जेलों में बढ़ती आबादी….

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Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ें बताते हैं कि भारत के जेलों में कैदियों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है. भारत के 1391 जेलों में 3,47,859 कैदियों को रखा जा सकता है, लेकिन 31 दिसम्बर, 2013 तक के आंकड़े बताते हैं कि जेलों में कैदियों की संख्या 4,11,992 है. जबकि 2012 में 1394 जेलों में 3,85,135 क़ैदियों को रखा गया था. वहीं 2011 में भारत के 1382 जेलों में 3,72,926 कैदी अपनी सज़ा काट रहे थे.

आंकड़े यह भी यह बताते हैं कि साल 2013 में 13,95,994 अंडर ट्रायल कैदियों को रिहा किया गया. इन्हें रिहा कर देने के बाद भी 2,78,503 क़ैदी यानी 67.6 फीसदी अभी भी अंडर ट्रायल हैं. यही नहीं,  3,113 लोगों को सिर्फ शक की बुनियाद पर गिरफ्तार किया गया है.

अगर बात महिलाओं की जाए तो नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं महिलाओं के लिए विशेष तौर पर भारत में 19 जेल हैं. इन 19 के साथ अन्य जेलों में 4827 महिला क़ैदियों को रखा जा सकता है. लेकिन इस समय इनकी संख्या 18,188 है. जिनमें 5335 महिलाओं की सज़ा तय कर दी गई है. 12,688 महिलाएं अंडर ट्रायल हैं तो वहीं 98 महिलाओं को डिटेन भी किया गया है. इन आंकड़ों के मुताबिक 1603 महिलाएं अपने बच्चों के साथ जेलों में हैं, इनके बच्चों की संख्या 1933 है.

जेलों में सबसे अधिक भीड़ छत्तीसगढ़ राज्य में हैं. यहां के जेलों में 6070 कैदियों को रखा जा सकता है, लेकिन आंकड़े को मुताबिक फिलहाल यहां जेलों में 15840 कैदी बंद हैं.

स्पष्ट रहे कि जेल सुधार के लिए समय-समय पर बनने वाले कई कमिटियों की सिफारिशों में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि जेलों की आबादी जितना हो सके कम की जाए, लेकिन नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरों के आंकड़ें बताते हैं कि भारत के जेलों में कैदियों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है. इन कमिटियों की सिफारिशों पर राज्य व केन्द्र सरकार कोई अमल नहीं कर रही है.

जेल व्यवस्था में सुधार लाने के  लिए भारत में पहली कमेटी सन् 1836 में बनी, जिसे ‘फेमस कमिटी’ के नाम से जाना जाता है. इस कमिटी में लार्ड मैकाले भी शामिल थे. इस कमिटी के रिपोर्ट खास तौर पर इस बात पर ज़ोर दिया गया था कि किसी भी हालत में केन्द्रिय कारागारों में एक हज़ार से अधिक क़ैदी न रखा जाए. कमिटी ने यह रिपोर्ट 1838 में पेश किया था.

जेल व्यवस्था में सुधार के लिए दूसरी कमिटी 1864 में बनी. इस कमिटी का प्रमुख काम जेलों में बढ़ते मृत्यू दर के असल कारण को जानना था. इस कमिटी ने उस समय पाया कि भारतीय जेलों में उस समय पिछले दस सालों में 46,309 क़ैदियों की मौत हुई है. इस कमिटी ने इसके पीछे एक असल वजह जेलों में क़ैदियों की संख्या अधिक होने को माना था.

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