ईद: दुश्मनों से भी गले मिलने का दिन

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BeyondHeadlines News Desk

आज ईद का चांद नजर आते ही रोजा खत्म हो जाएगा और हम ईद की खुशियों में मग्न हो जाएंगे. दरअसल, ईद-उल-फित्र यानी ईद मतलब रमजान के महीने की समाप्ति पर सामूहिक रूप से मनाई जाने वाली खुशी का दिऩ है. एकता व भाईचारे का दिन है. आंतरिक प्रेम की वर्षा का दिऩ है. दुश्मनों से भी गले मिलने का दिन है. ऐसा दिन जिससे लोगों के बीच एक नया रिश्ता, एक अभिनव प्रेम-संबंध का आगाज होता है. ऐसा लगता है कि इंसान-इंसान के बीच दुश्मनी की कोई दीवार, भेदभाव की कोई खाई नहीं. ये दिन तो हर किसी से गले मिलने का दिन है. हर किसी की खातिरदारी और खुशियां मनाने का दिन है. लोगों को सेवईयों से मुंह मीठा कराने का दिन है.

ईद-उल-फित्र वास्तव में रमजान के रोजों का इनाम है. यह दिन निश्चय ही महान खुशी का दिन होता है. इस दिन से मुसलमानों के ऊपर से अतिरिक्त बंदिशें हट चुकी होती हैं, जिन्हें ये निरंतर एक माह तक सहन करते रहे होते हैं. कड़े अनुशासन की इस परीक्षावधि से सफलतापूर्वक गुजर जाने की खुशी की पहली अभिव्यक्ति ईद की नमाज है. इस नमाज का उद्देश्य अतिरिक्त बंधनों से आजादी के लिए ईश्वर के समक्ष कृतज्ञता प्रकट करना है. ईद यह संदेश देती है कि हमारे लिए वास्तविक प्रसन्नता ईश्वरीय आदेशों का पालन करने और उसके द्वारा ली गई परीक्षा से सफलतापूर्वक गुजर जाने में ही है.

ईद हमें यह संदेश देती है कि हम परमेश्वर के प्रति तब तक कृतज्ञ नहीं हो सकते, जब तक हम उसके दीन-हीन बंदों की समस्याओं को हल करने का प्रयास न करें. यही कारण है कि ईद के दिन मुसलमान ईदगाह जाने के पहले फित्र के रूप में एक निश्चित राशि अल्लाह के राह में खर्च करता है, ताकि निर्धन व असहाय लोग भी ईद के खुशियों में शामिल हो सकें. नजीर अकबराबादी अपने एक नज्म में लिखते हैं-

                                     पिछले पहर से उठके नहाने की धूम है
शीरो-शकर सेवईयां पकाने की धूम है
पीरो-जवां को नेअमतें खाने की धूम है
लड़कों में ईदगाह जाने की धूम है.

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