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Reading: निकहत के सवालों के साथ फ़सीह महमूद की पूरी दास्तान…
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निकहत के सवालों के साथ फ़सीह महमूद की पूरी दास्तान…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published October 28, 2012
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17 Min Read
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Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

देश की किसी अदालत द्वारा फ़सीह को आतंकी क़रार देने से पहले ही मेनस्ट्रीम मीडिया ने अपनी हेडलाइनों में उसके आतंक की कहानी गढ़ दी है. पुलिस के बयान को बिना शक किए ही मीडिया ने फ्रंट पेज पर प्रकाशित किया और फ़सीह के परिजनों की गुहार अंतिम पेज पर सिंगल कॉलम की भी ख़बर नहीं बन सकी. हद तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने कर दी. पत्रकारों से ‘बाइट कलेक्टर’ बन चुके मीडिया-कर्मियों ने आतंक से जुड़े हर शब्द का इस्तेमाल फ़सीह के लिए किया. उसे भारत में आतंक का सबसे खौफ़नाक चेहरा बनाकर पेश किया गया.

मेनस्ट्रीम पत्रकारों ने पुलिस के स्टेनोग्राफर बनकर फसीह के आतंकी होने की पूरी कहानी लिख दी. अख़बार के पहले पृष्ठ पर ‘आतंकी फसीह’ लिखा गया. इसे आईएम का संस्थापक के तौर पर पेश किया गया. आरोपों की एक लंबी फ़हरिस्त पेश की गई. सिर्फ इतना ही नहीं, इस विषय पर कई अखबारों के संपादकीय तक लिखे गए और फ़सीह की गिरफ्तारी को एक अंतराष्ट्रीय उपलब्धि के तौर पर देखा गया. बल्कि यहां तक बताया गया कि सउदी अरब ने अगर फ़सीह को छोड़ा है तो इसका सिर्फ एक ही कारण है वो है पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका का दबाव…

कड़वी हकीक़त यह है कि फ़सीह प्रत्यर्पण प्रकरण ने भारतीय खुफिया एजेंसियों की आतंकवादी और सांप्रदायिक कार्यप्रणाली उजागर की है जो भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है. इस मसले में खुफिया तंत्र ने सिर्फ देश की जनता को ही नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट तक को गुमराह किया.

भारत और सउदी अरब के बीच हुए प्रत्यपर्ण संधि के मुताबिक यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ़ दो महीने के अंदर आरोप-पत्र नहीं आता है तो उसे न तो हिरासत में रखा जा सकता है और ना ही प्रत्यर्पित किया जा सकता है. अब जबकि सउदी अरब सरकार भी फ़सीह महमूद के खिलाफ भारतीय एजेंसियों द्वारा कोई ठोस और तार्किक सबूत न दे पाने का बयान पहले ही दे चुकी है. ऐसे में फ़सीह महमूद का प्रत्यपर्ण ही अवैध है. लेकिन इस तथ्य पर हमारी मीडिया कोई चर्चा नहीं कर रही है. केंद्रीय एजेंसियों द्वारा आतंकी करार दिए जाने के बाद ही फसीह के तमाम नागरिक अधिकार जैसे समाप्त हो गए हैं.

केन्द्रीय गृह सचिव आर. के. सिंह का बयान और भी गुमराह करने वाला है. उन्होंने कहा है कि फ़सीह महमूद को इसलिए पांच महीने बाद भारत लाया लाने का कारण यह है कि इस दौरान वह सउदी अरब में सजा काट रहे थे. यहां बड़ा सवाल यह उठता है कि जब फ़सीह महमूद के खिलाफ़ सउदी अरब में कोई मुक़दमा ही नहीं था तो उन्हें वहां सजा कैसे हो सकती है?

फ़सीह महमूद खुद एक सवाल बनकर रह गया है. फसीह को लेकर उनकी पत्नि निकहत के बेशुमार सवालात हैं. निकहत के सवाल और फ़सीह की पूरी दास्तान कुछ इस तरह है…

13 मई को खुफिया एजेंसियों के लोग फसीह महमूद के सउदी अरब स्थित आवास पर आए और कहा कि भारतीय विदेश मंत्रालय के निवेदन पर फसीह को तात्कालिक रुप से भारत ले जाना है. निकहत बताती हैं कि इसके बाद उन्होंने सउदी के भारतीय दूतावास से सम्पर्क किया तो उन्होंने मुझे कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

16 मई की सुबह निकहत भी भारत आ गईं पर उन्हें अपने पति की कोई ख़बर नहीं मिली.  इस दरम्यान उन्हें ‘द हिंदू’ समाचार पत्र की एक रिपोर्ट से मालूम चला कि भारत के गृहमंत्री, विदेश मंत्री ने यह कहा कि उनके पास फसीह के बारे में कोई सूचना नहीं है. सीबीआई कमिश्नर, एनआईए और दिल्ली पुलिस का भी यह बयान था कि फसीह पर कोई चार्ज नहीं है.

निकहत ने समाचार पढ़कर अपने पति की जानकारी के लिए विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव को 17 मई को ईमेल किया. 18 मई को ईमेल द्वारा उन्हें सूचना दी गई कि उनके मेल को खाड़ी सेक्शन में भेज दिया गया है और जानकारी मिलते ही उन्हें सूचित किया जाएगा. निकहत आगे कहती हैं कि खाड़ी सेक्शन का जो नम्बर और ई-मेल आईडी उन्हें मिली उस पर उन्होंने मेल और बात की, पर उन्होंने कहा कि उनके पास फ़सीह के बारे में कोई सूचना नहीं है, दो दिन बाद बताएंगे. फिर उन्होंने विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय, एनआईए, सीबीआई कमीश्नर, दिल्ली, कर्नाटक, बिहार, आंध्र प्रदेश और मुंबई सरकार, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री बिहार बहुतों को मेल और फैक्स किया. सबने यही कहा कि कोई चार्ज नहीं है.

निकहत बताती हैं कि विदेश मंत्री से जब एक पत्रकार ने फ़सीह के बारे में पूछा तो उन्होंने ये कहा कि क्या फ़सीह ‘डिप्लोमेट’ है? बहरहाल, विदेश मंत्रालय के अंडर सेक्रेटरी श्री रेड्डी ने कहा कि वे लोग नहीं जानते कि फ़सीह महमूद कौन है और भारत की कोई भी एजेंसी फ़सीह को किसी भी आरोप में नहीं ढूंढ़ रही है. हम इसलिए फ़सीह को ढूंढ रहे हैं, क्योंकि उनकी पत्नी ने हमें पत्र लिखा है.

निकहत का सवाल लाजिमी है कि मेरे पति भारतीय हैं, इसलिए उनका फ़र्ज था कि वे सउदी सरकार से पूछें कि हमारे देश का यह नागरिक कहां है. सरकार अगर नहीं जानती थी तो उसे गुमशुदा व्यक्ति की तलाश के लिए यलो कार्नर नोटिस जारी करना चाहिए था.

मीडिया में आ रही रिपोर्टों से निकहत को यह अंदाजा हो गया था कि उनके पति को किसी गंभीर साजिश में फंसाने की कोशिश हो रही है. अरब न्यूज ने 19 मई को उनकी कम्पनी के मैनेजर के हवाले से लिखा है कि अल-जुबैल पुलिस और भारतीय दूतावास के कुछ अधिकारियों ने बताया है कि महमूद की तलाश भारत में कुछ असामाजिक गतिविधियों में है, इसलिए उसे तत्काल पुलिस को सौंप दिया जाये. इस ख़बर में यह भी लिखा है कि महमूद को सउदी पुलिस को सौंपने के बाद सउदी के आंतरिक मंत्रालय ने भारतीय दूतावास के अधिकारियों को महमूद के भेजे जाने व फ्लाइट का विवरण बता दिया. जहां पर पहुंचने पर उसे पकड़ लिया गया. (http://www.arabnews.com/ksa-deports-%E2%80%98bangalore-blast-suspect%E2%80%99s-aide%E2%80%99) सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हैबियस कार्पस में भी इस ख़बर की कापी संलग्न है.

सवाल दर सवाल से उलझती निकहत ने सुप्रीम कोर्ट में 24 मई को हैबियस कार्पस दाखिल किया और विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय, एनआईए, दिल्ली, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मुंबई और बिहार सरकार को पक्षकार बनाया. 30 को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी की.

पहली जून को कोर्ट की सुनवाई में एक तरफ सरकार दूसरी तरफ निकहत… सरकार अब संविधान द्वारा दिए गए मूल अधिकारों को अपने गैरकानूरी दांव-पेंचों से कतरने की कोशिश करने लगी थी. सुनवाई से एक दिन पहले 31 मई को ही रेड कार्नर नोटिस जारी कर दिया कि आतंकवाद, हथियार और विस्फोटकों के मामले में महमूद की तलाश है. निकहत कहती हैं कि रेड कार्नर नोटिस अपराधियों के लिए होता है. मगर जैसा कि यह लोग जानकारी न होने की बात कह रहे थे, उन्हें यलो कार्नर नोटिस जारी करनी चाहिए थी, वारंट भी 28 मई को निकाला गया, लेकिन हमें कोई भी आधिकारिक दस्तावेज या जानकारी नहीं दी गई. सरकार पर आरोप लगाते हुए कहती हैं कि 13 मई को जो उठाया गया वो गैरकानूनी था, इसलिए ये लोग अपनी गलती छुपाने के लिए यह सब कर रहे थे.

यहां सवाल यह उठता है कि जब लापता होने पर यलो कार्नर नोटिस जारी की जाती है तो सरकार ने बार-बार सवाल उठने पर भी क्यों नहीं जारी किया? इसका साफ मतलब है कि सरकार जानती थी कि फसीह कहां हैं और जब वह खुद के गैरकानूनी जाल में फंसती नज़र आई तो उसने आनन-फानन में 28 मई को वारंट और 31 मई को रेड कार्नर नोटिस जारी किया.

यहां सवाल न्यायालय पर भी हैं कि स्वतः संज्ञान लेने वाले न्यायालय के सामने सरकार द्वारा मूल अधिकारों को गला घोंटा जा रहा था. यह पूरी परिघटना बताती है कि किस तरह हमारे देश की खुफिया एजेंसियां न्यायालयों और सरकारों पर हावी हो गई हैं और उनकी हर काली करतूत को छुपाने के लिए मूल अधिकार क्या संविधान का भी हनन किया जा सकता है. जैसा कि फ़सीह मामले में हुआ.

पहली जून की सुनवाई में विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस की तरफ से अपर महाधिवक्ता आए थे, मगर कर्नाटक और किसी अन्य पक्षकार की तरफ से कोई नहीं आया. जब न्यायाधीश महोदय ने पूछा कि फसीह कहां है और उस पर क्या आरोप हैं तो वे समाचार रिपोर्ट पढ़ने लगे. तब न्यायालय ने उनको न्यूज़ क्लीप पढ़ने से मना करते हुए कहा कि इतना संवेदनशील मामला है और आप न्यूज क्लीप पढ़ रहे हैं, जो बार-बार बदलती रहती हैं, आप बताएं कि फसीह पर आरोप क्या है और क्यों उठाया है? इस पर पक्षकारों ने कहा कि वे तैयारी में नहीं हैं.

निकहत कहती हैं कि मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि अगर कोई रेड कार्नर नोटिस जारी करता है, तो इसका मतलब उसे मालूम नहीं कि सन्दिग्ध कहां छुपा है? जबकि फसीह के मामले में एजेंसियों को मालूम था. मगर कोर्ट में उन्होंने आरोप बताने के लिए वक्त लिया. इसका मतलब है कि उन्हें आरोप फर्जी तरीके से गढ़ने थे. 6 जून को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय ने संयुक्त रुप से कहा कि फसीह उनकी हिरासत में नहीं है, और न ही अल-जुबैल, उनके आवास से 13 मई को उठाने में उनकी कोई भूमिका है. (http://www.firstpost.com/india/saudi-press-says-govt-deported-missing-indian-engineer-335298.html) इस बात का भी खंडन किया कि उन्हें भारत लाया गया है. उन्होंने 10 दिन का वक्त मांगा. अगली सुनवाई की तारीख 9 जुलाई को थी.

गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने उन मीडिया रिपोर्ट को खारिज किया, जिसमें महमूद के बारे में बताया गया था कि भारतीय अधिकारियों द्वारा 2010 के चिन्नास्वामी स्टेडियम मामले में उन्हें पकड़ा गया है. आरोपों और तथ्यों को बेबुनियाद बताया. (http://www.firstpost.com/india/missing-engineers-wife-seeks-answers-from-govt-333956.html)

दरअसल गौर से देखा जाए तो यह एक बड़ी खतरनाक स्थिति हैं. एक तरफ गृह मंत्री कह रहे थे कि उन्हें मालूम नहीं दूसरी तरफ उस आदमी पर आतंकवाद के नाम पर रेड कार्नर नोटिस जारी की जाती है. दरअसल, सरकार के समानान्तर एक व्यवस्था खुफिया एजेंसियों द्वारा संचालित की जा रही है. जिसकी सरकार के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है. यह एक महत्वपूर्ण चिंता और जांच का विषय है. क्योंकि एक तरह से देखा जाय तो यह खुफिया द्वारा सरकार टेक ओवर है.

सरकार की भूमिका पर निकहत कहती हैं कि विदेश मंत्रालय या गृह मंत्रालय को पता करना होता तो उनका एक फोन ही काफी था. बाद में उनका यह बयान अखबारों में आने लगा कि फसीह सउदी में छुपा हुआ है. जबकि जो पहले ही उठा लिया गया हो, वो छुपा कैसे हो सकता है? 9 की सुनवाई में सरकार ने कहा कि सउदी सरकार से बात हुई है और उन्होंने 26 जून को यह बताया है कि फसीह वहां है, मगर इसमें उनका कोई हाथ नहीं है.

भारत सरकार ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए अब तक नहीं बताया है कि फसीह को सउदी में कब उठाया गया. यहां सवाल यह है कि एक भारतीय नागरिक जिसका पूरा परिवार और समाज पिछले दो महीनों से परेशान है उसको यह बताना कहां से सुरक्षा की दृष्टि से  खतरनाक है? ख़तरनाक तो पिछले पांच महीनों से उसका गायब होना था.

निकहत का सवाल है कि जब फ़सीह को 13 मई को उठाया तो उसके खिलाफ रेड कार्नर नोटिस भी जारी नहीं था, तो आखिर सउदी सरकार को कैसे पता चला कि फसीह को उठाना है? भारत में किस आरोप के कारण उसे डिपोर्ट करना है? या तो भारतीय सरकार ने वहां के आंतरिक मत्रालय से बात की और फसीह को उठवाया या फिर सउदी ने पहले ही भविष्यवाणी कर ली थी? फ़सीह को उठाने की बात जैसा कि सरकार ने अंतिम सुनवाई में बताया तो फिर यह कैसे हो सकता है कि वो कहे कि उठाने में उनका कोई हाथ नहीं है? दोनों सरकारों के सलाह-मशवरे के बगैर फसीह को उठाया तो नहीं जा सकता था? प्रत्यर्पण संधि के कुछ नियम कायदे होते है और उनके तहत ही यह सब हुआ होगा, सउदी सरकार किसी भारतीय मामले में बिना भारत सरकार की किसी सूचना या बातचीत के ऐसा नहीं कर सकती है?

आश्चर्य से निकहत कहती है कि जो रेड कार्नर नोटिस जारी हुआ, उसमें बताया गया कि फ़सीह 2010 से गायब है. जबकि फसीह 2010 में भी भारत आए थे और 2011 में जो हमारी शादी हुई उसमें भी वो आए. और हमेशा दिल्ली हवाई अड्डे से ही आए और गए भी हैं. निकहत सवालिया जवाब देते हुए कहती हैं कि तो क्या इन एजेंसियों ने जानते हुए रेड कार्नर नोटिस में उनके भागे होने की बात कही है, ताकी वो केस बना सकें? 11 जून को कर्नाटक ने काउंटर एफीडेविड कोर्ट में दाखिल की. उसमें उन्होंने फसीह का पूरा कैरियर डिटेल डाला. जिसमें सउदी में उन्होंने अब तक कहां और किस-किस प्रोजेक्ट पर काम किया है, पूरे तथ्यों और कम्पनी के नाम के साथ. फिर निकहत का सवाल कि अगर उनसे कोई पूछताछ नहीं की गई तो ये सारी बातें कर्नाटक पुलिस को कैसे पता चलीं?

खुफिया एजेंसियों द्वारा फ़सीह महमूद के अपहरण और उन पर आतंकवाद के फर्जी आरोपों को चस्पा करने के कुछ सवालों का जवाब भारत सरकार को देना ही होगा और उन सवालों के भी जवाब देने होंगे जिनके उसने नहीं दिए. क्योंकि इन सवालों ने पिछले कई महीने से निकहत परवीन और उनके पूरे परिवार के होश उड़ा दिए हैं. देश के पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम को भी अपने गैर-जिम्मेदाराना आपराधिक रवैए पर जवाब देना ही होगा क्योंकि निकहत का सवाल इस लोकतंत्र का सवाल हैं कि क्या वो अपने देश के नागरिकों को जीने का अधिकार भी अब नहीं देना चाहता? देखते हैं निकहत दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में कब तक अपने सवालों का जवाब खुद ब खुद ढूढंती हैं? और उस दिन का इंतजार कब पूरा होगा जब सरकार उनके सवालों का जवाब देते हुए उनके पति को बाइज़्ज़त बरी करती है?

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