India

चुनावी साल में भाजपा के लापता डोनर!

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

चाल, चरित्र व चेहरे के साथ पारदर्शिता की बात करने वाली सत्ता पर काबिज़ देश की सबसे बडी राजनीतिक पार्टी का यह चेहरा उसके खुद के पारदर्शिता के दावों पर कई गंभीर सवाल खड़े करता है. दूसरों से उनके फंडिंग का सोर्स पूछने वाली इस कथित आदर्शवादी पार्टी ने अभी तक बीते साल में दानदाताओं का ब्यौरा चुनाव आयोग को नहीं सौंपा है. यानी नेशनल पार्टियों में भाजपा ही एक इकलौती पार्टी है, जिसने अभी तक चुनाव आयोग को अपने चंदे की जानकारी नहीं दी है.

चुनाव के दौर में जब फंडिंग और काला धन अपने आप में बड़ा मुद्दा बन चुका था. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी काले धन को वापस लाने का ज़ोर-शोर से दावा कर रहे थे, मगर काला धन तो अब वापस नहीं आ सका. साथ ही काले धन का सबसे बड़ा ज़रिया चुनावी फंडिंग पर उनकी पार्टी पारदर्शिता से कोसो दूर नज़र आ रही है. भाजपा का यह रवैया कथनी और करनी एक बड़े और गंभीर फर्क की ओर इशारा करता है.

BeyondHeadlines को चुनाव आयोग से मिले अहम दस्तावेज़ बता रहे हैं कि इस देश में 6 नेशनल पार्टी, 58 स्टेट पार्टी और 1534 रजिस्टर्ड अन-रिकोगनाईज्ड पार्टियां हैं. लेकिन सवाल जब इनकी पारदर्शिता का आता है, तो सभी एक साथ हमाम के नंगे खड़े दिखते हैं.

स्टेट और रजिस्टर्ड अन-रिकोगनाईज्ड पार्टियों की बात तो हम भूल जाए, देश की नेशनल पार्टियां भी पारदर्शिता के सवाल पर बग़ले झांकते नज़र आते हैं. चुनाव आयोग की जानकारी बता रही है कि पिछले साल यानी साल 2013-14 में भारतीय जनता पार्टी तक ने चुनाव आयोग को चंदे की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई. इनके साथ नीतिश कुमार का जनता दल (यूनाईटेड) के साथ-साथ रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी, जैसी बड़ी पार्टियां भी इस कतार में एक साथ खड़ी हैं.

चुनाव आयोग की जानकारी बताती है कि इस साल सिर्फ 58 पार्टियों ने ही मिलने वाली चंदे की जानकारी दी है. साल 2012-13 में 67 तो साल 2011-12 में यह संख्या 95 रही. साल 2010-11 में 106 और साल 2009-10 में 52 पार्टियों ने ही अपने चंदे की जानकारी दी. वहीं वर्ष 2007-08 में 18 पार्टियों ने  ही फॉर्म 24-ए भरा है, जबकि वर्ष 2004 से लेकर 2007 तक फॉर्म 24-ए भरने वालों की संख्या 16 रही है.

क्या है फार्म 24-ए:-

रिप्रेज़ेंटेशन ऑफ़ पीपुल्स एक्ट (1951) में वर्ष 2003 में एक संशोधन के तहत यह नियम बनाया गया था कि सभी राजनीतिक दलों को धारा 29 (सी) की उपधारा-(1) के तहत फ़ार्म 24(ए) के माध्यम से चुनाव आयोग को यह जानकारी देनी होगी कि उन्हें हर वित्तीय वर्ष के दौरान किन-किन व्यक्तियों और संस्थानों से कुल कितना चंदा मिला. हालांकि राजनीतिक दलों को इस नियम के तहत 20 हज़ार से ऊपर के चंदों की ही जानकारी देनी होती है.

असहाय आयोग

नियम के मुताबिक आयोग के पास पंजीकृत सभी दलों को चंदे से संबंधित जानकारी उपलब्ध करानी चाहिए पर ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत राजनीतिक दल यह जानकारी देने के लिए बाध्य हों. विंडबना यह है कि नियम के मुताबिक राजनीतिक दलों को चंदे का ब्यौरा आयोग में जमा करना है पर ऐसा प्रावधान नहीं बनाया गया जिसके तहत आयोग इस जानकारी का जमा किया जाना सुनिश्चित कर सके. सवाल और भी हैं. मसलन, राजनीतिक दल अपनी ऑडिट निजी स्तर पर करवाकर आयकर विभाग या आयोग को जानकारी दे देते हैं. इस बारे में आयोग ने केंद्र सरकार से सिफ़ारिश की थी कि ऑडिट के लिए एक संयुक्त जाँच दल बनाया जाए जो राजनीतिक दलों के पैसे की ऑडिट करे. अगर ऐसा होता तो राजनीतिक दलों के खर्च पर नज़र रख पाना और उसकी जाँच कर पाना संभव हो पाता. इससे पार्टियों की पारदर्शिता तो तय होती ही, साथ ही राजनीतिक दलों के खर्च और उसके तरीके पर भी नियंत्रण क़ायम होता. पर केंद्र सरकार ने इस सिफारिश को फिलहाल ठंडे बस्ते में ही रखा है.

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]