फिर भी कुछ नहीं कहती मां…

Beyond Headlines
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Anita Gautam for BeyondHeadlines

समय के साथ रिश्ते-नाते, प्यार और संबंधों की मज़बूती दिन प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है. हर रिश्तों में कहीं न कहीं स्वार्थ समा गया है. पर इसी जहान में एक रिश्ता ऐसा भी है जिसमें कोई स्वार्थ नहीं, और वो है सिर्फ माँ का…

माँ की परिभाषा की व्याख्या करना शायद उतना ही कठिन है जितना ब्रह्मांड या आसमान का चित्रण करना… आधुनिकता और भागदौड़ में आज का दिन हम जैसे व्यस्त लोगों ने अपनी माँ के नाम किया है. पता नहीं ये आधुनिकता है या लोगों की व्यस्तता, हर रिश्ते को मात्र एक दिन में समेट कर रख दिया गया है. बच्चे की आयु चाहे कुछ भी हो पर माँ स्वयं कष्ट में रहकर बच्चे का सदैव भला ही सोचती है.

स्वयं भगवान माँ की ममता पाने धरती पर राम, कृष्ण जैसे अनेक रूपों में अवतरित हुए. जन्म देने वाली हो या पालन-पोषण करने वाली मां, उसकी बच्चों के प्रति ममतामयी अवश्य ही होती है. माँ देवकी और माँ यशोदा का भगवान कृष्ण के प्रति वात्सल्य, किसी से छिपा नहीं.

पूतना जो कि एक सुंदरी थी, वो चाहती थी कि कृष्ण को अपने गोद में बिठा उन्हें स्तनपान कराएं किन्तु किसी श्राप के कारण वो पूतना बनी, लेकिन वो भी भगवान की ही माया थी जिसमें उन्होंने पूतना का स्तनपान करते ही उसे श्रापमुक्त कर दैवलोक में भेज दिया.

Mothers Day

काल कोई भी रहा हो माँ बच्चे की हजारों गलतियों को माफ़ कर निर्मल, पावन हृदय से सीने से लगाये घुमती है. लोगों को दर्द में यकीनन मां की याद आती है और शायद गाली के नाम पर भी… लोग बहुत ही तसल्ली और शान से माँ की गाली दे देते है.

माँ, जो एक पत्नी भी है साल के 365 दिन बिना छुट्टी किए, ओवर टाईम करते हुए, पति, पैदा किए बच्चे, अनगिनत रिश्तेदारों की खारितनवाजी में दिन रात चुर रहती है. वो एक महिला शादी के फेरों की अग्नि में अपने आप को समाप्त कर, सात फेरों के बंधनों में बंध, एक नये रिश्ते, नये स्वरूप और नये व्यवहार, नये आचरण में ढाल लेती है.

उसने शायद ही कभी अपने मायके में अपने जूठे बर्तन धोये हों पर यहाँ सबका जूठन उठाए खुशी से ठीक वैसे ही रहती है जैसे माँ सीता अपने पुत्रों के साथ वन में रहती थी, राजा की पुत्री होने के साथ-साथ रघुकुल में ब्याहि एक सूर्यवंशी की पत्नी थीं, जिसके लिए शादी से पहले एक फूल तक उठाने के लिए अनेक सेविकाएं हुआ करती थी, वहीं स्त्री पत्नी धर्म का पालन कर अपने पति के साथ 14 वर्ष तक वनवास में रहीं.

फिर वहीं सीता मां बाद में अपने दोनों पुत्रों के साथ वन में रहीं. वो लकड़ी काटती, घास-फूस तक एकत्रित कर चूल्हा जलाती थी और चक्की से आटा भी पिसती थीं, क्योंकि वो माँ है और मां के साथ एक स्वाभिमानी औरत भी.

हमारे घरों में माँ के लिए यदि दाल सब्जी कम पड़ जाए तो खुद नमक से रोटी तो रोटी, खत्म होने पर चावल या कभी-कभी भूखे पेट ही सो जाती है, पर परिवार को भरपेट भोजन कराती है. रोज स्वादिष्ट खाना बनाती है तो परिवार का एक भी सदस्य तारीफ करने के लिए मुंह नहीं खोलता पर जिस दिन कभी गलती से नमक कम या ज्यादा हो जाए, रोटी ज़रा-सी जल जाए या चावल थोड़ा कड़ा हो जाए, घर में कोई सदस्य बोलने से नहीं चुकता.

खुद के बदन दर्द में पति के शरीर का दर्द दूर करती है, बच्चों के दूध के खातिर खुद कैल्शियम की कमी से घुटने के दर्द से जुझती है. अपनी पैदा हुई बेटी के लिए उसके विवाह के सपने देख-देख गहने तक संजोने लगती है तो बेटे की पढ़ाई के लिए घर तक गिरवी रख देती है और पति से लाख झगड़ा करने पर भी सुहागन मरने की जिद करती है और पति महोदय, श्रीमति जी के लिए कभी प्यार से दो टूक बोलें या ना बोलें पर फरमाइश पूरी होते ही ये बोलने से बाज़ नहीं आते- काम के धून की पक्की, ऐसी है मेरी पवन चक्की…

ये वही औरत है, जो शायद कभी किसी की प्रेमिका हुआ करती होगी पर आज हमारी माँ है. तब इसकी एक मुस्कान पर लोग गश (मूर्छा) खा गिरते थे, लोग एक नज़र देखने को तरसते थे. पर आज अपनी जिम्मेदारियां तले चेहरे की झुर्रियों के बीच हम अपनी माँ को एक नज़र उठा नहीं देखते. 

माँ रात-दिन, सोते-जागते सिर्फ और सिर्फ अपने बच्चों के बारे में ही सोचती हैं पर क्या हम कभी अपनी माँ के बारे में, थोड़ा समय निकाल सोचते हैं? जितने प्रेम से अपने मित्रों का ध्यान रखते हैं क्या कभी अपनी माँ की तबीयत खराब में उसका ख्याल रखते हैं?

दो दिन यदि माँ बीमार हो जाए, पूरा घर अस्त-व्यस्त हो जाता है. सबकी नैया पार लगाने वाला भगवान भी बिना मैया के नहीं रह सका फिर हम तो एक आम इंसान हैं. लोग बोलते हैं अच्छे कर्म करो, भगवान खुश होंगे पर भगवान को खुश करने की अपेक्षा हर दिन हर पल अपनी माँ को सुख देना चाहिए, क्योंकि माँ भगवान का ही एक रूप है.

(लेखिका प्रतिभा जननी सेवा संस्थान से जुड़ी हैं.)

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