BeyondHeadlines News Desk
नई दिल्ली: जामिया मिल्लिया इस्लामिया में ‘न्यू थीअलाजिकल चैलेंजेस टू कन्टेमपरेरी इस्लामिक थाट एंड रोल आॅफ मदरसा ग्रेजुएट’ पर एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें देश-विदेश के विद्वानों ने हिस्सा लिया. इस संगोष्ठी का आयोजन जामिया के इस्लामिक स्टडीज़ डिपार्टमेंट ने इंस्टिटूट आॅफ़ रिलिजन एंड सोशल थाॅट (आईआरएसटी) से मिल कर किया.
अमेरिका की नाटेडेम यूनिवर्सिटी के प्रो. इब्राहिम मूसा ने मदरसों की सोच में आधुनिकीकरण लाने पर ज़ोर देते हुए कहा कि ऐसा करके ही मदरसा छात्र आधुनिक युग से क़दम मिला कर चल सकते हैं. इसी यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर जोश लूगो ने भी इसमें शिरकत की.
जामिया के डिपार्टमेंट ऑफ़ इस्लामिक स्टडीज़ के प्रमुख मुहम्मद इसहाक़ ने कहा, वक़्त का तकाज़ा है कि ऐसी चर्चाएं बार-बार की जाएं जिसमें, धर्म की सही समझ रखने वाले दानिशमंद, उसकी सही तस्वीर पेश कर सकें.
इस्लामी फ़लसफ़े के विद्वान और जामिया के पूर्व प्रोफ़ेसर अख़्तरूल वासे ने कहा कि मौजूदा दौर में इस्लाम और मदरसों को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं, ऐसे में मदारिसों में पढ़े लोगों की ज़िम्मेदारी है कि वे ग़लतफ़हमियों को दूर करें और इस्लाम की सही तस्वीर पेश करें. मदरसों का आधुनिकीकरण ऐसा होना चाहिए कि वह सिर्फ़ धार्मिक तालीम के लिए ही नहीं, बल्कि आधुनिक युग की ज़रूरतों और सोच के लिए भी जाने जाएं.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया की कुलपति प्रोफ़ेसर नजमा अख़्तर ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि इस्लाम के फलसफ़े में ठहराव नहीं है और उसमें आधुनिक वक़्त के साथ चलने की पूरी सलाहियत है. ज़रूरत सिर्फ़ इस बात की है कि इस्लाम के विद्वान, आज के आधुनिक युग और उसकी चुनौतियों को, इस्लाम की सही रोशनी में हल करें.
उन्होंने ब्रिज कोर्स को और बढ़ाव दिए जाने पर ज़ोर दिया जिससे मदरसों की पढ़ाई पूरी करने के बाद, वहां के छात्र, आधुनिक शिक्षा के लिए विश्वविद्यायों में आसानी से दाखिला पा सकें. जामिया में ऐसा कोर्स पहले से ही चल रहा है.
जामिया के नाज़िम ए दीनयात, प्रोफ़ेसर इक़्तेदार मुहम्मद ख़ान ने कहा कि मुसलमानों को अपने माज़ी से सबक़ लेते हुए दीनी और दुनियावी, दोनों में तरक़्क़ी करनी चाहिए.
इस्लामी विद्वान मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी ने कहा कि मुसलमानों को पश्चिम के नज़रिए को पढ़ना और समझना चाहिए.
संगोष्ठी के संयोजक, जामिया हमदर्द के प्रोफ़ेसर वारिस मज़हरी ने मदरसा संवाद के बारे में विस्तार से बताया कि कैसे आपसी चर्चा से सही ज्ञान को पाया जा सकता है. इस संगोष्ठी में बड़ी तादाद में जामिया के अध्यापकों और छात्रों ने हिस्सा लिया.