BeyondHeadlines News Desk
नई दिल्ली: साहित्य और समाज के अंतर-संबंधों के बीच वर्तमान विमर्श को तलाशते हुए राजधानी दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया के इंजीनियरिंग सभागार में आज एक विशेष अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया.
हिन्दी विभाग, जामिया मिल्लिया इस्लामिया और साहित्य संचय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में मौजूदा दौर के समाज पर आधारित साहित्य की वास्तविकता पर विचार किया गया.
इस मौक़े पर संगोष्ठी के विषय पर अधिक रोशनी डालने के लिए देश के विभिन्न जगहों के अलावा, बेल्जियम और म़ॉरीशस से भी प्रतिनिधियों ने इस कार्यक्रम में शिरकत की.
जामिया तराने के साथ शुरु हुई इस संगोष्ठी में विषय पर चर्चा करते हुए साहित्य के विद्वानों ने विस्तार से अपने विचार व्यक्त किए, तो वहीं शोधार्थियों ने शोध पत्रों पर अपनी टिप्पणी पेश की. इसके अलावा कार्यक्रम में अतिथियों ने समकालीन साहित्य और समाज पर आधारित कई पुस्तकों का भी लोकार्पण और विमोचन किया.
इस अवसर पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया की कुलपति प्रोफ़ेसर नजमा अख्तर ने साहित्य और समाज पर आधारित इस कार्यक्रम को आने वाले भविष्य के चिंतन में एक बुनियाद की तरह माना. आयोजकों को विषय पर बधाई देते हुए प्रो. नजमा अख्तर ने बताया कि यह विश्वविद्यालय के कुलपति का पद संभालने के बाद उनका पहला कार्यक्रम है जिसमें वह शामिल हुईं और आने वाले समय में भी इस तरह के कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करती रहेंगी.
कुलपति ने हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित पहली अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के लिए बधाई देते हुए कहा कि मैं उम्मीद करती हूं कि आगे भी आप लोग निरंतर बड़े कार्यक्रम करते रहेंगे.
उन्होंने जामिया के 100 साल पूरे होने पर यह आशा जताई कि उसमें भी आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में हिन्दी विभाग बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेगा. इस संगोष्ठी में पुस्तक विमोचन के अवसर पर कुलपति महोदय ने प्रशंसा करते हुए कहा कि मुझे आशा है कि आप लोग शोध को इसी तरह और बढ़ावा देंगे. और अंत में कुलपति ने इस संगोष्ठी के भव्य आयोजन पर डीन प्रोफ़ेसर वहाजुद्दीन अल्वी, हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर इंदु वीरेंद्रा, संयोजक डॉ. आसिफ़ उमर और सभी विभागीय साथियों को बधाई दी.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कुलसचिव, ए.पी. सिद्दीक़ी ने विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग को साहित्य जगत में एक अलग पहचान बनाने के लिए बधाई दी. डीन प्रोफ़ेसर वहाजुद्दीन अल्वी ने हिन्दी विभाग को बधाई देते हुए कहा कि मुझे आशा है कि आप लोग ऐसे ही काम आगे भी करते रहेंगे, साथ ही हर तरह के सहयोग का आश्वासन भी दिया.
वहीं हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर इंदु वीरेंद्रा ने साहित्य और समाज के अंतर-संबंधों को शरीर और उसकी आत्मा के संबंधों के समान बताया. समाज में साहित्य की अहमियत पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य एक बेहतर समाज की कसौटी होती है, जो उसके भीतर संवेदनशीलता और यथार्थ के पक्ष को प्रखर करती है.
इसके अलावा इस अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक डॉ. आसिफ़ उमर ने संगोष्ठी में शामिल सभी प्रतिभागियों को विषय पर गंभीरता से अपनी राय रखने के लिए आभार जताया. उन्होंने कहा कि साहित्य समाज की एक जीवंत विधा है, जो सामाजिक परिवर्तन के सभी पक्षों पर ग़ौर करने के लिए प्रेरित करता है.