धार्मिक अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा और संघ परिवार की धमकियां बढ़ी; शिक्षा, सामाजिक क्षेत्र, असहमति, मीडिया, विज्ञान और संस्कृति पर सरकार का निशाना… पढ़िए नरेन्द्र मोदी सरकार के एक साल पूरे होने पर सिविल सोसायटी की रिपोर्ट…
BeyondHeadlines News Desk
- 26 मई 2014 से लेकर जून 2015 तक ईसाइयों पर हमले के 212 मामले और मुसलमानों पर हमले के 175 मामले सामने आए हैं. इन हमलों में कम से कम 43 लोग मारे गए हैं. इसी दौरान भड़काऊ भाषण के 234 मामले भी सामने आए हैं. इस दौरान केवल एक राज्य असम में आदिवासी समूहों द्वारा मुसलमानों पर हमलों में कम के कम 108 लोग मारे गए हैं.
- ख़ुद सरकार इस बात को स्वीकार करती है कि नई सरकार बनने के पहले कुछ महीनों (मई-जून 2014) में 113 सांप्रदायिक घटनाएं हुई थीं, जिनमें 15 लोग मारे गए थे और 318 अन्य घायल हुए थे.
- अल्पसंख्यकों को आश्वस्त करने के लिए सरकारी प्रयास भी कुछ ख़ास नहीं हुए हैं. हिंसा की जांच के बजाय, सरकार ने इसके लिए ऐसे कारण बताए कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान भी इस ओर आकर्षित हुआ और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी समेत कई गणमान्य व्यक्तियों ने इस पर अपने विचार प्रकट किए थे.
- नई सरकार नागरिक समाज और किसी तरह की असहमति को भी बर्दाश्त नहीं करना चाहती है. इंसाफ़, पीपुल्स वॉच, सबरंग ट्रस्ट, सिटीज़न्स फ़ॉर जस्टिस एंड पीस, ग्रीनपीस इंडिया जैसी संस्थानों को लगातार परेशान किया जा रहा है. कई दूसरों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से धमकाया जा रहा है. कुछ ख़ास सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को चुन-चुन कर निशाना बनाया जा रहा है.
- अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा में पुलिस को भी अक्सर शामिल पाया गया है. छत्तीसगढ़ के गांवों में हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्मों के पुजारियों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने के आदेश दिए जा रहे हैं.
- उच्चतम स्तर पर न्यायिक प्रणाली के साथ छेड़छाड़, नागरिकों के हाथ से ये आख़िरी हथियार को भी छीनने की एक कोशिश है. कल्याणकारी योजनाओं को तेज़ी से ख़त्म किया जा रहा है और कॉरपोरेट सेक्टर के इशारे पर कई नीतियों बदली जा रही हैं.
- मिथक और अंधविश्वास को सरकारी प्लेटफार्मों के ज़रिए बढ़ावा दिया जा रहा है. वैज्ञानिक संस्थाओं में राजनीतिक हस्तक्षेप हो रहे हैं और उनके बजट में कटौती की जा रही है.
यह तमाम बातें उस रिपोर्ट के हिस्सा हैं, जिसे आज भारत के सिविल सोसायटी के ज़रिए जारी किया गया है. ‘365 दिन-मोदी के शासन में प्रजातंत्र और धर्निरपेक्षता’ के नाम से जारी की गई इस रिपोर्ट में कई बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है. जाने माने समाजसेवी जॉन दयाल और शबनम हाशमी ने इस रिपोर्ट को संपादित किया है. रिपोर्ट को बनाने में हर्ष मंदर, राम पुनियानी, सेड्रिक प्रकाश, अपूर्वानंद, कैरेन गैब्रियल, पीके विजयन, सीमा मुस्तफ़ा, कीर्ति शर्मा, वीबी रावत, ध्रुव संगारी और पी वीएस कुमार जैसे समाजसेवी और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का विशेष योगदान रहा है.
इनका कहना है कि इस रिपोर्ट में दर्ज 90% से अधिक मामले उन 600 हिंसक वारदातों से अलग हैं, जिनका अगस्त 2014 में इंडियन एक्सप्रेस अख़बार ने ख़ुलासा किया था.
रिपोर्ट तैयार करने वाले बताते हैं कि मानव और वित्तीय दोनों संसाधनों की कमी के कारण पिछले एक साल के दौरान जो कुछ हुआ है, उसका केवल एक अंश ही हम इस दस्तावेज़ में पेश कर सकें हैं. लेकिन ये रिपोर्ट इस मिथक को तोड़ने में कामयाब रही है कि मौजूदा सरकार के तहत कोई दंगा नहीं हुआ है. अब रणनीति बदल गई है, क्योंकि संघ परिवार को इस बात का एहसास हो गया है कि बड़े पैमाने पर हिंसा अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान आकर्षित करती है और इसलिए अब बहुत ही सुनियोजित ढंग से पूरे भारत में स्थानीय स्तर पर हिंसा और नफ़रत फैलाने की राजनीति की जा रही है, जिससे लोंगों को बांटा जा सके और अल्पसंख्यकों को और हाशिए पर धकेला जा सके.
यह रिपोर्ट बताती है कि भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार पूरी तरह से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नीतियों को लागू कर रही है. और ये बिना किसी रोक-टोक के हो रहा है, जैसा कि मुसलमानों और ईसाइयों के ख़िलाफ़ हिंसा भड़काने के लिए संघ के नेताओं के भाषणों के मामलों में सरकार की तरफ़ से कोई कार्रवाई न करने से साफ़ पता चलता है.
हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने हिंसा की निंदा करते हुए कुछ बयान अवश्य दिए हैं, लेकिन हिंसा करने वालों की पहचान और सज़ा दिलाने के लिए कुछ नहीं किया है. कोई भी राजनेता या संघ कार्यकर्ता दंडित नहीं किया गया है. संघ प्रमुख मोहन भागवत अल्पसंख्यकों को निशाना बनाते हुए लगातार अपमान जनक भाषण देते रहे हैं. जून में उन्हें जेड-श्रेणी की सुरक्षा देने का फ़ैसला किया गया जो कि भारत के गृहमंत्री को दी जाने वाली सुरक्षा स्तर के बराबर है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आज़ाद भारत में इससे पहले कभी भी सत्तारूढ़ गठबंधन के मंत्रियों और सांसदों द्वारा इस तरह से सार्वजनिक रूप से ज़हर नहीं उगला गया है. भाजपा सांसद साक्षी महाराज मदरसों को ‘आतंक का गढ़’ कहते हैं और हिंदू महिलाओं को चार बच्चे पैदा करने की सलाह देते हैं. साक्षी महाराज ने ही गांधी के क़ातिल नथूराम गोडसे को ‘देशभक्त’ और ‘शहीद’, कहा था. भाजपा के एक और सांसद योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ‘एक हिंदू के धर्म परिवर्तन के बदले, 100 मुस्लिम लड़कियों का धर्म परिवर्तन किया जाएगा.’मोदी सरकार में मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने राम की पूजा नहीं करने वाले को ‘हरामज़ादे’ कहा तो शिवसेना के एक सांसद ने रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने वाले एक मुस्लिम कैंटीन स्टाफ़ के मुंह में ज़बरदस्ती खाना ठूंस दिया. शिवसेना के ही एक दूसरे सांसद संजय राउत ने मुसलमानों से मताधिकार छीनने की बात कही.
आप पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ सकते हैं:
365 Days Democracy and Secularism Under The Modi Regime – A Report