Mango Man

अरविन्द केजरीवाल के नाम एक खुला पत्र…

प्रिय अरविन्द,

मेरा ख़ुदा जानता है कितना कुछ टूटा है मेरे अंदर इन शब्दों को लिखने के लिए. आज शायद मेरी या मेरे शब्दों की कोई कीमत नहीं होगी पर मैं बोलूँगी क्योंकि इस आंदोलन ने मुझे यही सिखाया है, ग़लत पर चुप ही रहना था तो क्यों ईमानदारी की मशाल लेकर मोर्चे निकालते.

कितना अजीब है न सर हफ्तेभर पहले तक आप पर उठे सवालों का जवाब दिया करती थी, जब भी श्रद्धा के नीचे आम आदमी पार्टी लिखती थी तो फिर फिर अपनी पहचान से पहचान होती थी. ईमेल टीम का हिस्सा रही हूँ इसलिए जानती हूँ कि कितना मुश्किल होता है इन अजीबोगरीब चिठ्ठियों के जवाब देना पर आपने कोई विकल्प ही नहीं छोड़ा.

उन लाखों बेनाम चेहरों में से एक “कोई नहीं” हूँ जिसने आपकी पुकार पर जो भी अपना हुआ करता था उसे छोड़ने का लोहा रखा. सड़कों पर उतरे, घरों से निकले, दुनिया के लिए दुनिया से मोह तोड़ा. इन चार सालों में अपना कुछ सोचा ही नहीं. पार्टी के साथी ही दोस्त रहे, परिवार रहे और पार्टी के सिद्धांत ही राह भी रहे और मंज़िल भी. आज आपने ऐसे अनाथ किया है कि सब धुँधला-सा दिखता है. खुद से ज़्यादा उन साथियों की फ़िक्र है आज जिन्होंने परीक्षाएँ छोड़ीं, जिन्होंने नौकरियाँ छोड़ीं, जिन्होंने घर-परिवार छोड़े. हम लोग आपके नेतृत्व में हम भ्रष्टाचारमुक्त भारत के लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे. आप लोगों के क़दमों की छाप को अपनी राह माना था. मेरी उम्र जन्मदिनों से नहीं चुनावों से बढ़ रही थी. संघर्ष सतत चल रहा था बाहर भी और अपने अंदर भी. दिल्ली जीतने के उपरान्त तो दुनिया रोशन हो गई थी, हमने अपनी ज़िन्दगी का ख़ाका चुनावी तौर पर तैयार कर ही लिया था. फिर अचानक ही पार्टी की सड़न बाहर आने लगी, इस मतभेद की सभी को ख़बर थी पर सबकुछ ऐसे बिखर जाएगा, ये कब सोचा था हमने. और भी कई समझौते देखें पर उस गंतव्य के वास्ते उनको कई बार नज़रंदाज़ करते रहे. पर आज जब हर बांध टूट गया है तो हम भी किसी राजनैतिक कारपोरेशन की एम्प्लोयी बनकर नहीं रहना चाहते. हम यहाँ एक नई राजनीति के लिए आए थे सत्ता के लिए नहीं. खैर मुझे फ़क्र है कि मैंने अपने सिद्धान्तों के लिए आवाज़ उठाई तब भी और अब भी.

हम भी शायद आज या कल चले जाएँगे, आप किन्हीं बिकाऊ आत्माओं पर तानाशाही चला लीजिएगा पर जाते-जाते कुछ सवाल हैं उनका जवाब दे दीजिए. अरविन्द की क्या छवि लेकर जाएँ कोई बता दीजिए? सर आप हमारे परिवार के परवरदिगार हैं, अपने ही अपनों पर कीचड़ से घाव कर रहे थे, आपने कुछ क्यों नहीं बोला? सर पार्टी का संविधान मैं आज अपने लैपटॉप से डिलीट कर दूँ क्या? सर स्वराज भी क्या राजनैतिक जुमला था? आपने तो कहा था कि हम राजनीति को पवित्र कर देंगे, आपने ये कौन-से दलदल में फेंक दिया. ऐसा क्या हो गया कि आपका अंबर भी दागदार हो गया? ग़लत तो हम सभी हैं पर सज़ा सिर्फ उनके हिस्से क्यों आई, इतना पक्षपाती तो कोई और कानून भी नहीं. और इस पब्लिक एक्स्ज़िक्यूशन का क्या अर्थ निकाला जाए? सर मैंने हमारे लिए कई लड़ाइयाँ लड़ी हैं पर इस बार मैं हार गई. मुझे कुछ भी मलाल नहीं है पर इस टीस का क्या करूँ? “पाँच साल केजरीवाल” में कुछ सेकंड तो हमारे भी होंगे, उनके हवाले से ही सही कोई जवाब तो दे दीजिए. खैर नज़रों से तो बहुत कुछ उतर गया पर दिल से नहीं उतरता. आज भी आपके बारे में कुछ सुनना गवारा नहीं होता. प्लीज़ हमें इस विरोधाभास से आज़ाद कर दीजिए.

मेरी ओर से आपको शुभकामनाएँ, आप और आपके लोग प्रधानमंत्री बनें, मुख्यमंत्री बने, दुनिया की सरपरस्ती करें पर जिस तरह आप बढ़े, आप बढ़े नहीं बहुत बहुत घट गए.

By: 

(आम आदमी पार्टी)

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