Rajeev Kumar Jha for BeyondHeadlines
देश में स्मार्ट सिटी की बात करने वाले अब गांवों को भूल गए हैं. सरकार का कोई भी पदाधिकारी अब गांवों की ओर अधिक ध्यान नहीं देता. कुछ ऐसे ही कहानी मोतिहारी के गोढ़वा गाँव की भी है.
80 वर्षीय गरीब एवं दलितवर वृद्धा मदीना खातून को आज तक वृद्धा पेंशन नहीं मिला है. वृद्धा न केवल गरीब है वरन दाने-दाने को मोहताज भी है. मदीना खातून के पति रमजान मियाँ की आँखें भी वृद्धा पेंशन की आस में पथरा सी गयी है.
मदीना कहती हैं –कई बार वार्ड सदस्य द्वारिका प्रसाद एवं वसुधा संचालक सुधीर कुमार वृद्धा पेंशन दिलवाने के नाम पर पैसे ले गए. किसी तरह मजदूरी करके जमा किया हुआ पैसा बेमन से ही सही इस आशा में दे दी कि कहीं बुढ़ापे का सहारा मिल जाए. लेकिन तब से आज तक कई साल बीत गए. वार्ड, मुखिया बदलते रहे पर पेंशन नहीं मिला.
हालांकि सुधीर इस आरोप को बे बुनियाद बताते हैं, लेकिन उक्त वृद्धा को पेंशन क्यूँ नहीं मिला इस बात को टाल जाते हैं.
रमजान मियाँ भी पेंशन की चर्चा अब नहीं करते. उन्हें अब चाहिए भी नहीं. खांसते हुए लाठी संभाल कर वे कहते हैं –अब जाने के दिन आ गए हैं. अंतिम वक्त अल्लाह को याद करते बीते इतना ही चाहिए. अब पेंशन क्या होगा बाबू!
पूरे गाँव की कमोबेश यहीं स्थिति है. गाँव की लगभग अस्सी फीसदी वृद्धों को वृद्धा पेंशन नहीं मिलता.
गोढ़वा गाँव में पेयजल के लिए हैण्ड पम्प एवं बिजली की कमी भी है. भीषण गरमी में शायद हीं कहीं पीने के पानी के लिए चापाकल मिले.
गाँव के एक मजदूर शंकर प्रसाद (40) कहते हैं -“पीने के पानी की सबसे बड़ी समस्या है यहाँ. जो चापाकल हैं भी वे ख़राब हो गए हैं. मुखिया द्वारा न तो इनका मरम्मत कराया जाता है और न हीं नए पाइप लगाए जाते हैं. ऐसे में पीने के पानी के लिए दर दर भटकना होता है.”
स्थानीय मुखिया रविभूषण प्रसाद से संपर्क करने पर वे बताते हैं –जो भी चापाकल का फंड आया है उसका पम्प लगा दिया गया है. अब हर घर तो चापाकल लगाया नहीं जा सकता. लोग यह बात समझते नहीं हैं. लेकिन उनसे यह पूछने पर कि जो चापाकल ख़राब हो गए हैं, उनको ठीक क्यूँ नहीं कराया जा रहा है. इस पर वो कहते हैं –जल्द ही प्रखंड से इसके लिए फंड आने वाला है. नए चापाकल भी गड़ेंगे एवं ख़राब चापाकलों की मरम्मत भी हो जायेगी.
गोढ्वा की समस्या यहीं ख़त्म नहीं होती. गाँव में स्थित आँगन बाड़ी केन्द्रों का भी खस्ताहाल है. शनिचरा टोला स्थित केंद्र संख्या-67 पर बच्चों की संख्या नगण्य थी. पूछने पर केंद्र सहायिका आरती कुमारी नें बताया कि गर्मी के कारण बच्चे केन्द्रों पर नहीं आ पा रहे हैं.
गाँव के ही एक प्रबुद्ध बिनोद प्रसाद कुशवाहा कहते हैं –एक तरफ सरकार आंगनबाड़ी केन्द्रों से लेकर अनेक सुविधाएं बहाल करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करती हैं, बावजूद इसके विभागीय पदाधिकारियों के निरीक्षण के अभाव में सारी योजनायें, सुविधाएं बस कागजों में पूरी हो रही हैं.
पदाधिकारियों की नज़रों से ओझल यह किसी एक गाँव की कहानी नहीं है. BeyondHeadlines टीम द्वारा दौरा किये गए पचास गाँवों में बमुश्किल एक दो गाँव ही ऐसे मिले हैं, जहाँ आँगनबाड़ी केन्द्रों, सरकारी स्कूलों, आशा, उपस्वास्थ्य केन्द्रों आदि की निरिक्षण हुआ हो.
गोढ्वा जैसे गांवों के पिछड़ने का संभवतः यह सबसे महत्वपूर्ण कारण है. पूर्वी मोतिहारी के कई गाँव में वैसे गरीबों के नाम बीपीएल से काट कर हटा दिए गए हैं, जिनका नाम सबसे पहले होना चाहिए था. कुछ वैसे लोगों को इंदिरा आवास दिए गए हैं जो सुविधा संपन्न हैं.
आखिर इस तरह के हालात हो क्यूँ रहे हैं. इस बाबत बात करने पर मोतिहारी के तत्कालीन बीडीओ मनोज कुमार कहते हैं –किसी भी ग्रामीण को किसी तरह की कोई समस्या होती है, तो उन्हें तत्काल प्रखंड कार्यालय आकर अपनी बात हम लोगों के समक्ष रखनी चाहिए. हम उनके समस्याओं के निदान के लिए हीं बैठे हैं. ग्रामीणों के अधिकार के साथ खिलवाड़ करने वाले या उनसे गलत तरीके से पैसे वसूलने वाले पर सख्त कार्रवाई की जायेगी.