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अल्पसंख्यक अधिकार दिवस और सरकारी उदासीनता!

Siraj Mahi for BeyondHeadlines

हमने अभी पिछले हफ्ते ही अन्तर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस मनाया था. इसी तरह हमारे देश के नौजवान वैलेनटाईन डे, महिला दिवस, एड्स दिवस और न जाने कौन-कौन से दिवस  मनाते रहते हैं. लेकिन बात जब आई ‘अल्पसंख्यक अधिकार दिवस’ मनाने की तो किसी को पता ही नहीं था.

आज अंतर्राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस को जहां दुनिया भर में मनाया जाता है, वहीं दिल्ली में अल्पसंख्यक मंत्रालय से लेकर तमाम तंजीमें भी अपने अधिकार को लेकर उदासीन दिखी. कहीं कोई जागरूकता प्रोग्राम नहीं मनाया गया. हां! अखबारों में नरेन्द्र मोदी के बड़ी तस्वीरों के साथ विज्ञापन ज़रूर नज़र आए.

सरकार की यह उदासीनता सिर्फ अल्पसंख्यक अधिकार दिवस मनाने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अल्पसंख्यक आयोग व मंत्रालय द्वारा चलने सारे कामों व स्कीमों में भी है.

अल्पसंख्यकों की हालत

लगभग सभी देशों में अल्पसंख्यकों का शोषण बहुसंख्यकों के ज़रिए होता है. जैसे अक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के चलते अश्वेतों को गोरों को कष्ट सहना पड़ा. जिसका विरोध नेल्सन मंडेला ने किया.

समुदाय के आधार पर अल्पसंख्यकों का क़त्ले-आम अक्सर बहुसंख्यकों द्वारा किया जाता रहा है. चाहे वो 1984 का सिख दंगा हो या 2002 का गुजरात का दंगा….  यहां अल्पसंख्यक समुदाय का ही क़त्लेआम हुआ.

जाति के आधार पर भी शोषण का होना एक आम बात है. पसमांदा बिरादरी के लोग अल्पसंख्यक समुदाय में रहकर भी बड़े जातियों के शोषण के शिकार बनते हैं. वैसे ही दलित भी बहुसंख्यक समुदाय में रहकर भी इनके ही ज़ुल्म के शिकार होते हैं. इनके लिए कोई बोलने वाला नहीं है.

कृष्णपाल, जो गोण्डा में एक कम्प्यूटर अध्यापक हैं, बताते हैं कि हमारे घर के पास कुछ लोनिया रहते हैं जिनका कोई रोज़गार नहीं है. उनके  घर की स्त्रियां मजदूरी करती हैं. उनका मुख्य भोजन चूहा खाना है. शाम को जब वह मजदूरी करके आती हैं, तो उनकी पति उनसे पैसा मांगते हैं. पैसा न मिलने पर उनकी अच्छे से पिटाई होती है. बहुसंख्यक समाज को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, न तो इनके लिए बने मंत्रालय की तरफ से ही उनकी सुध ली जाती है.

45 वर्षीय इस्लाम जो एक किसान हैं. बहराईच में रहते हैं. कहते हैं कि मैं हमेशा से ’शेख’ के बीच रहा और मैं खुद ’राईनी’ मुझे शोषण का शिकार होना पड़ा. मैं खुल कर सांस नहीं ले पा रहा था. उनका कहना है कि शेख हमेशा शेखई दिखाया करते हैं.

बहरहाल, दलितों व अल्पसंख्यकों के शोषण के दास्तानों की एक लंबी फहरिस्त हैं. लेकिन हम यहां बात अंतर्राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस की कर रहे हैं. तो स्पष्ट रहे कि अल्पसंख्यक दिवस हर साल पूरी दुनिया में 18 दिसम्बर को मनाया जाता है.

यह दिवस संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1992 में अल्पसंख्यक के हित में घोषित किया गया था. अल्पसंख्यक किसी क्षेत्र में रहने वाले वे लोग हैं, जिनकी संख्या किसी से कम हो जैसे चाहे धार्मिक आधार पर हो, लैंगिक आधार पर हो, भाषा के आधार पर हो, रंग के आधार पर हो. फिर भी वह राष्ट्र निर्माण, विकास, एकता, संस्कृति, परंपरा और राष्ट्रीय भाषा को अनाये रखने में अपना योगदान देते हों तो ऐसे समुदायों को उस राष्ट्र में अल्पसंख्यक माना जाता है.

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