हत्यारे गोडसे का महिमा-मंडन और धर्म की राजनीति

Beyond Headlines
7 Min Read

Yogesh Garg for BeyondHeadlines

अक्सर देखता हूं कि कट्टर अतिवादी फर्जी हिन्दुत्व-वादी लोग गोडसे का गुणगान करते नहीं थकते. एक हत्यारे का महिमा मडंन किया जाता है. महात्मा गांधी पर तरह-तरह के लांछन लगाकर बदनाम करने का प्रयास किया जाता है.

महात्मा गोडसे समर्थकों के या उस किताब (गांधी वध क्यों) के अनुसार गांधी जी मे कमियां थी. हिन्दुओं के दुश्मन थे. मुस्लिमों का पक्ष लेते थे. इसलिये उन्हें गोली मार दी. क्या यही तर्क है. इन मतान्ध हिन्द्य्वादी लोगों का गांधीजी की हत्या के पीछे?

गांधीजी की हत्या के बाद क्या हिन्दुओं पर विपत्ति नहीं आयी? क्या गोडसे के बाद हिन्दुओं का शौर्य चुक गया? हिन्दुओं पर सकंट आये तब कोई हत्यारा क्यों ना पैदा हुआ?

सोनिया गांधी और उसके भ्रष्ट मंत्री जिन्दा क्यों हैं? इनके अनुसार तो सबको गोली मार देनी चाहिये? मार दो ना सबको… बर्बर हत्या वाला जंगल का कानून ले आओ… जिसकी बात पसन्द ना आये गोली मार दो.

फिर रामदेव और फिर अन्ना… अनशन/आंदोलन क्यों कर रहे है? क्यों ना वे भी अपने-अपने कार्यकर्ताओं और समर्थक से कहते कि सबकी ह्त्या कर दो… निहत्थे वृद्ध गांधी को प्रार्थना सभा में मार दिया गया. 16 अगस्त 1946, प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस पर हिन्दुओं के कत्ले आम का आदेश देने वाले जिन्ना को क्यों नहीं मारा गोडसे ने?

नेहरु जो कश्मीर समस्या के लिये जिम्मेदार थे. समय रहते फैसला नहीं किया. आज कश्मीर में हिन्दु निर्वासित है, क्योंकि नेहरु ने सैनिक कार्यवाही ना करके मामला संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गये. फिर हिन्दुओं पर अत्याचार हुए . किसी गोडसे ने हमला नेहरु पर क्यों नहीं किया ?

दरअसल गांधी धर्म आधारित राजनीति में रोड़ा बने हुये थे.  जब तक गांधी जिन्दा रहते, इन धर्म की आड़ मे राजनीति के रंगे सियारो की बारी नहीं आनी थी.  इसलिये एक नवयुवक (गोडसे) को धर्म के नाम पर उकसा कर उससे ह्त्या करवा डाली, और उसका महिमा-मंडन ऐसे किया जैसे धर्म की रक्षा की हो.  क्या गोडसे की महानता सिर्फ इसमें है कि उसने गांधी को मारा था?

यह ठीक वैसे ही है, जैसे तालिबानी किसी मुस्लिम युवक को जेहाद के नाम पर उकसाकर उसे अल्लाह के मेहरबानियों और इस्लाम का हवाला देकर आंतकवादी बना दिया जाता है. धर्मान्धता ऐसी स्थिति है, जिसमें इन्सान मानव बम तक बन जाता हैं. जबकि किसी की जान लेना किसी भी धर्म में नहीं लिखा है.

मुझे दुख: होता है कि आज की युवा पीढी को किस तरह के संस्कार दिये जा रहे हैं. जिन्हें अपने महापुरुषों का तनिक भी सम्मान नही है. आज महापुरुषों का भी धर्म और जाति के आधार पर विभाजन कर दिया गया है.

धर्म के नाम पर गालियां देना सिखाया जा रहा है. उन्हें दंगा और मारपीट के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है.  ये सब हो रहा है इस देश की कुत्सित होती राजनीति के कारण… धर्म के नाम पर बरगला कर सत्ता हासिल करने के प्रयास पहले भी हुये हैं और अब भी हो रहे है.

हिन्दुत्व कट्टरवादी लोग ये भूल गये कि भगत सिंह का कहना था. “धर्म सार्वजनिक प्रदर्शन का नहीं व्यक्तिगत आस्था का विषय है.”

गांधी के नाम पर राजनीति की गई. गांधी के नाम को कांग्रेस ने भुनाया और गोडसे के नाम को हिन्दुत्व की आड़ में जनसंघ, कालान्तर में (दबे छुपे तौर पर भाजपा ने) , राम मन्दिर पर भाजपा की राजनीति जग-जाहिर है (बना आज तक नहीं). भाजपा जो हिन्दुओं की पार्टी होने का घोषित-अघोषित दावा करती है. उसके सर्वे-सर्वा और हिन्दुत्व के आधुनिक अगुवा नरेन्द्र मोदी भी गांधीजी के आगे नमन करते हैं.

असल बात ये है कि सत्य राजनीति की भेंट चढ गया. हर कोई गांधीजी के नाम को भुनाने में लगा है. जिसे हज़म नहीं हो पाया, वो गाली देने लगता है. इन लोगों को गांधी जी की बली लेने के बाद भी चैन नहीं आया. ये लोग उनके नाम पर किचड़ उछाल रहे हैं. मक़सद यही है कि कांग्रेस गांधी के नाम पर वोट ना मांग सके. इसलिये गांधी पर कीचड़ उछाला जाता है और एक हत्यारे को उनके समकक्ष खड़ा करने की कोशिश की जाती है. लोग गांधीजी और अन्य महानायकों की तुलना करके क्या साबित करना चाहते है? हम भारतीय अपने ही राष्ट्रनायको की नीचा दिखाने में तुले है.

आजादी के आन्दोलन में गांधीजी के द्वारा अपनाये गये तौर-तरीको से क्रान्तिकारियों की असहमति थी इसका मतलब गांधी ग़लत तो नहीं हो जाते? क्या राष्ट्रनायकों की तुलना करने वाले सुभाष बाबू, शास्त्री जी, सरदार पटेल और भगत सिंह की आत्मा से पूछकर आये है कि उनके जाने के बाद गांधीजी को ग़लत साबित करना?

क्या गांधीजी के द्वारा किये गये जन आन्दोलनों की राष्ट्रवाद के उदय में कोई भूमिका नहीं थी? क्या आज के युग में असेम्बली मे बम फेंक देना प्रांसगिक है? सरकारी सम्पत्ति को नुक़सान पहुंचाना प्रांसगिक है? क्या हत्या, हिंसा से शत्रु पर स्थायी विजय पाई जा सकती है? क्या गांधीवाद का अर्थ सत्य, अंहिसा और प्रेम नहीं है? क्या शत्रु का ह्रदय प्रेम से नहीं जीता जा सकता ?

तो फिर गांधी के साथ इन मानवीय मूल्यों को अस्वीकार कर दो. अगर कर सकते हो तो. आखिर लोग क्यों भूल जाते है “वैष्णव जन तो तेने कहिये जे, पीड़ पराई जाणे रे” भजन का मर्म क्या है ? सत्य, अंहिसा और प्रेम गांधीवाद का पर्याय है.

मेरे युवा मित्रों! आपसे अनुरोध है किसी भी विषय में भावावेश में या किसी के बहकावे में ना आये. किसी बात पर इतनी जल्दी राय ना बनाये. स्वयं चिन्तन मनन करें. इस देश के कुटिल राजनितिज्ञों के द्वारा आपकी मानसिक क्षमताओं और उर्जा का दुरुपयोग किया जा रहा है. इसे इस देश के निर्माण मे लगाये विध्वंस में नहीं.

Share This Article