बेगुनाहों की रिहाई के बजाए गुनहगार पुलिस वालों को बचा रही है सपा सरकार –रिहाई मंच

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BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : रिहाई मंच ने सपा सरकार में 12 मई 2012 को सीतापुर के शकील की आतंकवाद के नाम पर की गई गिरफ्तारी पर सवाल उठाते हुए कहा है कि सपा सरकार ने बेगुनाहों को छोड़ने का वादा तो नहीं निभाया, बल्कि उसकी सरकार द्वारा एनआईए और दिल्ली स्पेशल सेल जैसों को खुली छूट देकर बेगुनाहों को उठवाया गया.

आज जारी प्रेस विज्ञप्ति में रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि सीतापुर के शकील का परिवार 2012 से लगतार कभी सपा नेता राजेन्द्र चौधरी तो कभी अबू आसिम आज़मी से मिलकर व मुख्यमंत्री को भेजे ज्ञापनों के माध्यम से सरकार से मांग करता रहा है कि इस मामले की सरकार जांच करवाए, पर झूठे आश्वासन के सिवाए परिवार को कुछ नहीं मिला.

उन्होंने बताया कि शकील के पिता मुहम्मद युसूफ का बेटे के ग़म में हार्ट अटैक तक हो चुका है. मुहम्मद शुऐब ने कहा कि आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों के सिलसिले में हमने लगातार कहा है कि सुरक्षा व खुफिया एजेंसियां मनगढ़ंत आरोप लगाकार मुस्लिम युवाओं को फंसाती हैं. ऐसे में सरकार को इसकी जांच करानी चाहिए. जिस तरह आरडी निमेष आयोग की एक जांच ने साफ कर दिया कि तारिक़-खालिद आतंकी नहीं थे, बल्कि उन्हें फर्जी तरह से फंसाने वाले असली गुनहगार थे, ऐसे में अन्य मामलों में भी इसी तरह के तथ्य सामने आएंगे. पर सरकारें खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारियों और आतंकवाद की राजनीति को बढ़ावा देने के लिए ऐसी जांचे कराने से न सिर्फ बचती हैं, बल्कि निमेष जांच आयोग जैसे आयोगों की रिपोर्टों पर कार्रवाई नहीं कर यह बताती हैं कि उनके लिए जनता नहीं बल्कि गुनहगार पुलिस वालों के मनोबल की अहमियत ज्यादा है.

रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने कहा कि एनआईए और दिल्ली स्पेशल सेल जैसी संस्थाए यूपी से आतंकवाद के नाम पर बेगुनाहों को बिना राज्य सरकार को बिना आधिकारिक सूचना दिए उठा ले जाती हैं और सरकार कुछ न कर यह साफ करती है कि वह सांप्रदायिक पुलिस वालों के साथ खड़ी हैं.

उन्होंने कहा कि लियाकत शाह के प्रकरण ने साफ कर दिया है कि किस तरह खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां काम करती हैं. लियाकत को भी यूपी के गोरखपुर से गिरफ्तार किया गया था. होना तो यह चाहिए था कि लियाकत, शकील जैसे तमाम बेगुनाहों को यूपी से उठाने वाली बाहरी प्रदेशों की पुलिस के खिलाफ मुक़दमा दर्ज किया जाए, क्योंकि किसी भी मामले में राज्य को आधिकारिक सूचना नहीं दी गई थी.

जिस तरह से इन गिरफ्तारियों में यूपी सरकार का रवैया रहा है वह राज्य की संघीय ढांचे को कमजोर कर रहा है, जो किसी भी सूरत में हमारे लोकतंत्र के लिए बेहतर संकेत नहीं है.

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