BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: सरकार क्यों भूल गई इस सच्चे देशभक्त को?
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > Exclusive > सरकार क्यों भूल गई इस सच्चे देशभक्त को?
Exclusive

सरकार क्यों भूल गई इस सच्चे देशभक्त को?

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published April 30, 2015 1 View
Share
9 Min Read
SHARE

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

आज से 98 वर्ष पहले चम्पारण के किसानों का दर्द जान गांधी 1917 में पहला सत्याग्रह करने चलने आए. सत्याग्रह के अनुभवों व परिणामों ने तो आज़ादी के लड़ाई का कलेवर ही बदल दिया. यह आज़ादी के दीवानों की पहली बड़ी कामयाबी थी. यहां के बाशिन्दों में आज़ादी के लिए दीवानगी थी. इन्हीं दीवानों में एक शख़्स, जिसने अपनी पूरी ज़िन्दगी आज़ादी हासिल करने और उसके सामाजिक ताने-बाने को बचाने में लगा दिया. जिसकी ज़िन्दगी का असल मक़सद देश में हिन्दू-मुस्लिम एकता क़ायम रखना था. जो सबकुछ त्याग कर भी ग़रीबों-किसानों के मुद्दों को आवाज़ देता रहा. जिसकी पत्रकारिता एक सामाजिक आंदोलन की वाहक बनी. उस सच्चे देश-भक्त पत्रकार का नाम है –पीर मुहम्मद ‘मूनिस’.

पहला किसान आंदोलन

अंग्रेज़ी राज में चम्पारण के किसानों की ज़िन्दगी नरक बनती जा रही थी. गोरे साहबों का ज़ुल्म परवान चढ़ रहा था. बेज़ुबानों की इस बस्ती को मसीहा की दरकार थी. पर उस समय अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ बोलना अपनी मौत को दावत देने के बराबर था. लेकिन 1905 में चम्पारण के ही चांद बरवा गांव के शेख़ गुलाब ने यह ठान लिया कि अंग्रेज़ों के इस ज़ुल्म को सहने से बेहतर मर जाना है. शेख़ गुलाब ने अपने गांव के लोगों को इकट्ठा करना शुरू किया. कई अहम लोग उनके साथ जुड़े, क्रांतिकारी पीर मुहम्मद मूनिस भी उनमें से एक थे.

इस किसान आन्दोलन को ‘चम्पारण नील विभ्राट’ के नाम से जाना गया. मूनिस का पहला लेख ‘नील विभ्राट’ इसी किसान आन्दोलन के संदर्भ में था. पीर मुहम्मद मूनिस के लेखों के कारण ही चम्पारण के नील किसानों का यह मुद्दा आगे चलकर राष्ट्रीय मसला बना.

‘बदमाश पत्रकार’

IMG_20141203_104251ब्रितानी शासन ने उन्हें बदमाश पत्रकार का तमग़ा दिया और हर मुमकिन तरीक़े से उन्हें रोकने की कोशिश की. उनकी शिक्षक की नौकरी चली गई और संपत्तियां ज़ब्त कर ली गईं. वे कई बार जेल भी गए. इस सबके बावजूद वो उन सब मुद्दों पर लिखते रहे जिनपर लिखा जाना ज़रूरी था.

ब्रितानी दस्तावेज़ों के मुताबिक –“पीर मुहम्मद मूनिस अपने संदेहास्पद साहित्य के ज़रिये चंपारण जैसे बिहार के पीड़ित क्षेत्र से देश दुनिया को अवगत कराने वाला और मिस्टर गांधी को चंपारण आने के लिए प्रेरित करने वाला ख़तरनाक और बदमाश पत्रकार था.”

ये मूनिस के क्रांतिकारी शब्द ही थे जो गांधी को चम्पारण खींच लाए. और गांधी के सत्याग्रह के कारण चम्पारण की एक अलग पहचान बनी.

कामेश्वर सिंह विश्वविद्यालय के प्रो. प्रकाश के मुताबिक ‘मूनिस समकालीन लोगों में एक महत्वपूर्ण बुद्धिजावी थे. गांधी जी ने जिस हिन्दुस्तानी आदमी व तहज़ीब की कल्पना की थी, उस पर उस समय सिर्फ मूनिस ही खड़े उतरते थे.’

हिन्दी पत्रकारिता और मूनिस

मूनिस कानपूर से निकलने वाले ‘प्रताप’ अख़बार के संवाददाता थे. जिसके संपादक गणेशशंकर विद्यार्थी थे. इनके लेखों के लिए ‘प्रताप’ अख़बार को भी प्रताड़िता किया जा रहा था. इसके अलावा आपके लेख उस दौर में प्रसिद्ध ‘नया ज़माना’, ‘स्वदेश’, ‘पाटलीपुत्र’, ‘अभ्युदय’, ‘भारत मित्र’, ‘बालक’ जैसे दर्जनों पर्चो व अख़बारों में छपते रहे. 1937 में वे बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के 15वें अध्यक्ष बनाए गए.

गांधी का हिन्दुस्तानी मतलब –पीर मुहम्मद मूनिस…

गांधी संग्रहालय कमिटी, मोतिहारी के सचिव ब्रज किशोर सिंह का कहना है –‘चम्पारण सत्याग्रह को सफल बनाने में भी मूनिस का ही सबसे अधिक रोल है, क्योंकि निलहों के अत्याचार का जो बैकग्राउंड व फीडबैक इन्होंने दिया वो अद्वितीय है.’

वरिष्ठ पत्रकार हेमंत एक लंबी बातचीत में बताते हैं –‘चम्पारण के पूरे आन्दोलन में पीर मुहम्मद मूनिस ही एक ऐसे व्यक्ति थे, जो पढ़े-लिखे हैं. ज्ञानी हैं. और ज्ञान के मार्फत आंदोलन में अपना योगदान दिया. बाक़ी सब नेतागिरी कर रहे थे. राजनीति कर रहे थे. पर मूनिस ने उस समय राजनीति नहीं की. सिर्फ एक सच्चे हिन्दुस्तानी के रूप में काम किया. गांधी का हिन्दुस्तानी मतलब –पीर मुहम्मद मूनिस…’

मूनिस का अभावग्रस्त जीवन

देश की आज़ादी के लिए मूनिस ने अपना पूरा जीवन अभाव में जिया और अभाव में ही 24 सितम्बर, 1949 को दिवंगत हो गए.

पीर मुहम्मद मूनिस के अभाव ग्रस्त जीवन की कहानी उनकी अंतिम वारिस उनकी पोती हाज़रा खातुन भी सुनाती है. वो बताती हैं कि ‘दादा के पास खेत था, लेकिन वो खेती पर ध्यान ही नहीं देते थे. हमेशा लिखने-पढ़ने में ही अपना समय लगाया. अंग्रेज़ों ने भी आर्थिक रूप से काफी क्षति पहुंचाई. हमारी मां बताती हैं कि वो कभी-कभी सिर्फ एक मिर्च पीसकर खा लेते थें. मिर्ची लगने पर खूब सारा पानी पीकर अपना पेट भरते थे.’ 

मूनिस के ख़ानदान की आख़िरी वारिस बची इनकी पोती हाज़रा खातून के शौहर मो. मुस्तफा बताते हैं कि पीर मुहम्मद मूनिस के आखिरी वारिसों में सिर्फ दो पोता-पोती थे. पोता मो. क़ासिम और पोती हाज़रा खातून… पोता मो. क़ासिम दो-तीन साल पहले बेहद ही ग़रीबी के आलम में अल्लाह को प्यारे हो चुके हैं.

सरकार भूल गई इस सच्चे देशभक्त को

मो. मुस्तफ़ा सरकार पर रोष व्यक्त करते हुए कहते हैं  -‘सरकार ने इस सच्चे देश-भक्त को हमेशा के लिए भूला दिया है. उनके नाम पर मेरे घर के सामने वाले रोड का नामकरण किया गया था, लेकिन सरकार ने आज तक कोई बोर्ड नहीं लगाया. चम्पारण को भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अहम स्थान दलाने वाले मूनिस ना यहां की यादों में दिखते हैं, न इतिहास में और न ही सड़को-चौराहों पर. शहर में उनका कोई स्मारक नहीं हैं.’

जेपी आंदोलनकारी व समाजसेवी ठाकूर प्रसाद त्यागी की मांग है कि सरकार उनके नाम पर एक लाईब्रेरी की  स्थापना करे, ताकि देश की युवा पीढ़ी आज़ादी के इस दीवानों को जान सके.

उस ज़माने में उनकी क़लम ने उन्हें ख़ूब पहचान दी. लेकिन ‘क़लम के सत्याग्रही’ पीर मुहम्मद मूनिस आज ग़ुमनाम हैं. पीर मुहम्मद मूनिस का जन्म 1892 में बेतिया शहर के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था. आपके पिता का नाम फतिंगन मियां था. वो अनपढ़ थे और ताड़ी बेचने का काम किया करते थे.

मूनिस मौजूदा दौर की ज़रूरत

पीर मुहम्मद मूनिस ने कभी कहा था –‘वही  भाषा जीवित और जागृत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके.’

लेकिन इतिहास में वही लोग जीवित रहते हैं, जिन्हें उनकी क़ौम याद रखती है. उनकी युवा पीढ़ियां याद रखती है. यह बड़े अफ़सोस और शर्म की बात है कि मूनिस को न सिर्फ उनकी क़ौम ने बल्कि उस समाज ने भी भुला दिया, जिसके लिए वो अपनी आख़िरी सांस तक संघर्ष करते रहे.

मूनिस के जाने के कई दशक बाद भी, भारत को आज़ादी मिलने के बावजूद, ज़मीनी हालात लगभग वैसे ही हैं. धर्म के नाम पर लोगों को वैसे ही बांटा जा रहा है. ग़रीब तबक़े का शोषण तो शायद अंग्रेज़ी दौर से भी आगे निकल गया है. पीर मुहम्मद मूनिस की ज़रूरत जितनी आज है, शायद पहले कभी न थी. अफ़सोस कि आज पीर मुहम्मद मूनिस ही क्या उनके विचार भी गुम से हो गए हैं.

मूनिस मौजूदा दौर की ज़रूरत है, लेकिन चम्पारण के इतिहास को बदलने वाला, इतिहास से ही गुम कर दिया गया यह किरदार अब कहां मिलेगा? हम मूनिस को कहां तलाशें?  धूल खा रही लाईब्रेरियों की किताबों में या अपने भीतर? लाईब्रेरियों या इतिहास में तो मूनिस नहीं हैं, लेकिन शायद हमारे भीतर मिल जाए. क्योंकि मूनिस शोषण के ख़िलाफ़ लड़ने का जज़्बा है, आततायी शासन के ख़िलाफ़ उठने वाली विद्रोह की बुलंद आवाज़ है, दमन के ख़िलाफ़ चीख़ता मज़लूमों का दर्द है, हिन्दू-मुस्लिम मुहब्बत का पाकीज़ा विचार है, सदियों से भारतीय संस्कृति को बांधे रखने वाली भाईचारे की पवित्र डोर है. हिन्दी-उर्दू का मिलाप है. गंगा जमना का संगम है. अपने अंदर मूनिस को तलाशिये, शायद मिल जाए…

TAGGED:Pir Muhammad Munisपीरपीर मुहम्मद मुनिसपीर मुहम्मद मूनिसपीर मुहम्मद मूनिस: एक सच्चा हिन्दुस्तानी...
Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“Gen Z Muslims, Rise Up! Save Waqf from Exploitation & Mismanagement”
India Waqf Facts Young Indian
Waqf at Risk: Why the Better-Off Must Step Up to Stop the Loot of an Invaluable and Sacred Legacy
India Waqf Facts
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts

You Might Also Like

ExclusiveHaj FactsIndiaYoung Indian

The Truth About Haj and Government Funding: A Manufactured Controversy

June 7, 2025
Edit/Op-EdExclusiveIndiaYoung Indian

Weaponization of Festivals in India: Attacks on Rise During Christmas

June 7, 2025
ExclusiveIndiaYoung Indian

Festival of Sacrifice, Eid al-Adha turned hateful for Muslims across India

June 7, 2025
ExclusiveIndiaLeadYoung Indian

Modi’s latest budget cuts a death Knell for Indian Muslims and Minorities

June 7, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?