जहां हिन्दू मुसलमान साथ में हैं, वहाँ हिन्दू मुसलमान आपस में लड़ते हैं. जहां मुसलमान नहीं हैं उस गाँव में हिन्दू आपस में ही लड़ते हैं. हिन्दू आपस में ही एक दूसरी ज़ात के साथ लड़ते हैं. सवर्ण और दलित लड़ते हैं… जाट और गूजर आपस में लड़ते हैं… अहीर और कुर्मी लड़ते हैं… एक दूसरे की बस्तियां जलाते हैं… बच्चों को क़त्ल कर देते हैं…
दुनिया के जिन देशों में सिर्फ मुसलमान रहते हैं. वहाँ मुसलमान आपस में ही फिरके बना कर एक दूसरे को मार काट रहे हैं… मस्जिदों में बम फोड़ रहे हैं. घरों पर… औरतों पर हमले कर रहे हैं… शिया सुन्नी और बीसियों फिरके बना कर एक दूसरे फिरके के निर्दोष लोगों को पकड़ कर क़त्ल कर रहे हैं…
असल में ये लड़ना तुमने अपने जीने का तरीका बना लिया है…
दूसरे की दौलत और दूसरे की मेहनत पर ही तुम्हारी सारी अमीरी और विकास निर्भर है. इसलिये गिरोह बना कर दूसरे लोगों के साथ लड़ना तुम्हारे लिये अब ज़रूरी हो गया है.
दूसरे की दौलत पर कब्ज़ा करने के लिये हम गिरोह बनाते हैं. हमारे सम्प्रदाय असल में हमारी यही गिरोहबंदी है. हम अमीर बनने के लिये और अमीरी को बनाये रखने के लिये ताकत चाहते हैं. इसलिये हमें लगता है कि हमारे लिये इस तरह की गिरोह बंदी ज़रूरी है.
ये साम्प्रदायिकता असल में हमारे लालच और ताकत की अंधी भूख का ही नतीजा है. बाकी तुम्हारे अल्लाह और भगवान के बारे में मेरा मूंह ना ही खुलवाओ तो ही अच्छा है.