अंबेडकर नहीं मनु के सिद्धांत पर चलाया जा रहा है देश –रिहाई मंच

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People carry the body of Yakub Abdul Razak Memon, outside his family residence during his funeral in Mumbai, India, Thursday, July 30, 2015. Memon, 53, an Indian accountant and the only person sentenced to death for his role in the 1993 Mumbai bombings that killed 257 people ó the country's worst terrorist attack ó was hanged Thursday on his birthday, after the president rejected a last-minute mercy plea amid a debate over the capital punishment. (AP Photo/Rafiq Maqbool)

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : रिहाई मंच ने राष्ट्रपति और देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा याकूब मेमन को दी गई फांसी को पूरी दुनिया के सामने किया गया फर्जी एनकाउंटर क़रार देते हुए कहा कि इसने साबित किया कि कार्यपालिका, व्यवस्थापिका के साथ ही साथ न्यायपालिका भी देश के लोकतांत्रिक ढांचे को नेस्तानाबूत करने पर आमादा है. इस घटना ने यह भी साबित किया कि पुलिस का मनोबल बचाने के नाम पर बाटला हाउस फर्जी एनकाउंटर जैसी घटनाओं की जांच न करवाने वाली न्यायपालिक खुद भी इसमें बराबर की भागीदार है.

रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि भारत के संविधान की मूल आत्मा में निहित धर्मनिरपेक्षता का गला घोंटते हुए याकूब मेमन को दी गई फांसी इंसाफ़ का क़त्ल है. दुनिया का इतिहास गवाह है कि जिस मुल्क में इंसाफ़ नहीं होता वह मुल्क बिखर जाता है. इंसाफ़ के बिना कोई भी व्यवस्था काम नहीं कर सकती.

उन्होंने कहा कि डा0 भीमराव अंबेडकर ने मनुष्य को मनुष्य से भेद करने और हिंसा करने वाली जिस मनुस्मृति को जलाकर समता और समानता की बुनियाद पर भारत के संविधान की रचना की उसको धता बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह मनुस्मृति तक को याकूब मेमन की फांसी का आधार बनाया उसने साबित कर दिया है कि देश अंबेडकर नहीं मनु के सिद्धांत पर चलाया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि मुंबई सांप्रदायिक हिंसा के लिए श्रीकृष्णा आयोग द्वारा दोषी बताए गए बाल ठाकरे को कभी गिरफ्तार तक नहीं किया गया, बल्कि उनकी मौत पर राजकीय सम्मान दिया गया. वहीं याकूब जो खुद गवाह भी था, की राजकीय हत्या की गई उसने साफ़ कर दिया है कि वर्तमान सरकार मुस्लिमों को दोयम दर्जे का नागरिक मानती है.

शुऐब ने कहा कि राष्ट्रपति ने याकूब मेमन की फांसी के खिलाफ़ रहे पूर्व रॉ अधिकारी बी. रामन के तथ्यों नकारते हुए जिस तरह से उसकी दया याचिका को खारिज किया, उसने साबित किया कि देश के राष्ट्रपति को अपने नागरिक के जीवन से ज्यादा उन दोषी खुफिया और सुरक्षा अधिकारियों के उस आपराधिक मनोबल की चिंता है, जो सांप्रदायिक व नस्लीय हैं. वहीं जिस तरीके से सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने याकूब मेमन की याचिका को खारिज किया और याचिका खारिज होने के 14 दिन बाद ही फांसी होने के तर्क को नकार दिया, उसने साबित किया कि एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के ही न्यायाधीश दवे जिन्होंने मनुस्मृति को आधार बनाते हुए फांसी की बात कही वह उनके साथ है. जबकि याकूब के डेथ वारंट से लेकर उसे अंतिम समय तक इंसाफ़ हासिल करने के अभी मौके थे, जिसको न्यायालय द्वारा ख़त्म कर दिया गया.

रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने कहा कि गुजरात 2002 और इशरत जहां जैसे बेकसूरों का क़त्ल करवाने वाली भाजपा सरकार ने याकूब के इंसाफ़ पाने के हक़ को छीनते हुए पूरी दुनिया के सामने गुंडई और दबंगई से न्यायपालिका द्वारा दिन दहाड़े फर्जी एनकाउंटर करवाया है.

उन्होंने कहा कि याकूब की फांसी के बाद जिस तरह से कांग्रेस समेत सपा के आज़म खान जैसे नेताओं ने इसे सही कहा उसने साफ किया कि यह तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल हिन्दुत्वादी फांसीवाद के सामने न सिर्फ घुटने टेक चुके हैं बल्कि सांप्रदायिक हिन्दुत्वादी वोटों के खातिर नरम हिन्दुत्वादी नीतीयों को आत्मसात कर चुके हैं.

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