मुश्किल में योगी आदित्यनाथ: भड़काउ भाषण वाली सीडी की होगी फॉरेंसिक जांच

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BeyondHeadlines News Desk

भाजपा विधायक योगी आदित्यनाथ की मुश्किलें और बढ़ सकती है. क्योंकि एक खबर के मुताबिक उत्तर प्रदेश पुलिस ने उनके भड़काउ भाषण वाली सीडी को फॉरेंसिक जांच के लिए भेज दी है.

उत्तर प्रदेश पुलिस की सीबी-आईडी ब्रांच जनवरी 2007 के गोरखपूर दंगे में योगी आदित्यनाथ के संदिग्ध रोल की जांच कर रही है. गोरखपूर के चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के आदेश पर 2008 में इनके खिलाफ एक मामला भी दर्ज किया है.

स्पष्ट रहे कि योगी आदित्यनाथ एक विवादित वीडियो, जिसमें वे मुस्लिम लड़कियों को जबरन हिंदू बनाने की बात कर रहे हैं, को लेकर चर्चा में हैं. दरअसल यह वीडियो दलितों के हिंदूकरण, महिला हिंसा, सांप्रदायिकता और आतंकवाद की राजनीति पर केन्द्रित डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘SAFFRON WAR’ (भगवा युद्ध : एक युद्ध राष्ट्र के विरुद्ध) का हिस्सा है, जिसे 2011 से ही कई फिल्म महोत्सवों व अकादमिक गोष्ठियों में दिखाया जाता रहा है. इस डॉक्यूमेंट्री के फिल्मकार शाहनवाज़ आलम, राजीव यादव व लक्ष्मण प्रसाद आदि हैं, जो जर्नलिस्ट्स यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी से जुड़े हुए हैं.

हम आपको बताते चलें कि 61 मिनट की ‘भगवा युद्ध : एक युद्ध राष्ट्र के विरुद्ध’ फिल्म के निर्माण की शुरुआत 2005 में मऊ दंगे के रूप में पूर्वी उत्तर प्रदेश में हिंदुत्ववादियों द्वारा गुजरात दोहराने की कोशिश को समझाने के लिए हुई. बल्कि यूं कहे कि यह फिल्म समाज में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने के लिए की जा रही ‘टेरर पोलिटिक्स’ को समझाने का एक प्रयास है. इसके कुछ अंशों को अयोध्या फिल्म महोत्सव और इंडिया हैबिटेट सेंटर नई दिल्ली में प्रदर्शित किया जा चुका है. फिल्म के कुछ दृश्यों के आधार पर मानवाधिकार संगठनों ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ पहले से उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में मुक़दमा किया हुआ है.

इन दिनों जिस वीडियो को मीडिया में दिखाया जा रहा है, वह 10 अप्रैल 2008 को आज़मगढ़ लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव के प्रचार के दौरान भाजपा प्रत्याशी रमाकांत यादव के समर्थन में सिविल लाइन शहर आज़मगढ़ में भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ द्वारा दिया गया भाषण है.

इस डॉक्यूमेंट्री के फिल्मकारों का कहना है कि हमारे लिए उस वक्त यह आश्चर्यजनक था कि जिला चुनाव अधिकारी आज़मगढ़ द्वारा व भारत चुनाव आयोग द्वारा इनके विरुद्ध कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई.

2009 में हो रहे लोकसभा चुनावों में इनकी कार्य-पद्धति को देखते हुए और 2008 में योगी आदित्यनाथ द्वारा दिए गए आपत्तिजनक भाषणों पर जिला निर्वाचन अधिकारी आज़मगढ़ द्वारा किसी कार्रवाई के संज्ञान में न आने पर एक जिम्मेदार नागरिक के बतौर इस पर कार्रवाई की मांग करते हुए 20 मार्च 2009 को मुख्य चुनाव आयुक्त, भारत निर्वाचन आयोग व 23 मार्च 2009 को मुख्य निर्वाचन अधिकारी उत्तर प्रदेश को भाषण की मूल रिकार्डिंग की सीडी समेत प्रार्थना पत्र प्रेषित किया गया. जिसमें मांग की गई थी कि योगी आदित्यनाथ व रमाकांत यादव के विरुद्ध धारा-125 रिप्रेजेन्टेशन ऑफ पिपुल एक्ट 1951 एवं अन्य विधिक प्रावधानों के अन्तर्गत एफआईआर दर्ज कराई जाए एवं मामले को दबाने वाले दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की जाए.

साथ ही 2009 लोकसभा चुनाव के दौरान योगी आदित्यनाथ व इनके अन्य सह-वक्ताओं के भाषणों की रिकार्डिंग कराई जाए. प्रार्थियों द्वारा इस मामले को इलाहाबाद हाई कोर्ट के समक्ष भी रखा गया. लेकिन आश्चर्य की बात है कि योगी आदित्यनाथ जिस वीडियो को अपना मान रहे हैं, उस पर तत्कालीन अपर पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) आज़मगढ ने 16 अप्रैल 2009 को इस पूरे मामले पर जांच के बाद अपना पक्ष रखते हुए ऐसे किसी आपत्तिजनक भाषण के दिए जाने से ही इंकार कर दिया था.

भाषण के सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने एवं आपराधिक श्रेणी में न आने व आवेदकों द्वारा बढ़ा-चढ़ाकर मनगढ़ंत साक्ष्य तैयार किए जाने की बात कहते हुए आवेदन पत्र को झूठा व निराधार बताया गया. जिससे साबित होता है कि तत्कालीन आज़मगढ़ जिला प्रशासन सांप्रदायिक भाषण देने वाले योगी आदित्यनाथ जैसे जनप्रतिनिधियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए उन्हें बचाने में लिप्त था.

उन्होंने यह भी कहा कि देर से ही सही अगर प्रदेश सरकार अगर इस मसले पर जाग गई है तो वे उसे योगी आदित्यनाथ के सांप्रदायिक भाषणों से जुड़े इस वीडियो समेत अन्य वीडियो भी मुहैया कराएंगे.

आप ‘SAFFRON WAR’ नामक इस फिल्म को यहां देख सकते हैं…

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