कोरोना के बाद अब देश में एक और नई मुसीबत, इस ख़तरनाक वायरस ने भी दे दी है दस्तक

BeyondHeadlines News Desk
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कोरोना वायरस ने अभी हमारा पीछा छोड़ा भी नहीं है कि इस बीच देश में एक और घातक बीमारी ने भी दस्तक दे दी है. इस नई मुसीबत का नाम है— अफ़्रीक़न स्वाइन फ्लू…

डरिए मत, अभी तक की जानकारी के मुताबिक़ इसके संक्रमण का ख़तरा इंसानों में नहीं है. इसका निशाना फिलहाल असम के सूअर हैं.

बताया जा रहा है कि इस ख़तरनाक अफ़्रीक़ी फ्लू ने भारत में पहली बार दस्तक दी है. इस बीमारी की शुरुआत अप्रैल 2019 में चीन के जियांग प्रांत के एक गांव में हुई थी जो अरुणाचल प्रदेश का सीमावर्ती है. असम में यह बीमारी इसी साल फ़रवरी के अंत में सामने आई है और ऐसा लगता है कि यह बीमारी चीन से अरुणाचल होती हुई असम पहुंची है.  साल 2018 से 2020 के दौरान चीन में 60 फ़ीसदी से ज्यादा पालतू सुअरों की इस वायरस की चपेट में आकर मौत हो चुकी है. चिंता इस बात की है कि अगर असम के अलावा दूसरे राज्यों में फैला तब इससे कैसे निपटा जाएगा.

वर्ल्ड ऑर्गनाइज़ेशन फॉर एनिमल हेल्थ के मुताबिक़ अफ़्रीक़न स्वाइन फ्लू एक गंभीर वायरल बीमारी है जो घरेलू और जंगली सुअरों दोनों को प्रभावित करती है. यह जीवित या मृत सुअर या फिर सुअर के मांस से फैल सकती है. हालांकि इस संस्था ने भी ये भी स्पष्ट किया है कि ये बीमारी जानवरों से इंसानों में नहीं फैलती है.

बता दें कि देश का उत्तर-पूर्वी राज्य असम में इस अफ़्रीक़ी स्वाइन फ्लू का संक्रमण तेज़ी से फैल रहा है, जिसके चलते पिछले कुछ दिनों में 13 हज़ार से अधिक सूअरों की मौत हो चुकी है. ये महामारी असम में सबसे पहले इसी साल फ़रवरी में सामने आया था, लेकिन अब इसने अपनी असर दिखाना शुरू कर दिया है. बताया जा रहा है कि इससे असम में 9 ज़िले प्रभावित हैं. आबादी वाले इलाक़े में सूअर दाख़िल न हो पाएं इसके लिए हर जगह नहर खोदी जा रही है. पड़ोसी राज्यों से भी आग्रह किया गया है कि वे अपने यहां सूअरों के आवागमन पर रोक लगाएं. ख़बरों के मुताबिक़ मेघालय में अन्य राज्यों से सूअरों के परिवहन पर रोक भी लगा दी गई है.

आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि 2019 की गणना के अनुसार, असम राज्य में सूअरों की संख्या 21 लाख थी, जो बढ़कर लगभग 30 लाख हो गई है. इस पशुपालन उद्योग में असम के हज़ारों लगे हुए हैं. इस बीमारी से इस सबकी आजीविका प्रभावित हो रही है.

सुअर में फैली इस बीमारी को अफ़्रीक़न स्वाइन फ्लू इसलिए कहते हैं कि इस वायरस का पहला मामला वर्ष 1921 में केन्या और अफ्रीक़ा में सामने आया था. कोरोना की तरह इस बीमारी का भी कोई टीका अभी तक नहीं बन सका है.

जानवरों भी हो सकते हैं कोरोना के शिकार, बरतें सावधानी

दूसरी तरफ़ कोरोना वायरस का डर सिर्फ़ इंसानों में ही नहीं, बल्कि जानवरों में भी इसका संक्रमण फैलने का डर हर किसी को सताने लगा है. ज़्यादातर जगहों पर चिड़ियाघर प्रशासन ने वन्य जीवों को कोरोना की चपेट में आने से बचाने के लिए सेनिटाइज़ेशन का कार्य तेज़ कर दिया है. जानवरों के बाड़ों के भीतर और बाहर दवाओं का छिड़काव किया जा रहा है. सेंट्रल ज़ू ऑथोरिटी ने इस संबंध में निर्देश जारी किए हैं.

वहीं चिंता ज़ाहिर की गई हैं कि बड़ी संख्या में जानवर भी इस कोरोना वायरस से प्रभावित हो सकते हैं. कुछ रिसर्चर्स का मानना है कि इस वायरस का सबसे ज्यादा असर कशेरुकी जीवों में पड़ सकता है. कशेरुकी जीव उन्हें कहा जाता है जिनके सदस्यों में रीढ़ की हड्डियां या पृष्ठवंश मौजूद रहते हैं. हालांकि कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में वायरस पर रिसर्च करने वाली Jane Sykes के मुताबिक़ अब तक ऐसे कोई प्रमाण नहीं मिले हैं जिनसे साबित होता हो कि कोरोना वायरस जानवरों से जानवरों में ट्रांसफर होता हो.

आपको बता दें कि न्यूयॉर्क के ब्रोंक्स चिड़ियाघर में पहली बार जानवरों में कोरोना वायरस के संक्रमण का केस सामने आया था. यहां रहने वाली चार वर्ष की मलेशियाई बाघिन नादिया में कोरोना के लक्षण दिखने के बाद उसका टेस्ट पॉज़िटिव आया था. जिसके बाद पूरे विश्व के चिड़ियाघरों में सतर्कता बढ़ा दी गई. न्यूयॉर्क में ही इंसानों के नज़दीक रहने वाली बिल्लियों में भी कोरोना के मामले सामने आ चुके हैं.

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाईज़ेशन कहता है कि पालतू जानवरों को छूने, उठाने के बाद आपको अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह से धोना चाहिए. ये कई अन्य प्रकार के बैक्टीरिया और वायरस से बचा सकता है. जानवरों के साथ भी सभी ज़रूरी सुरक्षा से जुड़ी सावधानियों को फॉलो किया जाना चाहिए.

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