मोदी जी! हम दलितों से भी तो ‘मन की बात’ कीजिए…

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Savita Ali for BeyondHeadlines

साथियों! एक ऐसा सच जिसको सुनकर, देखकर हमारी रूह कांप जाती हैं. वो है हमारी दलित महिलाओं का सच, उनके ऊपर होने वाले अत्याचारों का सच, आज भी हर गली-चौराहे पर नंगा घुमाने का सच… आज भी जाति के आधार पर गंदी-गंदी गलियां देने का सच… सरेआम बलात्कार, सामूहिक बलात्कार करने का सच… उनकी हत्या करने तक का सच…

सोचने की बात है कि आये दिन हमारी दलित महिलाओं का बद से बद्तर हालत होने के बावजूद भी हमारी सरकार, हमारा प्रशासन चुप है, क्योकि ये देश, ये समाज और राज्य दलित महिलाओं के मुद्दे को अपना मुद्दा नहीं समझते हैं.

दुःख की बात हैं कि जो देश हमारा है. जिस देश के हम मूलनिवासी हैं. उसी देश में हमें नीचा, अछूत और गन्दा समझा जाता है. हमारी दलित महिलाओं की सरेआम इज्ज़त उतारी जाती है. हत्या की जाती है. वो देश सब कुछ अपनी नंगी आँखों से सिर्फ़ तमाशा देख रहा हैं.

कोई कुछ करने वाला नहीं हैं. कोई न्याय देने या दिलवाने वाला नहीं है. ऐसे में न्याय कहा से मिलेगा? सरकार उनकी है. सत्ता उनकी है. पुलिस वही लोग हैं. जज भी वही लोग हैं और अत्याचार करने वाले भी वही हैं. ऐसे देश और ऐसी वयवस्था से हम को न्याय मिलेगा? अब हमें न्याय को छिनना होगा, हर उस व्यक्ति से जो नहीं चाहता कि हम आगे बढें.

अब हमारी दलित महिलाओं की न्याय की लड़ाई लड़ने के लिए दलित महिलाओं के मुद्दे वैश्विक स्तर तक लेकर जाने की ज़रुरत है.

बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने कहा था -“अधिकार मांगने से नहीं छिनने से मिलेगा.” अब हमको अपने अधिकार को छिनना है.

सोचने की बात है कि देश में आये दिन दलित महिलाओं के साथ बलात्कार, सामूहिक बलात्कार किया जाता है. उनको सरेआम गाँव में गलियों में नंगा करके घुमाया जाता है. डायन कहकर कपड़े फाड़े जाते हैं. एसिड हमला किया जाता है. जब दलित महिलाओं की बात आती है, तब कहां चला जाता है राज्य का गौरव, गरिमा मान-सम्मान… कहां चला जाता है लोगो का गुस्सा… जज्बा… क्या ये मुद्दा लोगों का नहीं? मोदी जी! हम दलित महिलाओं से भी ‘मन की बात’ कीजिए. इससे ज़्यादा उम्मीद हम दलित महिलाओं को है भी. आप भी  संविधान के विरोधी सोच के लोंगों में से हैं, जो दलितों को सिर्फ़ पैर की धूल समझते हैं. अगर सच में हिम्मत है आपमें तो एक बार देश में मनु-स्मृति को जलाकर दिखाइए… चलिए! आप न सही, अपने दो चेले (रामविलास पासवान व जीतन राम मांझी) से ही ये काम करवा दीजिए… वो दोनों तो खुद को दलितों के मसीहा जो समझते हैं…

ये आपसे नहीं होगा मोदी जी… आप तो वैसे भी महिला विरोधी हैं. जब आप अपनी पत्नी की नहीं हो सके, तो दलित महिलाओं के अधिकार आप कैसे उनको सौंप सकते हैं.

(लेखिका पटना हाई कोर्ट में अधिवक्ता और महिला अधिकार कार्यकर्ता हैं.)

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