India

सलीम मुल्ला : इनकी बदौलत खुलेगी भारत की पहली ‘स्किल यूनिवर्सिटी’

Afroz Alam Sahil, BeyondHeadlines 

दिल्ली: पिछले साल महाराष्ट्र सरकार ने औरंगाबाद में ‘स्किल यूनिवर्सिटी’ खोलने के लिए सौ एकड़ ज़मीन और सौ करोड़ रूपये देने का ऐलान किया. 

बता दें कि अगर ऐसा हुआ तो ये भारत में पहली ‘स्किल यूनिवर्सिटी’ होगी. हालांकि सरकार की ये घोषणा अब तक ज़मीन पर नहीं उतर सका है. लेकिन एक शख़्स लगातार इसे ज़मीन पर उतारने की कोशिश में लगा हुआ है. इस शख़्स का नाम है —सलीम मुल्ला

BeyondHeadlines से बातचीत में पुणे के सलीम मुल्ला बताते हैं कि, हम लोग अब तक औरंगाबाद के ज़िला कलेक्टर को चार वक़्फ़ और सरकारी ज़मीनें दिखा चुके हैं, लेकिन यहां के ज़िला कलेक्टर की इसमें कोई दिलचस्पी नज़र नहीं आ रही है. अभी तक सरकार ने फंड भी रिलीज़ नहीं किया है, लेकिन उम्मीद है कि चुनाव के पहले सरकार फंड रिलीज़ कर देगी.  सलीम मुल्ला इस संबंध में दिल्ली आए हुए हैं.

सलीम मुल्ला कहते हैं कि ये मेरे अकेले की कोशिश नहीं है. इस काम का असल क्रेडिट रिटायर्ड आईआरएस ए.जे. खान और मेरे दोस्त विलासत अहमद वासले को जाता है.  

प्रस्तावित ‘स्किल यूनिवर्सिटी’ का नक़्शा…

54 साल के सलीम मुल्ला की कहानी भी संघर्षों से भरी पड़ी है. महाराष्ट्र के सतारा ज़िले में कन्नरवाड़ी गांव में पैदा हुए सलीम का बचपन काफ़ी मुश्किल दौर में गुज़रा है. इनके पैदा होने से 40 दिन पहले ही इनके पिता ये दुनिया छोड़कर हमेशा के लिए जा चुके थे. इनकी मां ने उस दौर में लोगों के खेतों व घरों में मज़दूरी करके इन्हें पढ़ाया–लिखाया, जब लोगों के दिलों में तालीम की कोई अहमियत नहीं थी. दसवीं के बाद इनका दाख़िला इंटर (साईंस) में कोल्हापूर के एक स्कूल में हो गया. लेकिन पैसे के अभाव में ग्यारहवीं के बाद स्कूल जाना बंद हो गया. इस बीच किसी की सलाह पर इन्होंने आईटीआई में दाखिला लिया. साथ ही इंटर (आर्ट्स) के भी छात्र बने.

सलीम के ज़ेहन का पता आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि इन्होंने उस दौर में अपनी दसवीं की परीक्षा में 69 फ़ीसद नंबर लाया, जबकि उस दौर में बच्चों का पास होना भी मुश्किल होता था. सलीम बताते हैं कि, आईटीआई में इलेक्ट्रिशियन की पढ़ाई के साथ-साथ काम करना भी शुरू किया. खुद की दुकान भी खोली. इधर बारहवीं की परीक्षा भी फर्स्ट डिवीज़न से पास किया. आईटीआई के बाद नौकरी भी लगी, लेकिन सलीम को अपना काम करना ही पसंद था. फिर वो अपने हुनर के दम पर विदेश चले गए. तक़रीबन 7 साल से अधिक सऊदी अरब व बहरैन में काम करने के बाद वापस अपने वतन लौटे और फिर पुणे में रहकर ही संघर्ष करना शुरू किया. फिलहाल अपना टेन्ट हाऊस खोलकर इवेन्ट मैनेजमेंट का काम करते हैं और साथ ही इनका अच्छा-खासा वक़्त सामाजिक कामों में जाता है.

वो बताते हैं कि, इनके टेन्ट हाऊस के सामने एक मदरसा है, जिसमें हर रोज़ तीन टैंकर पानी ख़रीद कर आता था. तब इन्हें याद आया कि उनके घर के पीछे एक पुराना कुंआ हुआ करता था, जिसे लोगों ने कूड़ा-कचरा से भर दिया है. बस यहीं से आईडिया आया कि अगर ये कुंआ फिर से चालू कर दिया जाए तो मदरसे के साथ-साथ यहां के आम लोगों को पानी मिलने लगेगा. बस फिर क्या था. लोगों की मदद से कुंआ खोदने में लग गए. तक़रीबन डेढ़-दो सालों की मेहनत के बाद कामयाबी मिली. आज पाईपलाईन के ज़रिए इसी कुंअे से मदरसे को पानी मिल रहा है. वहीं मस्जिद, मंदिर, स्कूल और यहां के आम लोगों को इसका फ़ायदा मिल रहा है.      

सलीम मुल्ला को इस कामयाबी के बाद एक रूहानी सुकून मिली और खुद को सामाजिक कार्यों में लगाना शुरू किया. ख़ासतौर पर कई यतीम लड़कियों की शादी खुद दिल खोलकर मदद और दूसरों से भी करवाई. बच्चों की शिक्षा पर भी काम किया. इस बीच उनके एक दोस्त ने बताया कि पास के आलमगीर मस्जिद ट्रस्ट की ज़मीन जो कि वक़्फ़ है, को लोगों ने बेच दिया है. बस यहीं से सलीम मुल्ला इस वक़्फ़ की ज़मीन के दस्तावेज़ों की छानबीन में लग गए.

सलीम बताते हैं कि, मुझे वक़्फ़ की कोई जानकारी नहीं थी. मैं तो ये तक नहीं जानता था कि ये वक़्फ़ होता क्या है. लेकिन धीरे-धीरे इसकी समझ बनती गई और मालूम हुआ कि सुप्रीम कोर्ट के नियमन के मुताबिक़ वक़्फ़ जायदाद सदा के लिए वक़्फ़ है, इसकी ख़रीद-बिक्री नहीं की जा सकती. अब जब पूरी समझ बन चुकी थी तो ख्याल आया कि क़ौम की इन ज़मीनों को बचाना ज़रूरी है.

वो बताते हैं कि, वक़्फ़ संपत्तियों के बदहाल हालात मुसलमानों के कमज़ोर हो रहे ईमान की ओर भी इशारा कर रहे हैं. क्योंकि मुसलमान होने का मतलब ही लूट और नाइंसाफ़ी के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करना है. सच तो यह है कि वक़्फ़ संपत्तियां मुसलमानों की नज़रअंदाजी के चलते ही ग़लत हाथों में पहुंच रहीं हैं और गरीबों और मज़लूमों का हक़ मारा जा रहा है. लेकिन शायद हम ये भूल रहे हैं कि ग़रीबों और मज़लूमों के हक़ के लिए लड़ना और ज़ुल्म और दबंगई के आगे खामोश न रहना भी मुसलमान होने का अहम फ़र्ज़ है.

वो कहते हैं कि, वक़्फ़ संपत्तियों की हिफ़ाज़त के लिए किसी कमीशन, काउंसिल या बोर्ड पर निर्भर रहने के बजाए हमें अपनी खुद की आंखे खोलनी होंगी. वक़्फ़ संपत्तियों के बारे में जानकारी हासिल करना हर मुसलमान को अपना फ़र्ज़ समझना होगा. अगर हम अभी भी नहीं जागे तो न नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिदें होंगी और न मस्जिदों व दरगाहों से तेल चुराने के लिए चिराग़…

बस इसी सोच के साथ उन्होंने ‘महाराष्ट्र वक्फ लिबरेशन एवं प्रोटेक्शन टास्क फोर्स’ बनाया. इसका नारा दिया —“ना रुकेंगे, ना झुकेंगे और ना बिकेंगे…” यह टास्क फोर्स वक़्फ़ की ज़मीन के संरक्षण और गैर-क़ानूनी रूप से इस पर कब्ज़ा करने वालों के ख़िलाफ़ काम करेगी.

वो बताते हैं कि, टास्क फोर्स को मज़बूत बनाने के लिए इसमें शिक्षक, सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी, नीति निर्माता, सेवानिवृत्त नौकरशाह, आयकर अधिकारियों सहित अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों को जगह दी गई है.

सलीम आगे बताते हैं कि, इस टास्क फोर्स का अध्यक्ष चुना जाना मेरे लिए सम्मान की बात है. पिछले तीस-चालीस साल में, शिक्षित और तथाकथित संभ्रांत वर्ग द्वारा समाज के लिए कुछ नहीं किया गया. ये लोग महज़ वातानुकूलित कमरों में बैठकर वक्फ़ भूमि को क़ब्ज़ाने की साज़िश रचते रहे. मगर मेरी कोशिश होगी कि मरते दम तक गरीबों के हक़ के लिए लड़ता रहूं.

सलीम साहब ने कोंढ़वा वक़्फ़ की ज़मीन के सारे दस्तावेज़ों को जमा किया. इस ज़मीन पर हुए लूट के सबूतों को भी इकट्ठा किया. इनके इस काम में आरटीआई काफ़ी मददगार साबित हुई. दस्तावेज़ों को इकट्ठा कर आप लगातार प्रधानमंत्री कार्यालय, सेन्ट्रल वक़्फ़ कौंसिल, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और वक़्फ़ बोर्डों को पत्र लिखते रहे. इस बीच क़रीब 1000 करोड़ रुपये के इस ‘कोंढवा वक़्फ़ भूमि घोटाले’ को लेकर नई दिल्ली में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष घयुरल हसन रिज़वी और अल्पसंख्यक एवं वक़्फ़ मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नक़वी से भी मुलाक़ात की, और इन्हें कोंढवा में सक्रिय राष्ट्र और मुस्लिम विरोधी वक़्फ़ माफ़ियाओं के बारे में जानकारी दी. धीरे-धीरे इनकी मेहनत रंग लाई और आज मुख्यमंत्री के आदेश पर इसकी सीआईडी जांच शुरू हो चुकी है.

सलीम बताते हैं कि, उनके इस काम को यहां के स्थानीय मीडिया ने काफ़ी तवज्जो दिया. अब टास्क फोर्स बन जाने के बाद हर दिन हमें वक़्फ़ सम्पत्तियों पर नाजायज़ क़ब्ज़ों की जानकारी मिल रही है. कई मामले तो कोंढ़वा से भी ज़्यादा बड़े हैं. हमारी पूरी टीम इन वक़्फ़ के दस्तावेज़ों को जुटाने में लगी हुई ताकि हम आगे पूरी तैयारी से इसकी लड़ाई लड़ सकें.   

ठीक ही कहते हैं कि इंसान अगर ठान ले तो नामुमकिन कुछ भी नहीं है. इसी हौसले व जज़्बे के साथ काम कर रहे सलीम मुल्ला को अब कामयाबी मिलनी भी शुरू हो चुकी है. कोंढवा वक़्फ़ घोटाले की सीआईडी जांच शुरू हो चुकी है. इन्हें पूरा यक़ीन है कि मुसलमानों के लिए वक़्फ़ की गई ज़मीन उन्हें वापस ज़रूर मिलेगी. सलीम मुल्ला का ख़्वाब है कि इस ज़मीन पर एक विश्वविद्यालय खुले, जो मुसलमानों की तालीम के लिए पूरे विश्व में जाना जाए. इन्हें पूरा यक़ीन है कि उनकी मेहनत व जज़्बा एक दिन ज़रूर रंग लाएगा और उनका ख़्वाब पूरा होगा.

बता दें कि वक़्फ़ की संपत्तियों से मुसलमानों ने आंखें फेरी तो क़ौम के दुश्मनों ने अपनी गिद्ध जैसी नज़रें उस पर गढ़ा दी हैं. आज आलम यह है कि ग़रीबों और मज़लूमों को हक़ देने के लिए वक़्फ़ की गई बेशक़ीमती संपत्तियां अब रियल एस्टेट बनती जा रही हैं और हम ख़ामोश हैं.

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]