सांसद की बेटी की कार और मौत की दहलीज़ पर एक गरीब ज़िन्दगी

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Avdhesh Kumar & Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

ये कहानी एक रसूखदार परिवार से ताल्लुक रखने वाली लड़की और ब्लड कैंसर की चोट से तिल-तिलकर दम तोड़ रहे नवयुवक की है.

राज्यसभा सांसद की इस अमीर लड़की ने अपनी कार से इस नवयुवक पर चढ़ा दी और पुलिस ने एक मात्र एफआईआर दर्ज कर खानापूर्ति कर पल्ला झाड़ लिया. राज्यसभा की बेटी की गाड़ी की रफ्तार आज भी ज्यों का त्यों है, मगर वो बेचारा नवयुवक एक के बाद दूसरे ज़ख्म को झेलता हुआ हर रोज़ मौत की ओर कई क़दम बढ़ रहा है.

पुलिस प्रशासन से लेकर दिल्ली के कई बड़े अस्पताल तक सब उस रईसज़ादी लड़की के साथ खड़े हैं. और इधर इस बेचारे ग़रीब के साथ सिर्फ उसकी तक़दीर है, जो ताक़त और रसूख के इस ज़लज़ले के आगे लगभग घुटने टेक चुकी है. साथ ही वह अपनी जमीन, घर गिरवी रखकर कुछ उम्मीदों के साथ अपना ईलाज करा रहा है.

37 वर्षीय ऑटो ड्राईवर मृत्युजंय कुमार तिवारी आज 16 जून की उस रात को याद करके दहल उठता है. आंखों से आंसू रूकने का नाम नहीं लेते. वो बताता है कि उस रात ज़ाकिर नगर की एक सवारी लेकर कस्तुरबा गांधी मार्ग पर ऑटो चलाते हुए आ रहा था. जैसे ही फिरोज़शाह रोड के क्रासिंग पर पहुंचा तो सामने देखा कि एक कार जो बहुत तेज रफ्तार से उसकी तरफ आ रही है. उसने अपना ऑटो धीमा कर लिया. लेकिन उस कार ने सीधा आकर एक ज़ोरदार टक्कर मार दी.

वो बताता है कि उसके सवारी को भी चोट लगी थी पर पुलिस वाले ने उसे भगा दिया. मुझे काफी गंभीर चोट लगी थी. मेरी एक टांग भी टूट गई. इसलिए पुलिस वाले मुझे राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले गए. यही नहीं, उस लड़की ने शराब पी रखी थी उसे पार्लियामेंट स्ट्रीट थाने ले गए. वहां एफआईआर भी दर्ज किया और उसकी कापी भी मुझे दी, (BeyondHeadlines के पास एफआईआर की कापी मौजूद है, और उस पर लड़की का नाम मधुलिका, पिता का नाम राजेश राय और पता C-704, स्वर्ण जयंती अपार्मेंट, विशाम्भर दास मार्ग, नई दिल्ली-1 दर्ज है. एफआईआर के मुताबिक कार हुंडई वर्ना जिसका नम्बर DL-3CBL-9999 थी.) लेकिन जैसे ही पुलिस वालों को पता चला कि वो भाजपा राज्यसभा सांसद कुसूम राय की बेटी है. तुंरत इस मामले को दबाने में लग गए. अगले दिन रात में अस्पताल वालों ने भी हमें निकाल दिया. उस रात हम हॉस्पीटल के गेट के बाहर थे. फिर उसके बाद कौशाम्बी के सर्वोदय ट्रामा सेन्टर गए. वहां प्लेटलेट्स की कमी बताई गई, मैं अपने भाई के प्लेटलेट्स से ज़िन्दा हूं.

छह दिनों तक बेहोश रहा. सातवें दिन होश आया. फिर मुझे दिल्ली गेट स्थित अर्बन हॉस्पीटल रेफर कर दिया गया. इस हॉस्पीटल ने भी आधे घंटे में ही बाहर कर दिया. मेरी हालत काफी बिगड़ गई. भाई मुझे फिर लेकर राम मनोहर लोहिया गया, लेकिन वहां अन्दर भी नहीं जाने दिया. फिर हम महरौली के भगवती हॉस्पीटल गए. वहां मुझे खून चढ़ाने की बात कही गई. जहां भाई ने खून खरीदा.

इसी अस्पताल में मेरी मुलाकात आम आदमी पार्टी कार्यकर्ता बंसल से हुई. जो मेरे लिए किसी भगवान से कम नहीं हैं. वो मुझे तेग बहादुर अस्पताल लाएं. वहां से मुझे दिल्ली स्टेट कैंसर हॉस्पीटल भेजा गया. जहां बताया गया कि मुझे ब्लड कैंसर है. बंसल साहब ने अपने स्तर पर बातचीच करके मैक्स हॉस्पीटल ले आए. मुझे यहां ज़िन्दा रखने के लिए इलाज चल रहा है.

जब हमने पूछा कि आपको कैसे मालूम कि मधुलिका सांसद की बेटी है तो मृत्युंजय ने बताया कि उस रात टक्कर मारने के बाद वो खुद कार से उतर कर चिल्लाकर बोली कि दो दिन पहले लंदन से आई हूं. तुम्हे मेरे ही गाड़ी के नीचे आना था. जानते हो मैं सांसद की बेटी हूं. शायद वो बहुत अधिक नशे में थी. अगले दिन एक दो अखबारों में भी यह खबर आयी.

वो रोते हुए बताता है कि मेरे पिता घर ज़मीन गिरवी रखकर मेरा इलाज करा रहे हैं. मेरे चार बच्चे हैं. तीन लड़कियां हैं. क्या होगा मेरे बाद उन सबका… पुलिस भी कुछ नहीं कर रही है. अभी तक मेरा बयान भी नहीं लिया गया है. मेरा दोस्त गया था थाने तो पुलिस वालों ने उसको मारा भी और गाली भी दी. यह सब बताते हुए वो फूट-फूट कर रो पड़ता है. फिर हौसले के साथ बोलता है –ज़िन्दा रहा तो लड़ूंगा….

हम आपको बताते चलें कि मृत्युजंय पिछले 20 सालों से दिल्ली में ऑटो रिक्शा चलाता है. और अपने परिवार के साथ दिल्ली में ही रहता है. दरअसल वो रहने वाला बिहार के ज़िला पश्चिम चम्पारण के बेतिया शहर का है. जहां उसके पिता जनार्दन तिवारी बेतिया राज में स्टाफ हैं. अब बच्चों को भी उसने बेतिया ही भेज दिया है. अस्पताल में उसके साथ उसकी पत्नी हर समय रहती है.

मृत्युजंय बताता हैं कि वह उन अच्छे दिनों का इंतजार कर रहा हैं जो मोदी ने चुनाव के दौरान वादा कर दिखाए थे. वहीं हमने सांसद कुसुम राय की बेटी मधुलिका से बात की तो उसने बताया कि उसको कुछ नहीं पता है इस बारे में उसके वकील से बात करे. जब मधुलिका से पुछा की गाड़ी आप चला रहीं थी या आपका वकील ? उस जवाब में भी उसने गुस्से में कहा कि यह भी मेरे वकील को ही पता है.

खैर, हैरानी की बात तो यह है कि तमाम नीति-नैतिकता की बात करने वाली मेनस्ट्रीम मीडिया ने भी इस मामले पर अपने होंठ सिल लिए हैं. इधर ये बेचारा गरीब अपनी ज़िन्दगी बचाने की जद्दोजहद में है तो उधर रसूखदारों की पूरी की पूरी जमाअत अपनी ताक़त और रसूख का मुज़ाहिरा करने में लगी हुई है. यह वाक़्या अपने आप में एक दर्दनाक सच से पर्दा उठाता है कि चाहे सरकार या चेहरा बदल जाए पर ग़रीब की त्रासदी का कोई अंत नहीं है….

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