ज़रा सोचिए! क्या ऐसा व्यक्ति जन प्रतिनिधी बनने के लायक है?
किसी ऐरे-गैरे के हाथ में हम अपनी बेटी को भी नहीं सौंपते, फिर अपना विधानसभा क्षेत्र, अपना पूरा दिल्ली शहर कैसे सौंप सकते हैं? अपनी बेटी का रिश्ता तय करने से पहले कितना सोचते हैं हम… लड़के का ख़ानदान कैसा है? कितना पढ़ा-लिखा है? कमाता क्या है? स्वभाव कैसा है? चाल-चलन कैसा है उसका? दारू-शराब तो नहीं पीता? कुछ लोग तो जासूसी तक करवाते हैं… पूरा चिट्ठा खोल कर रख देते हैं… तब जाकर हम सौंपते हैं अपनी बेटी का हाथ किसी के हाथ में… लेकिन जब हम अपना शहर, अपना क्षेत्र किसी के हाथ में सौंपते हैं, तो क्या इतना ध्यान रखते हैं.. ? ज़रा सा छान-बीन करते हैं…? ज़रा सा भी सोचते हैं कि हमारे क्षेत्र में कौन-कौन से उम्मीदवार खड़े हैं? वो कितना पढ़ा-लिखा है? उसके खिलाफ कोई क्रिमिनल केस तो नहीं? कहीं वो हम सबको आपस में लड़ाकर अपना फायदा तो नहीं चाहता? कहीं वो हिन्दुस्तान के सेक्युलरिज्म के लिए खतरा तो नहीं है? कहीं वो हमारे समाज में सांप्रदायिकता का ज़हर तो नहीं घोल रहा है? कहीं वो इस समय हमारा वोट तो नहीं खरीद रहा है?
नहीं ना…! तो आईए! इस बार हम ऐसा बिल्कुल भी नहीं करेंगे… इस बार हम यह सब जानने के बाद ही अपना क़ीमती वोट किसी को देंगे, ताकि अगले पांच तक हमें पछताना न पड़े… और हमारे देश का सेकुलरिज्म हमेशा के लिए ज़िन्दा रहे.