Ashutosh Kumar Singh for BeyondHeadlines
सरकार ने 348 दवाइयों को राष्ट्रीय ज़रूरी दवा सूची में डालने का मन बना रही है. राष्ट्रीय दवा नीति-2011 को ग्रुप्स ऑफ मिनिस्टर्स ने स्वीकार कर लिया हैं और अपना अनुमोदन के साथ इसे कैबिनेट की मंजूरी के लिए इसी हफ्ते भेजने वाली भी है. सरकार के कथनानुसार अब ये दवाइयाँ सस्ती हो जायेंगी.
लेकिन हम आपको बताते चलें कि इस देश में दवाइयों के मूल्य निर्धारण की जिम्मेदारी राष्ट्रीय औषध मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एन.पी.पी.ए) को दी गई है. और इसी राष्ट्रीय औषध मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एन.पी.पी.ए) ने एक आरटीई के जवाब में कहा है कि उसे यह नहीं मालूम कि देश में कितनी दवा कंपनियां हैं.
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि दवाइयों के मूल्य को निर्धारित करने की जिम्मेदारी जिस सरकारी प्राधिकरण की है, उसे ही नहीं मालूम हैं कि देश में कितनी दवा कंपनियां हैं तो ऐसे वह किस आधार पर दवाइयों के मूल्यों का निर्धारण करेगी? साथ ही वह दवा कंपनियों की मनमानी को कैसे रोकेगी?
गौरतलब है कि हाल ही में BeyondHeadlines ने एक आरटीई डालकर एन.पी.पी.ए से पूछा था कि देश में कितनी दवा कंपनियां हैं. जिसके जवाब में एन.पी.पी.ए. ने कहा था कि उसके पास देश की तमाम दवा कंपनियों का कोई लिस्ट नहीं हैं और उसे यह भी नहीं मालूम हैं कि देश में कितनी दवा कंपनियां हैं.
(लेखक कंट्रोल एम.एम.आर.पी कैंपेन चला रही प्रतिभा जननी सेवा संस्थान के नेशनल को-आर्डिनेटर व युवा पत्रकार हैं.)