्पोट में लिखा कि एक जिले में बच्चे और समुदाय यह मांग कर रहे हैं कि रविवार को भी स्कूल खुलना चाहिए. इस पर अध्ययन करने पर पता चला कि बच्चे हर रोज़ का स्कूल इसलिए चाहते थे ताकि उन्हे हर दिन भोजन मिल सके. जिस दिन वहां स्कूल की छुट्टी होती थी, बच्चे भूखे रहते थे.

दरअसल मिड-डे मिल जैसे कल्याणकारी योजनाओं पर सारे सवाल उन वर्गो से उठ कर आ रहा है जहां पर लोग भूख की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं.

वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (WFP) द्वारा प्रस्तुत स्टेट ऑफ स्कूल फीडिंग वर्ल्डवाइड 2013 नामक रिपोर्ट पर गौर करें तो हम पाते हैं कि भारत में साल 1995 में शुरु की गई मध्याह्न भोजन (मिड डे मिल) स्कीम देशभर के प्राथमिक स्कूलों में चलायी जाने वाली एक लोकप्रिय योजना है.

भारत में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के बाद 28 नवंबर 2001 को इस योजना की विधिवत् रुप से अपनाया गया. बाद में साल 2005 के बाद इस योजना को सम्रग रुप से अपनाया गया. वर्ष 2001-02 से 2007-08 के बीच के स्कूली नामांकन से संबंधित आकड़ों पर गौर करें तो हम पाते हैं कि अनुसूचित जाति के बच्चों के स्कूली नामांकन में बढ़ोतरी (103.1 से 132.3 फीसदी तक लड़कों एंव 82.3 से 116.7 फीसदी लड़कियां) है. अनुसूचित जनजाति के बच्चों के स्कूली नामांकन में बढ़ोतरी (106.9 से 134.4 फीसदी तक लड़कों एंव 85.1 से 124 फीसदी लड़कियां) दर्ज किया गया है.

साल 2011 में इस योजना की पहुंच भारत के 11 करोड़ 30 लाख 60 हजार बच्चों तक थी जिनको पोषणयुक्त भोजन मुहैया कराया जा रहा है. वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की तरफ से जारी स्टेट ऑफ स्कूल फीडिंग वर्ल्डवाइड 2013 रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में विभिन्न देशों में ऐसी योजना चलायी जा रही है.

दुनिया के विकासशील और विकसित देशों में मौजूदा हालात को देखें, तो कुल 36 करोड़ 80 लाख यानी हर पांच में से एक बच्चे को स्कूलों में पोषाहार देने की योजना चलाई जा रही है, जिससे कि भूख से मरने वाले बच्चों की संख्या में कमी आयी है.

आकड़ों से साफ है कि मिड-डे मिल योजना लाखों बच्चों को नयी दिशा देने का काम कर रहा है. बच्चे भूखे पेट पढ़ाई कर सकते हैं क्या?

इस योजना को सूचारु रुप से चलाने के लिए पंचायतें और स्थानीय निकाय की भागीदारी को तय करने की ज़रुरत है. बिहार के लगभग स्कूलों मे रसोई घर नहीं है इसकी व्यस्था करने की ज़रुरत है. इसका उदाहरण हम न्यूज-क्लिपिंग्स् की रिर्पोट से ले सकते हैं इसमें बताया गया है कि जहां अधिकांशतः स्कूल मिड डे मिल के बजट का रोना रोते रहते हैं और कहते हैं कि इस बजट से छात्रों को कैसे अच्छे भोजन दे सकते हैं.

वहीं भिवानी जिले के गांव धनाना में चल रही राजकीय प्राथमिक विधायल बच्चों को शुद्ध देशी घी के हलवे के अलावा मटर पनीर की सब्जी के साथ सलाद भी परोस रहा है. मिड डे मील के इंचार्ज राजेंद्र सिंह ने बताया कि बच्चों को मिलने वाले खर्च में अच्छा खाना दिया जा सकता है, बशर्ते काम करने की नीयत साफ हो.

प्रत्येक बच्चे के लिए तीन रुपये 34 पैसे एक दिन के लिए मिलते हैं. इसके अलावा चावल और गेहूं सरकार की तरफ से मिलते ही हैं. राजेंद्र सिंह ने बताया कि इस समय स्कूल में विद्यार्थियों के लिए 10 प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं, इसमें पुलाव, खिचड़ी, कढ़ी-चावल, दाल-चावल, आलू और काले चने की सब्जी व रोटी, काला चना व आटे का हलवा बनाया जाता है. विद्यार्थियों को सप्ताह में एक बार मटर पनीर की सब्जी भी दी जाती है. बच्चों को मिलने वाली राशि को बड़े ध्यान से खर्च किया जाता है. जब भी मिड डे मिल के लिए किसी सामान की ज़रूरत होती है तो उस ओर से आने-जाने वाले शिक्षक को इसका जिम्मा दे दिया जाता है. इससे इस सामान को लाने पर होने वाला खर्च बच जाता है. वे सब्जियां भी खेत में जाकर सीधे किसानों से खरीदते हैं.

एक गैर-सरकारी संगठन, ‘एकाउंटबिलिटी इनिशिएटिव’ ने कई राज्यों में मिड-डे-मिल योजना के कार्यान्वयन का सर्वेक्षण कराया, जिसमें पाया गया बिहार और उत्तर प्रदेश के हालात काफी खराब हैं. बिहार के पूर्णिया जिले में मिड-डे-मिल स्कूलों में साल के 239 कार्य दिवसों में दर्शाया गया. जबकिजांच के दौरान पाया कि मिड-डे-मिल का वितरण इन स्कूलों में महज 169 कार्य दिवसों में ही हुआ था.

इतना ही नहीं मिड-डे-मिल तय मैन्यू के हिसाब से नहीं पाया गया. यहां गुणवत्ता के साथ तय मापदंडों के अनुसार भोजन के वजन में भी कमी पाई गई. उत्तर प्रदेश के हरदोई और जौनपुर में सैम्पल सर्वे के दौरान यह जानकारी मिली कि स्कूलों में मिड-डे-मील खाने वाले जितने बच्चों का नामांकन किया जाता है, उसमें से केवल 60 प्रतिशत बच्चे ही दोपहर का भोजन करते हैं. ऐसे बच्चों को भी भोजन लाभार्थी दिखाया गया, जो कि स्कूल में महीनों से गैर-हाजिर थे. सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया कि समुचित निगरानी न होने की वजह से योजना बहुत लुंज-पुंज ढंग से लागू हो पा रही है.

आशर्चय की बात है कि हम शिक्षा व्वस्था को सुधारने के बजाय मिड डे मिल के पिछे पड़े हुए है. अगर शिक्षा व्वस्था में सूधार पो जाए तो इस समस्या का भी समाधान हो जाएगा. शिक्षा पर कुल बजट का 4 प्रतिशत खर्च किया जा रहा है, और सरकारी स्कुल में दिन-प्रतिदिन शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है. स्कूल चलो अभियान के नाम पर सैकड़ो एनजीओ लाखों कमा रहे हैं. आज सरकारी स्कुल के आठवें के बच्चों को सही से किताब पढ़ने नहीं आता है. आज से कुछ दशक पहले तक सरकारी स्कुल से पढ़े बच्चे तमाम तरह की प्रतियोगता में सफलता प्राप्त करते थे.

हमें ज़रुरत है शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने की. मिड-डे मिल को सुचारु रुप से चलाने व निगरानी रखने का एक नियोजित तंत्र बनाने की. इसके लिए हरेक लोगों को, समाज कोएंव सरकार को जागरुक होनें होगें. ऐसे में ही सुधार हो सकता है. वरनाअरबों रुपए के बजट से चलने वाली इस नायाब महायोजना का पूरी तरह से बंटाधार होना तय है.

(लेखकआईआईएमसी से पत्रकारिता की पढ़ाई करके फिलहाल राजस्थान में शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं.)

TAGGED:Why is the Mid-Day Meal Scheme necessary?क्यों ज़रुरी है मिड डे मिल योजना?
Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts
World Heritage Day Spotlight: Waqf Relics in Delhi Caught in Crossfire
Waqf Facts Young Indian
India: ₹1,662 Crore Waqf Land Scam Exposed in Pune; ED, CBI Urged to Act
Waqf Facts

You Might Also Like

IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

OLX Seller Makes Communal Remarks on Buyer’s Religion, Shows Hatred Towards Muslims; Police Complaint Filed

May 13, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

Shiv Bhakts Make Mahashivratri Night of Horror for Muslims Across India!

March 4, 2025
Edit/Op-EdHistoryIndiaLeadYoung Indian

Maha Kumbh: From Nehru and Kripalani’s Views to Modi’s Ritual

February 7, 2025
HistoryIndiaLatest NewsLeadWorld

First Journalist Imprisoned for Supporting Turkey During British Rule in India

January 5, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?