माटी की पुकार पर छोड़ा अपना सारा सुख…

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Fahmina Hussain for BeyondHeadlines

विदेशों में अपने प्रतिभा का लोहा मनवा चुके आसिफ इक़बाल उर्फ ताजिर को अपनी माटी ने जब आवाज़ दी तो वह खुद को रोक नहीं पाए और दुबई से अपनी अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर बिहार लौट आए. फिलहाल आसिफ बिहार के पश्चिम चम्पारण ज़िला के बेतिया शहर के लोगों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं. इसके साथ ही वो पश्चिम चम्पारण ज़िला वक़्फ बोर्ड के कोषाध्यक्ष के तौर पर अपनी सेवा अंजाम दे रहे हैं.

30 वर्षीय आसिफ ने अपने स्नातक तक की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से मुकम्मल की. साल 1998-99 में ए.एम.यू. छात्र संघ के कोर्ट मेम्बर भी रहे. इसके बाद आई.एम.एस गाज़ियाबाद से इन्टरनेशनल बिज़नेस में एमबीए किया और नौकरी के खातिर दुबई चले गए. वहां उन्होंने सिमेंस में एरिया मैनेजर के तौर काम किया, फिर ए.बी.एम. इंफोरमेशन टेक्नोलॉजी के बाद स्टैण्डर्ड चार्टड बैंक, दुबई में टीम लीडर हुए और फिर दुबई बैंक के ब्रांच मैनेजर के पद पर स्थापित हुए. इसके बाद लंदन में स्विस बैंक से ऑफर मिला, लेकिन वो लंदन में 90 हज़ार पौंड का शानदार  ऑफर छोड़कर अपने मुल्क हिन्दुस्तान चले आएं और अपने वतन में समाजिक कार्य शुरू किया. आज आसिफ की ही देन है कि उनके इलाके के वो छात्र जिन्हें पढ़ाई से कोई मतलब नहीं था, जो दिन-रात में अवारागर्दी में मस्त रहा करते थे, वो आज देश के महत्वूर्ण विश्वविद्यालयों से अपनी पढ़ाई कर रहे हैं.

वो बताते हैं कि सब कुछ छोड़ कर आने की वजह यह है कि जब मैं नौकरी कर रहा था तो अक्सर यह सोचा करता था कि आखिर हमारे इलाक़े और यहां में इतना फर्क क्यों है? बहुत सोचने और समझने के बाद यह समझ में आया कि हमारे इलाके के लोग यहां से ज़्यादा अच्छे और मेहनती हैं पर कमी है तो सिर्फ शिक्षा और एक सही आदमी की, जो उन्हें सही रास्ता दिखा सके. दरअसल, हमारे इलाके के लोगों का कोई रहबर नहीं है. अगर सही आदमी इन लोगों का रहबर होता तो हमारा इलाक़ा दुबई से भी ज़्यादा अच्छा और ख़ुबसूरत होता. बस थोड़े से त्याग की ज़रूरत है, फिर तो कहीं भी बदलाव लाया जा सकता है. बस यही बातें मुझे वापस अपने वतन में लौटने को मजबूर कर दिया और मैं बगैर कुछ सोच-समझे वापस अपने मुल्क, अपने वतन आ गया. अब मेरी पूरी कोशिश यह है कि मैं अपने इलाक़े को एक नया मोड़ दूं, और अपने शहर को दुबई व पेरिस से भी ज़्यादा खुबसूरत शहर बनाउं.

आसिफ इन दिनों अपने इलाके में एक ऐसा इंगलिश मीडियम स्कूल खोलने की कोशिश कर रहे हैं, जहां गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा मिल सके. यही नहीं, जो बच्चें आगे पढ़ना चाहते हैं, उनके लिए भी यह काफी मददगार हैं, उनकी काउंसिलिंग कर सही कैरियर के चयन में भी मदद करते हैं. उनके घर पर सुबह से शाम से छात्रों की एक अच्छी-खासी भीड़ होती है, जो उनसे गाइडेंस के लिए आते हैं. वो कहते हैं कि हमारे शहर के बच्चों में पढ़ने की ललक तो बहुत है, पर आर्थिक स्थिति बेहतर न होने की वजह से उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर पाते हैं. ऐसे में उनका सारा ध्यान उनके लिए स्कॉलरशिप का इंतज़ाम करना, सरकार द्वारा दिए जा रहे स्कॉलरशिप के लिए फार्म भरवाना, शहर व राज्य से बाहर के कॉलेजों व विश्वविद्यालयों की जानकारी देना, किस कोर्स में दाखिला लेने से क्या फायदा होगा इस बारे में बताना, ऑनलाईन फार्म भरना सिखाना और नए जेनरेशन को उन तमाम चीज़ों व अधिकारों के बारे में बताना जिन से शहर के लोगों को ज़्यादा से ज़्यादा लाभ मिल सके, पर है.

यही नहीं, इसके अलावा आसिफ लोगों सूचना के अधिकार की भी ट्रेनिंग देते हैं, ताकि सरकारी विभाग में उनके रूके हुए काम बगैर किसी रिश्वत के तुरंत करवा सके. यही नहीं, उन्होंने आरटीआई की मदद से ज़िला में अल्पसंख्यक स्कीमों में होने वाली धांधली को भी उजागर किया और फिर इस मामले को लेकर अल्पसंख्यक मंत्रालय भी गए, जिसके बाद इस मामले की जांच के लिए बिहार सरकार को नोटिस भी जारी किया गया.

इसके अलावा आसिफ दहेज प्रथा के खिलाफ भी एक मुहिम चला रहे हैं. इसके लिए उन्होंने एक टीम बनाई है, जो लोगों को जागरूक करने के साथ-साथ गरीब लड़कियों की शादी के लिए आपस में पैसे जमा करके शादी में मदद करने का काम करते हैं. उसके अलावा लड़की के परिवार वालों को सरकार की तरफ से चल रही कन्या विवाह योजना जैसे स्कीमों के बारे में भी बताते हैं.

बकौल आसिफ, पहले समाज व सिस्टम में ढलने में परेशानी हुई पर अब दुबई के फाइव स्टार की तुलना में ढ़ावा का खाना ज़्यादा अच्छा लगता है. इनका मानना है कि बाहर रहने वाले सारे बिहारी प्रदेश के बारे में ज़रूर सोचें और जहां तक संभव हो विकास में अपनी भागीदारी निभाएं. ऐसा करने से ही बिहार देश का समृद्ध राज्य बन सकेगा.

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