अफ़रोज़ आलम साहिल, BeyondHeadlines
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की वेबसाईट पर मौजूद जानकारी बताती है कि इस राहत कोष में 28 फरवरी, 2018 तक कुल 3229.76 करोड़ रूपये मौजूद हैं. बावजूद इसके केन्द्र सरकार की ओर से केरल बाढ़ में सिर्फ़ 600 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता देने की घोषणा की गई है.
बता दें कि मीडिया में आए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ अब तक 357 लोगों की मौत हो चुकी है. हालांकि वास्तविक आंकड़े इससे कहीं अधिक हैं. वहीं हज़ारों गायब हैं और हज़ारों को अब भी मदद का इंतज़ार है.
हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह भी कहा है कि, ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से बाढ़ के दौरान मारे गए लोगों के परिजनों को दो लाख रुपये और गंभीर रूप से घायल लोगों को 50,000 रुपये की सहायता राशि दी जाएगी.’
‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष’ का इतिहास
इस कोष की स्थापना देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की जनवरी 1948 में जारी अपील से हुई थी, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान से आए विस्थापितों की सहायता के लिए प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष बनाया था. उस अपील के मुताबिक़ फंड का संचालन एक कमेटी करेगी, जिसमें प्रधानमंत्री, कांग्रेस अध्यक्ष, उप प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, टाटा न्यासियों का प्रतिनिधि और प्रधानमंत्री राहत कोष की प्रबंध समिति में फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स द्वारा नामित सदस्य होंगे. लेकिन पीएमओ की वेबसाइट के मुताबिक़ सारे निर्णय पीएम ही विवेक से करते हैं.
अब इस कोष का इस्तेमाल बाढ़, चक्रवात, भूकंप, दुर्घटनाओं–दंगों के पीड़ितों को राहत देने के अलावा दिल की सर्जरी, गुर्दा प्रत्यारोपण, कैंसर जैसी गंभीर और महंगे इलाज के लिए भी होता है. यह फंड बजटीय प्रावधान से नहीं, बल्कि नागरिकों, कंपनियों, संस्थाओं से मिले दान से संचालित होता है. इसमें दान करने वालों को अंशदान पर इनकम टैक्स भुगतान में छूट मिलती है. लेकिन इस फंड से मिलने वाली सहायता के पात्र व्यक्तियों के चयन की कोई प्रक्रिया नहीं है. सहायता पूरी तरह से प्रधानमंत्री के विवेक और उनके निर्देशों के अनुसार दी जाती है. इस कोष का काम पीएमओ के संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी राहत कोष के सचिव के तौर पर देखता है, जबकि उनकी सहायता के लिए निदेशक स्तर का अधिकारी तैनात होता है. इस कोष का ऑडिट संवैधानिक संस्था कैग नहीं, बल्कि बाहरी चार्टर्ड एकाउंटेंट करता है.