BeyondHeadlines News Desk
पटना : हिन्दी के शिखर कवियों में से एक प्रो. अरुण कमल ने कहा कि संपत्ति में अधिकार के बिना आज़ादी नहीं मिल सकती. उन्होंने कहा कि अच्छा अनुवाद वह है, जो अपनी भाषा में वह चीज़ लाए, जो उस भाषा में नहीं है.
वे आज जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान में यादवेंद्र द्वारा संकलित और अनूदित पुस्तक ‘‘तंग गलियों से भी दिखता है आकाश’’ पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे.
इसमें दुनिया के क़रीब सभी महादेशों की दो दर्जन से अधिक स्त्री-लेखकों की चुनिंदा कहानियों को लिया गया है. कार्यक्रम का आयोजन संस्थान और ‘‘समन्वय’’ के संयुक्त तत्वावधान में हुआ.
इस किताब के बहाने घर और बाहर संघर्ष करती स्त्रियों और उनकी राजनीतिक चेतना पर चर्चा करते हुए साहित्यकार प्रेमकुमार मणि ने कहा कि पूरी दुनिया में स्त्रियों का संघर्ष कमोबेश एक जैसा है. संकलित कहानियां आश्वस्त करती हैं कि आधी आबादी में राजनीतिक चेतना से दुनिया सुंदर बनेगी. मणि ने कहा कि साहित्य भी एक लंबी राजनीति है.
विमर्श को आगे बढ़ाते हुए कहानीकार ऋषिकेश सुलभ ने कहा कि मनुष्य के स्तर पर हमें इतना संवेदनशील बनना होगा कि हम अपनी दुख को स्त्रियों की दुख के साथ जोड़ सकें. स्त्रियों को पुरुष-सत्ता से लड़ना होगा. यह सिर्फ़ विदेशी स्त्रियों की नहीं, हमारी भी कहानी है.
इस अवसर पर प्रमोद सिंह, दानिश और अपूर्वा ने भी अपने विचार रखें.
यादवेंद्र जी ने अपनी संकलित पुस्तक और रचना-कर्म पर प्रकाश डाला. संस्थान के निदेशक श्रीकांत ने श्रोताओं को यादवेंद्र का लेखकीय परिचय कराया. अध्यक्षता प्रो. रामवचन राय ने की. कार्यक्रम का संचालन सुशील कुमार ने किया. अतिथियों का स्वागत वीणा सिंह ने की, जबकि धन्यवाद ज्ञापन नीरज ने की.
इस अवसर पर आलोक धन्वा, शेखर, प्रभात सरसिज, इन्द्रारमण उपाध्याय, कन्हैया भेलारी, रेशमा, प्रेम भारद्वाज, प्रो. मधु पांडेय, प्रो. रीता सहित कई कवि, कहानीकार, रंगकर्मी, साहित्यकार, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए.