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Reading: चम्पारण को अगला आज़मगढ़ बनाने की तैयारियाँ पूरी
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BeyondHeadlines > Exclusive > चम्पारण को अगला आज़मगढ़ बनाने की तैयारियाँ पूरी
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चम्पारण को अगला आज़मगढ़ बनाने की तैयारियाँ पूरी

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published September 7, 2013 1 View
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13 Min Read
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Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

जिस धरती से गाँधी ने पूरी दुनिया को अहिंसा का संकेत दिया था आज उसी पर हिंसा की राजनीतिक फसल काटी जा रही है. उनकी हत्या करने वाले लोगों के विचारों ने अब इस धरती पर अपना जाल फैला दिया है.

यही कारण है कि ये सांप्रदायिक शक्तियाँ बार-बार यहाँ का माहौल ख़राब करने में कामयाब हो रही हैं. बेतिया में दो संप्रदायों के बीच हुई हिंसक झड़प इसका सबसे ताज़ा उदाहरण है. ये भी खुदा का शुक्र ही है कि इलाक़े के सेक्युलर लोगों एवं प्रशासन की सूझबूझ के कारण हिंसा की ये चिंगारी शोला न बन सकी. लेकिन रह रहकर ये चिंगारी अब भी सुलग रही है.

यही वजह है कि डर के माहौल को ज़हन से निकालना लोगों के लिए अब आसान नहीं होगा. अब यह लगने लगा है कि आज़मगढ़, दरभंगा व समस्तीपूर के बाद अब चंपारण सांप्रदायिक मानसिकता की आग में सुलगने वाला है.

वैसे भी आईबी की नज़र काफी दिनों से इस चम्पारण पर थी, बल्कि दिल्ली के जामिया नगर इलाके में चम्पारण के कई बेगुनाह लड़कों को उठाकर फंसाने की कोशिश भी की गई. लेकिन शुक्र है उपर वाले का कि जामिया नगर के लोगों ने ऐसा होने नहीं दिया.

लेकिन अब मामला काफी गंभीर हो गया है. 12 दिनों के अंदर तीन प्रसिद्ध तथाकथित आतंकी टुंडा, हड्डी व भटकल इसी चम्पारण यानी नेपाल बॉर्डर से पकड़े गए हैं. और बताया जा रहा है कि इनके कई साथी अभी यहां छिपे हैं.

इनकी गिरफ़्तारी ने चंपारण के माहौल को संगीन बना दिया है. हो सकता है निकट भविष्य में यहाँ से और भी गिरफ़्तारियां की जाएं.

next target is champaranअखबार लिख रहे हैं कि भटकल चम्पारण भी आया था. और चम्पारण के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में गरीब छात्रों को पढ़ाई का खर्च उठाने की बात कही थी. भटकल यहां इम्तियाज़ के नाम से जाना जाता था. स्थानीय अखबारों के मुताबिक यहां के ग्रामीणों के अनुसार कुछ दिन पूर्व वह चनपटिया प्रखंड के बढ़ई टोला गांव में आया था.

गांव के एक धर्मस्थल को देखकर एक ही समुदाय के दो पक्षों में अनबन हो गई थी तो उसने उसे सलटाने में अहम भूमिका भी निभाई थी. बढ़ई टोला के बाद वह लौरिया के कुछ गांवो और वहां के शिकारपुर के कुछ क्षेत्रों का भी दौरा किया था. यहां के अखबारों ने यह भी लिखा है कि भटकल शाम को गांव के कुछ बेरोज़गार युवकों के साथ घुमने निकलता था और उनके क्षेत्र की राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक जनकारी लेता था.

ऐसी न जाने कितनी अफ़वाहों को यहाँ के अख़बार बिना किसी पुख्ता सोर्स के ख़बर बनाने में लगे हैं. सौ- दो सौ रुपए लेकर पेड ख़बरें लिखने वाले यहां के अप्रशिक्षित पत्रकार भटकल की गिरफ़्तारी के बाद अब खोजी पत्रकार बन गए हैं.

ऐसे में यहां हर  शख्स के चेहरे पर खौफ की लकीरों को आसानी से देखा जा सकता है. खासकर मुसलमानों के चेहरों पर यह लकीरें कुछ ज़्यादा ही गहरी हैं. हर किसी को डर सता रहा है कि क्या पता किस पल उनके आतंकी होने के कहानी लिख दी जाए.

हालांकि भटकल की गिरफ्तारी एक कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है, वहीं कई सवाल भी खड़े हुए हैं. जैसे इसकी गिरफ्तारी हुई कहां से हुई यह अपने आप में एक सवाल है.

केंद्रीय गृह सचिव अनिल गोस्वामी के मुताबिक भारत-नेपाल की सीमा के पास रक्सौल से गुरूवार सुबह यासीन भटकल की गिरफ्तारी हुई. वहीं जागरण ग्रुप के आई नेक्स्ट अखबार ने अपनी इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट में बताया है कि  मंगलवार रात को इंडो नेपाल बॉर्डर सोनौली से एसएसबी ने कुछ संदिग्धों को पकड़ा था, भटकल भी इन्हीं संदिग्धों में से एक था. इसी अखबार का यह भी कहना है कि ‘एक थ्योरी के मुताबिक उसे पकड़ा तो तीन देशों ने मिलकर था, लेकिन उसे नेपाल के रास्ते बिहार ले जाया गया. जहां भारत नेपाल बॉर्डर सोनौली पर यह तय किया गया कि उसकी गिरफ्तारी कहां दिखाई जाएगी.’

वहीं बिहार के हिन्दुस्तान के साथ-साथ कुछ अखबार इसकी गिरफ्तारी आदापूर से बता रहे हैं. तो प्रभात खबर के मुताबिक यासीन भटकल की गिरफ्तारी नेपाल के पोखरा के 9 किलो मीटर करीब के एक गांव से बताई गई है. वहीं जर्मन रेडियो की वेबसाइट http://www.dw.de ने अपनी खबर में लिखा है कि यासीन भटकल को भारत नेपाल सीमा के करीब उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से गिरफ्तार किया गया है.

नेपाली मीडिया इसकी गिरफ्तारी नेपाल की राजधानी काठमांडू से बता रही है. वहीं डीएनए अखबार के मुताबिक यासीन भटकल को यू.ए.ई. में देखा गया था. वहां पर मौजूद रिसर्च एंड अनालेसिस विंग (रॉ) के जासूसों ने तुरंत भारत को इस बात की खबर दी. यहां से भटकल के कारनामों का पूरा कट्ठा-चिट्ठा यानी डोजियर यू.ए.ई. सरकार को भेजा गया. यू.ए.ई. सरकार ने भटकल को देश छोड़ने से पहले ही उसे गिरफ्तार कर उसे भारतीय एजेंसियों के हवाले सौंप दिया.

रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब बताते हैं कि इस पूरे मसले को बारीकी से देखा जाय और जिस तरीके से पिछले दिनों चाहे वो लियाकत अली शाह का मामला हो या फिर टुंडा का इन सभी को भी नेपाल सीमा से गिरफ्तार करने का दावा किया गया था, दरअसल नेपाल एक कमजोर देश है जो भारत के खिलाफ बोलने से झिझकता है और भारतीय खुफिया एजेंसी आईबी को वहां से पहले से अपने पास रखे लोगों की गिरफ्तारी दिखाने में ज्यादा सहूलियत हासिल रहती है. जहां तक सवाल बोधगया में हुए धमाकों का है तो हर शख्स इस बात को जानता है कि जिस दिन आईबी प्रमुख आसिफ इब्राहिम ने इशरत जहां केस से आईबी अधिकारी राजेन्द्र कुमार का नाम हटाने के लिए कहा और ऐसा न करने पर मनोबल गिरने की दुहाई दी और उसके बाद बोधगया में धमाके हो गए तो इससे साफ हो गया था कि आईबी ने अपने सांप्रदायिक मनोबल को बचाने के लिए इस धमाके को कराया.

ऐसे में जिस तरीके से इस घटना में इंडियन मुजाहिदीन का नाम लिया गया और ठीक उसके बाद यासीन भटकल की गिरफ्तारी की गई, उस यासीन की जिसके आईबी के द्वारा प्लांटेड होने पर पहले से ही सवाल उठते रहे हैं तो ऐसे में यह साफ हो जाता है कि आईबी ही आईएम की संचालक है.

वहीं रिहाई मंच के राजीव व शाहनवाज़ आलम का कहना है कि जिस यासीन भटकल को इंडियन मुजाहिदीन का आतंकी बताया जा रहा है, वह दरअसल आईबी का ही आदमी है, जिसका इस्तेमाल खुफिया एजेंसियां  इंडियन मुजाहिदीन नाम के कागजी संगठन का हव्वा खड़ा करने के लिए कई सालों से कर रही थीं और जब उसके अस्तित्व पर चौतरफा सवाल उठने लगे तो यासीन भटकल को गिरफ्तार दिखा दिया. उन्होंने कहा कि पिछले दिनों उन्होंने खुद भटकल का दौरा किया था और उनके छोटे भाई अब्दुल समद और उनके चाचाओं समेत घर के दूसरे सदस्यों से बात की थी, जिसमें परिजनों ने बताया था कि उसका नाम यासीन भटकल नहीं बल्कि मोहम्मद अहमद सिद्दीबापा है.

उनके मुताबिक भटकल में तैनात सुरेश नाम के खुफिया विभाग के अधिकारी ने मोहम्मद अहमद सिद्दीबापा, रियाज भटकल, इकबाल भटकल, मौलाना शब्बीर समेत कई युवकों को पहले अपने झांसे में फंसाया और बाद में उन्हें यह डर दिखा कर कि वांटेड हो गए हैं. उन्हें भूमिगत हो जाने के लिए मजबूर कर दिया. दूसरी तरफ इन युवकों के बारे में खुफिया विभाग मीडिया में लगातार खबरें चलवाती रहीं.

राजीव यादव ने कहा कि भटकल के तमाम लोगों ने उन्हें बताया कि खुफिया अधिकारी सुरेश जो अब मंगलूरू में तैनात हैं, ने ही भटकल के नौजवानों को आईबी द्वारा गठित कथित आतंकी नेटवर्क को खड़ा किया है. अगर सरकार सचमुच आतंकवाद से लड़ने में गम्भीर है तो उसे सुरेश को गिरफ्तार कर पूछताछ करनी चाहिए.

कहानी यहीं खत्म नहीं होती. चम्पारण 2011 से ही निशाने पर है. और आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तारियां भी हुई पर बाद में उन नामों को दबा दिया गया और यहां की स्थानीय मीडिया भी खामोश रही. 2011 में पश्चिम चम्पारण जिले के बेतिया मुफस्सिल थाना के पिपरा मौजे गांव निवासी अमेरिका बिंद के घर पर पुलिस ने छापेमारी कर दो लाख 90 हजार रुपए के जाली नोट बरामद किए.

बरामद सभी नोट पांच-पांच सौ रुपए के थे जो अलग-अलग पॉलीथीन में छुपा कर रखे गए थे. मौके पर से पुलिस ने भारी  संख्या में आपत्तिजनक सामान और नोट छापने का उपकरण भी बरामद किया. इस पर आईएसआई का एजेन्ट होने का आरोप लगा. लेकिन वो अब कहां है, किसी को मालूम नहीं.

सन् 2011 के ही 14 अक्टूबर को नेपाल की सीमा से लगे पूर्वी चम्पारण जिले के हरसिद्धि थाना के यादवपुर गांव के दुर्गेश प्रसाद के घर से पुलिस ने आईएसआई के एजेंट प्रमोद कुशवाहा को गिरफ्तार किया. गिरफ्तार एजेंट के पास से 13 लाख रुपए मूल्य की जाली नोट, छह मोबाइल फोन जिनके सिम कार्ड पाकिस्तान, नेपाल और भारत के विभिन्न शहरों में रहने वाले के लोगों के नाम से लिए गए थे उसे भी बरामद किया गया.

आईएसआई एजेंट प्रमोद पूर्वी चम्पारण के रक्सौल के शीतलपुर गांव का निवासी है और वह नेपाल के वीरगंज शहर के घंटाघर स्थित अपने एक ठिकाने से जाली नोट समेत अन्य धंधो का कारोबार किया करता था. स्थानीय पुलिस के साथ-साथ मुंबई पुलिस को कई मामलों में उसकी लम्बे समय से तलाश थी. गिरफ्तारी के बाद एक दो छोटी खबरें छपी उसके बाद से इनका क्या हुआ किसी को पता नहीं…

अब इसी बीच खबर आई कि सुरक्षा एजेंसियां यदि सतर्क नहीं होती, तो तथाकथित आतंकी सरगना यासीन भटकल हर बार की तरह इस बार भी बच निकलता. खुफिया ब्यूरो (आइबी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भटकल को एजेंसियों की गतिविधियों पर संदेह हो गया था और वह पिछले 15 दिनों से अपने कमरे से बाहर नहीं निकला था.

ऐसे में एजेंसियों ने तत्काल कार्रवाई कर उसे गिरफ्तार करने का फैसला किया. एजेंसियां इस गिरफ्तारी को गोपनीय रखना चाहती थीं, लेकिन यह खबर लीक हो गई. इसके लिए एनआइए के अधिकारी लोकनाथ बेहरा को जिम्मेदार पाया गया और उन्हें मूल कैडर में वापस भेज दिया गया.

बेहरा वही अधिकारी हैं, जिनके नेतृत्व में एनआइए की टीम ने मुंबई हमले के लिए रेकी करने वाले लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी डेविड कोलमैन हेडली से शिकागो में पूछताछ की थी.

एनआइए के पुलिस महानिरीक्षक लोकनाथ बेहरा को जिम्मेदार पाया और गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने तत्काल बेहरा को वापस मूल कैडर केरल भेजने का आदेश जारी कर दिया. लेकिन ज़रा सोचिए जो व्यक्ति देश की महत्वपूर्ण खबरों को लीक करने का काम कर रहा था उसकी सजा सिर्फ  उसे वापस मूल कैडर केरल भेज कर पूरा कर लिया गया.

चंपारण की फ़िज़ा में ज़हर घुल रहा है. चम्पारण को अगला आज़मगढ़ बनाने की तैयारियाँ पूरी कर ली गई हैं. सवाल यही है कि क्या यहाँ के लोग ऐसे हालातों से निपटने के लिए ज़हनी तौर पर तैयार हैं?

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