Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
भारतीय मीडिया द्वारा योगा के गहन प्रचार-प्रसार के कारण जनता में कुछ गंभीर अंधविश्वास पनपे हैं और इसे ‘हर मर्ज़ की दवा’ बताया जाने लगा है. हालांकि स्कूल में सिखाया जाने वाला व्यायाम योगा से कहीं अधिक उपयोगी व लाभदायक है, लेकिन कर्मकांडी मानसिकता से ग्रसित मीडिया ने योगा को इतना प्रचारित किया है कि ‘आधुनिक व्यायाम पद्धति’ फ़िज़ुल साबित हो गई है.
दरअसल, योगा किसी प्रकार की चिकित्सा पद्धति नहीं, न इससे कोई गंभीर रोग ठीक हो सकता है. अगर ‘योगा’ के इतिहास की बात की जाए तो कहीं भी इसका ज़िक्र नहीं मिलता. योग व आयुर्वेद के प्राचीनतम ग्रंथों में कहीं भी आसनों द्वारा रोगों के इलाज की चर्चा नहीं है. आज जो आसन ‘योगा’ के नाम पर प्रचारित किए जा रहे हैं, वे योग के प्राचीनतम ग्रंथ यानी ‘पतंजलि के योगसूत्र/योग दर्शन’ में कहीं भी दिखाई नहीं देते. इस ग्रंथ में कुल 194 सूत्र हैं, जिनमें से केवल एक सूत्र में ‘आसन’ शब्द का प्रयोग हुआ है. असल में उस समय के जादूगर (तांत्रिक) ‘सिद्धि’ प्राप्त करने के नाम पर कभी सिर के बल खड़े होते तो कभी उल्टे लटकते, आज उसी को ‘योगा’ कहकर बेचा जा रहा है.
ख़ैर, ये तो थी प्राचीनकाल की बात, लेकिन बहुत बाद की पुस्तकों में जहां ‘योगा’ का चर्चा मिलती है, उनके लेखक न तो चिकित्साशास्त्री थे और न ही मरीज़ों का इलाज करने का किसी तरह का अनुभव उनके पास था. यही कारण है कि वे ‘आसन’ प्राचीन आयुर्वेदीय ग्रंथों में भी नहीं पाए जाते.
आज सरकारी सहयोग से ‘योगा’ को बाज़ार की वस्तु बनाने की पूरी कोशिश की जा रही है, इसमें मीडिया का सहयोग भी है. इसके माध्यम से तरह-तरह के रोगों का इलाज करने के दावे किए जा रहे हैं. कोई ‘योगा’ के किसी ‘आसन’ को मधुमेह का इलाज बताता है तो कोई ब्लड प्रेशर को इसके माध्यम से समाप्त करने के दावे कर रहा है. यहां तक शर्तिया पुत्र की प्राप्ति के दावे भी ‘विश्व विख्यात’ बाबा रामदेव जी कर चुके हैं.
हालांकि किसी भी योगशास्त्रीय ग्रंथ में तो क्या, किसी आयुर्वेदीय ग्रंथ तक में न शूगर लेवल जांचने का कोई साधन है और न ब्लड प्रेशर मापने का. लेकिन हद तो यह है कि आज योग बाबाओं द्वारा कैंसर का इलाज तक बताया जा रहा है. हृदय संबंधी सभी रोगों का इलाज, यहां तक कि वे सब बीमारियां जो आज चलन में है, उनका भी शर्तिया इलाज योग-आसनों द्वारा करने के दावे देखे व सुने जा सकते हैं. कुछ लोगों ने तो प्राचीन आसनों को यौन-शक्ति प्राप्त करने के लिए बेचना आरंभ कर दिया है.
एक बात ग़ौर करने की है कि प्राचीन काल में जब ‘योगा’ की पुस्तकें लिखी गई थी, उस समय तो कैंसर, एड्स, ब्लड प्रेशर, हार्टअटैक जैसी बीमारियों का नामोनिशान तक नहीं था. लोग जानते भी न थे कि इस तरह की कोई बीमारी भी होती है. और न संस्कृत के किसी ग्रंथ में इन बीमारियों के नाम मिलते हैं, तो फिर यह अचानक इनके इलाज ‘योगा’ के माध्यम से कैसे संभव हो गए?
दूसरी सबसे क़ाबिले ग़ौर बात यह है कि इन योगसनों से बीमारियां दूर करने वालों के प्राचीन व आधुनिक दावों को कभी भी सत्यापित नहीं किया गया. ऐसे में यह सोचना कि दवाओं को छोड़कर योगासनों द्वारा बीमारियां दूर हो सकती हैं, अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना होगा क्योंकि स्वास्थ्य एक बहुत महत्वपूर्ण और अमूल्य वस्तु है. ग़लत धारणाओं व हाथों में पड़कर आदमी को अपने प्राणों से भी हाथ धोने पड़ सकते हैं. इसलिए भलाई इसी में है कि हमें सिर्फ नीमहकीमों से ही नहीं, बल्कि ‘योगा’ वालों से भी बचकर रहना चाहिए.
अधिक दिन नहीं हुए जब बाबा रामदेव शर्तिया पुत्र प्राप्ति की दवा संबंधी विज्ञापन में नज़र आए. जिसको लेकर पूर्व की यूपीए सरकार के केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कड़ा रुख़ अपनाते हुए उत्तराखंड सरकार को भेजे पत्र में बाबा रामदेव के ख़िलाफ़ कार्यवाही के निर्देश दिए थे. बात यहीं ख़त्म नहीं होती, बल्कि बाबा रामदेव अपने हरिद्वार स्थित दिव्य योग फार्मेसी की दवाओं में मानव अंगों की मिलावट को लेकर भी विवादों में फंस चुके हैं. ऐसे में हम अगर योग और उससे जुड़े व्यक्तियों पर यक़ीन कर लें, यह अंधविश्वास नहीं तो और क्या है?
