मेवात में लड़कियों को पढ़ने की इजाज़त क्यों नहीं?

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Anjum Khan for BeyondHeadlines

शुरू से ही मुझे पढ़ाई में बहुत ज्यादा दिलचस्पी थी. सातवीं तक अपने मेवात के गावं के पास कामा कस्बा के अनामिका पब्लिक स्कूल से पढाई की, लेकिन जैसे ही मैंने सातवीं कक्षा पास की तो मेरे परिवार ने दादी के कहने पर मुझे स्कूल जाने से रोक दिया. क्योंकि उनका मानना था कि लड़कियों को स्कूल ज्यादा नहीं पढ़ाना चाहिए.

मैंने अपने अब्बू से जब आगे पढ़ने के लिए कहा तो पहले तो उन्होंने बिल्कुल ही मना कर दिया. पर मेरी जिद पर मुझे और मेरी छोटी बहन को पढ़ने के लिए दिल्ली के जामियातुल बनात नामक मदरसे में आलमियत करने के लिए भेज दिया. हालांकि हम दीनी तालीम हासिल करने के लिए घर से दिल्ली गए थे, लेकिन हमारे समाज को ये भी काबिले कबूल नहीं था. उनक मानना था कि पढ़ाई चाहे कैसी भी हो, लड़कियों को पढ़ना ही नहीं चाहिए. खैर, मेरे अब्बू ने हमारी जिद के आगे हमारी बातों को माना. और शायद वो थोड़ा बहुत पढ़ाई की अहमियत को भी समझते थे, इसलिए समाज से बगावत करके हमें पढ़ने के लिए मदरसा भेज दिया.

mewat and girls educationजब मैं आलमियत के आखिरी साल की पढाई कर रही थी तो मेरा मदरसा केन्द्रीय विश्वविद्यालय जामिया मिल्लिया इस्लामिया से affiliated हो गया और वहां हमारी आलमियत की डिग्री बारहवीं के समकक्ष मानी जाने लगी. मुझे जब इस बात की जानकारी मिली तो मेरी ख़ुशी के ठिकाना नहीं रहा. मेरे भाई इनामुल हसन इस वक़्त जामिया मिल्लिया से ही ग्रेजुएशन कर रहे थे. अक्सर मुझसे मिलने मदरसा आया करते थे. इस बार जब वो मुझसे मिलने मदरसा आये तो मैंने इस बारे में उनको बताया कि जामिया में हमारी डिग्री बारहवीं के समकक्ष मानी जाएगी. तो वो भी बहुत खुश हुए और मेरे लिए कुछ जनरल नालेज व सामाजिक मुद्दों पर आधारित कुछ किताबें लाकर दी.

अब मैं अपनी आलमियत की पढ़ाई के साथ-साथ जामिया मिल्लिया के इंट्रेंस की तैयारी भी बहुत ज्यादा मेहनत से कर रही थी. जब मेरे आलमियत के इम्तिहान चल रहे थे तो जामिया के इंट्रेंस फॉर्म निकल चुके थे. और मेरे भाई ने मेरे घर वालों को बगैर बताये मेरी राये से मेरे चार विषय (इस्लामिक स्टडीज, इतिहास, उर्दू, समाजशास्त्र) में फॉर्म भर दिए.

मेरे आलमियत के इम्तिहान ख़त्म हो जाने के बाद मैं सारे इंट्रेंस टेस्ट देकर गावं चली गयी. कुछ दिनों के बाद जब रिजल्ट आया तो मेरा नाम चारों विषय में आ गया. अब हमने इस बारे में परिवार वालों को बताया तो पहले मेरे घर वाले थोड़े झिझके पर अंदर से बहुत खुश थे और मुझे इंटरव्यू देने के लिए दिल्ली जाने की इजाज़त आसानी से दे दी. कुछ दिन बाद जब इंटरव्यू का रिजल्ट आया तो मेरा नाम चारों विषय में आ गया था.

अब मेरे दाखिले लेने जाने का समय आया तो मेरे अब्बू ने समाज के लोगों की वजह से यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने से मना कर दिया. मैं अपने गावं की पहली लड़की थी, जो यूनिवर्सिटी में पढ़ने का इरादा कर बैठी थी. और समाज के लोगों का यही मानना था कि लड़की को नहीं पढ़ाना चाहिए.

लेकिन इस मुश्किल वक़्त में मेरे भाई ने परिवार के बार-बार इन्कार करने पर भी मेरा साथ नहीं छोड़ा और घर वालों को हर मुमकिन तरीके से समझाने की कोशिश की.

मेरे मन में कई सारे सवाले थे. मैं अभी तक नहीं समझ पा रही थी कि आखिरकार ऐसी बात क्या है? जो हमारे घर वाले मुझे पढ़ने से रोकना चहाते हैं? जबकि मेरा बड़ा भाई उसी यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा है और वो भी चाहता है कि मैं वहाँ पढूं? और मुझे मेरे इस सवाल ने मुश्किल में डाल रखा था कि जिस जगह मेरा भाई पढ़ सकता है वहाँ मैं क्यों नही ? मुझे एक बार लगा कि शायद अब मैं नहीं पढ़ पाऊँगी…

लेकिन इसी बीच मुझे मेरे एक टीचर की बात याद आई कि “जब तुम किसी भी काम को करने के बारे में ठान लो तो ज़रूर कामयाब हो जाओगे. लेकिन किसी भी अच्छे काम के करने से पहले हिम्मत हारने वाले वालों का सामना करने के लिए तैयार हो जाओ.”

फिर से मैंने अपने लड़खड़ाते क़दमों को आगे बढ़ाने की कोशिश की और मैंने बहुत हिम्म्त करके ये सवाल अपने अब्बू से किया कि जहां मेरा भाई पढ़ सकता है वहां मैं क्यों नही? तो वो खामोश थे. लेकिन कुछ देर की ख़ामोशी के बाद उन्होंने मुझे समाज के वो सारे ख्यालात बतायें जिनकी वजह से न सिर्फ समाज के लोग अपनी बेटी बल्कि किसी भी लड़की के पढ़ाने के खिलाफ थे. और बताया कि यही वजह है कि हमारे समाज की कोई भी लड़की आज तक पढ़ाई में आगे नहीं बढ़ सकी है.

जब मुझे हमारे समाज के लड़कियों को न पढ़ाने की वजह मालूम हुई, तो मेरे अन्दर पढ़ने का और भी ज्यादा जज्बा पैदा हो गया. और  मैंने अपने अब्बू को हर मुमकिन तरीके से समझाया तो उन्होंने बहुत ही फ़िक्र्मन्द होते हुए मेरे भाई और मेरे ज़िद पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पढ़ाई करने की इजाज़त दे दी और मैंने यूनिवर्सिटी में अपने भाई की मदद से तमाम पारिवारिक और सामाजिक रुकावटों व बंधनों का सामना करते हुए हिस्ट्री ऑनर्स में दाखिला ले लिया.

अब मैंने जामिया में पढ़ाई करना शुरू कर दिया था, लेकिन अभी तक मेरे दिमाग में सिर्फ एक ही सवाल था कि आखिर मैं ऐसा  क्या करूँ जो लड़कियों की पढ़ाई को आगे बढ़ाने में मेरा सहयोग कर सके? मेवात की लड़कियां भी आगे पढ़ सकें. देश की तरक्की में उनका भी योगदान हो. कई सवाल मेरे मन में अब भी बाकी हैं.इसीलिए मेरे दिमाग में न सिर्फ मेरी पढाई का ख़याल था, बल्कि मैं अभी से अपने समाज की लड़कियों की पढाई के बारे में सोचने लगी थी.

अब जब भी गर्मी और सर्दी की छुट्टियों में मैं घर आती और अपने समाज की लड़कियों की हालात देकर मुझे यही लगता रहता था कि ना जाने कितनी लड़कियां ऐसी हैं, जो पढ़ना चाहती हैं, लेकिन हमारे समाज के अन्धविश्वास उनको शिक्षित होने की राह में रुकावट बने हुए हैं. वो मेरी तरह से घर में बगावत नहीं कर सकती हैं. मैं अपने दोस्तों व गांव की लड़कियों को शिक्षा के महत्व को बताने की कोशिश करती. इसका नतीजा यह हुआ कि गांव वाले अब मुझसे अपने घर की लड़कियों को ज़्यादा मिलने भी नहीं देते.

अब मेरा ग्रेजुएशन मुकम्मल होने वाला था. पर मैं आगे और पढ़ना चाहती थी. अपने समाज की हालत बदलना चाहती हूं. इसलिए भाई की मदद से हमने मुंबई के टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज में फॉर्म भरा. अल्लाह के करम से मैंने यहां इंट्रेंस टेस्ट पास कर लिया.

मेरे भाई भी फिक्रमंद थे कि क्या मेरे परिवार वाले मुझे मुंबई पढ़ने के लिए भेजेंगे या नहीं? लेकिन इस बार मैं इस बारे में फिक्रमंद नही थी. क्योंकि मुझे लगता था कि जब मलाला युसूफ जाई अपने पुरे मुल्क की लड़कियों को शिक्षित कराने की खातिर लड़ सकती है तो क्या अभी सिर्फ मैं अपनी पढाई को मुस्तकिल करने के लिए अपने परिवार और छोटे से समाज के अंधविश्वासों को कुचलते हुए आगे नहीं बढ़ सकूंगी.

मेरी हिम्मत व हौसले के आगे हारते हुए इस बार भी मुझे मेरे घर वालों ने ज्यादा वक़्त लगाये बिना ही मुझे हायर स्टडी के लिए मुंबई भेज दिया. और मैंने अपने भाई के सहयोग से मुंबई जाकर MSW in women centered practices की पढाई शुरू कर दी है.

अब मैं टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज मुंबई में न सिर्फ गांव बल्कि अपने पूरे मेवात इलाके की पहली लड़की हूँ. और इन दिनों मेवात में महिला शिक्षा के हालात पर अपना रिसर्च कर रही हूं. सच तो यह है कि लड़कियों को शिक्षित करने में न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि हिन्दुस्तान में भी न जाने कितनी लड़कियां शिक्षित होने के लिए जुझ रही है. लेकिन अब हम सब चुप नहीं बैठेंगे. हमें उस अन्धविश्वासी समाज का बहिष्कार करना ही पड़ेगा.

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