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दिल्ली की हवा में ज़हर घोलन के लिए कौन है ज़िम्मेदार? केन्द्र या दिल्ली सरकार?

Afroz Alam Sahil, BeyondHeadlines

नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली वायु-प्रदूषण से इतनी ज़हरीली हो चुकी है कि पूरी दिल्ली बेदम होने के कगार पर है. दिल्ली पर धुंध की चादर जम चुकी है. हालात ऐसे हो गए हैं कि दिल्ली में हेल्थ इमरजेंसी लगानी पड़ी है. 5 नवंबर तक स्कूलों में भी छुट्टी का ऐलान कर दिया गया है.

दिल्ली की ये स्थिति कोई नई नहीं है. हर साल अक्टूबर-नवम्बर महीने में ऐसा ही होता है. दिल्ली के लोग घूट-घूट कर रहते हैं और फिर कहानी वापस वहीं पहुंच जाती है.

लेकिन इस ज़हरीले माहौल में सियासत देखिए कि केन्द्र व राज्य सरकार इसका हल निकालने के बजाए एक-दूसरे पर आरोप मढ़ने पर लगे हुए हैं.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का हमेशा से ये आरोप है कि दिल्ली शहर ‘गैस चैंबर’ में इसलिए बदल जाता है, क्योंकि केन्द्र, पंजाब और हरियाणा सरकार ने पराली जलाने वाले किसानों के लिए कुछ नहीं किया है.

केजरीवाल ने पिछले दिनों स्पष्ट तौर पर कहा, ‘खट्टर और कैप्टन सरकारें अपने किसानों को पराली जलाने पर मजबूर कर रहीं हैं जिसकी वजह से दिल्ली में भारी प्रदूषण है.’

वहीं भाजपा का कहना है कि मुख्यमंत्री केजरीवाल अपनी विफलता का ठीकरा दूसरे राज्यों पर पराली के धुएं के रूप में फोड़ रहे हैं, जबकि विशेषज्ञों की रिपोर्ट बताती है कि पराली से केवल 1 से 10 प्रतिशत तक ही प्रदूषण हो सकता है. इससे साफ है कि 90 प्रतिशत प्रदूषण स्थानीय कारणों की वजह से हो रहा है.

भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल का कहना है कि विश्व के 1600 शहरों में दिल्ली सबसे प्रदूषित शहर बन गया है. इसके लिए मुख्यमंत्री ज़िम्मेदार हैं. प्रदूषण रोकने में विफल होने पर केजरीवाल पर मामला दर्ज होना चाहिए. उन्हें अपने पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है.

हालांकि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट केन्द्र सरकार को पहले ही फटकार लगा चुकी है. पिछले साल ही अदालत ने केन्द्र सरकार से पूछा है कि दिल्ली के ज़्यादातर ‘प्रदूषण नियंत्रण केन्द्र’ (पीयूसी) या तो काम नहीं कर रहे हैं या बंद होने वाले हैं. आप किस तरह का प्रदूषण नियंत्रण कर रहे हैं? बता दें कि राजधानी दिल्ली में 200 पीयूसी केन्द्र हैं, जिनमें ज़्यादातर केन्द्र काम नहीं कर रहे हैं.

वहीं एनजीटी दिल्ली सरकार को फटकार लगा चुकी है. पिछले साल एनजीटी ने दिल्ली सरकार से पूछा था कि —‘आप दो साल से वायु प्रदूषण पर काम कर रहे हैं, आख़िर क्या वजह है कि अब तक कार्य-योजना तैयार नहीं हुई?’

बता दें कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने भारत के 14 राज्यों को चिन्हित किया था जो कि वायु प्रदूषण को बढ़ाने में सबसे आगे हैं और दिल्ली उनमें से एक है.

भारत सरकार के अर्थ साईंस मंत्रालय के साथ मिलकर तैयार की गई सिस्टम ऑफ़ एयर क्वालिटी फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली में 2010 की तुलना में 2018 में वाहन प्रदूषण 40 फ़ीसद बढ़ा है. वहीं औद्योगिक क्षेत्र में 48 फ़ीसद और ऊर्जा के क्षेत्र में 16 फ़ीसद प्रदूषण का इज़ाफ़ा हुआ है.

वायु प्रदूषण पर कई सालों से काम कर रहे ग्रीनपीस के सीनियर कैंपेनर सुनिल दहिया बताते हैं, दिल्ली में ऐसा प्रदूषण पूरे साल रहता है. लेकिन चूंकि अक्टूबर-नवम्बर में वातावरण में तब्दीली आती है. ठंड बढ़ने से वातावरण में नमी की मात्रा में वृद्धि होती है, इसकी वजह से प्रदूषक कण ऊपर नहीं जा पाते है.

पराली जलाने से दिल्ली के वातावरण पर क्या फ़र्क़ पड़ता है? ये पूछने पर सुनिल बताते हैं कि, फ़र्क़ तो पड़ता है लेकिन उतना नहीं पड़ता जितना दिल्ली सरकार या मीडिया बताती है. किसान पराली कोई शौक़ में नहीं जलाते हैं. ऐसा नहीं है कि किसान पराली जलाने से होने वाले नुक़सान को नहीं समझ रहे. वे भी अपने और परिवार के स्वास्थ्य के लिए चिंतित हैं और इस समस्या से निजात पाना चाहते हैं. लेकिन सरकारें इसके लिए कोई हल नहीं निकाल पा रही हैं.

सुनील के मुताबिक़ खेत में आग तो सिर्फ़ पन्द्रह दिन के लिए लगाई जाती है जबकि थर्मल पावर प्लांट, रियल एस्टेट कंस्ट्रक्शन, गाड़ियों और औद्योगिक प्लांट से निकलने वाला प्रदूषण पूरे साल प्रदूषण फैला रहे हैं. सरकार को इस दिशा में गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है.

वहीं पर्यावरण के मुद्दे पर काम करने वाले पत्रकार अविनाश कुमार का कहना है कि, पंजाब-हरियाणा के खेती वाले इलाकों का हमने कई दौरे किए हैं. पराली को प्राकृतिक तरीक़े से निपटा पाना बेहद खर्चे का सौदा है. जो काम पचास पैसे की माचिस से हो सकता है उसके लिए 5000 रुपए प्रति एकड़ का खर्च किसी को रास नहीं आएगा. वो भी तब जब खेती लगातार घाटे का सौदा बनती जा रही है.

बता दें कि दिसंबर 2015 में एनजीटी के एक आदेश के बाद पंजाब व हरियाणा सरकार ने किसानों को पराली को खेत में ही सड़ाने या उसे अलग करने वाली मशीनें उपलब्ध कराए जाने की बात कही थी. दो एकड़ से कम ज़मीन वाले किसानों को यह सुविधा मुफ़्त में देने का विचार था. लेकिन अभी इन दोनों ही सरकारों ने इस दिशा में कुछ भी नहीं कर सकी हैं.

बता दें कि दिल्ली के ख़राब हालत के लिए भले ही सरकार पड़ोसी राज्यों को ज़िम्मेदार ठहरा रही है, लेकिन सच ये भी है कि दिल्ली के लोग भी इसके लिए ज़िम्मेदार हैं. दिल्ली में बड़ी संख्या में लोग खुले में कूड़ा जला रहे हैं. एक सूचना के मुताबिक़ सिर्फ़ उत्तरी दिल्ली नगर निगम ने अपने कार्य क्षेत्र में खुले में कूड़ा जलाने के मामले में 70 चालान किए गए. निर्माण कार्य की वजह से उत्पन्न धूल के लिए 33 चालान तो वहीं रोड से धूल के मामले में 22 चालान काटे गए. इससे निगम को पांच लाख 65 हज़ार रुपए की कमाई हुई.

सोचने की बात ये है कि दिल्ली की वायु गुणवत्ता अब “बेहद ख़राब” की श्रेणी में आ चुकी है. और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों की मानें तो आगामी कुछ दिनों में यह और अधिक ख़राब हो सकती है.

बता दें कि वायु प्रदूषण को लेकर केन्द्र सरकार कितनी गंभीर है, इसका अंदाज़ा आप इसी से लगा सकते हैं कि ‘राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम’ जिसकी समय सीमा 5 जून और 15 अगस्त 2018 तय की गई थी, लेकिन शुरुआत की घोषणा 10 जनवरी 2019 को की गई. वो भी इसके तहत क्या और कितना काम हुआ, इससे सब बख़ूबी वाक़िफ़ हैं.

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