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BeyondHeadlines > Exclusive > मंदिर के नाम पर…
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मंदिर के नाम पर…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published November 19, 2013
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7 Min Read
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Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

चुनावों का मौसम करीब आने के साथ ही राजनीति की खेती तेज हो गई है. मगर खास बात यह है कि ये खेती धार्मिक भावनाओं की फसल काटकर संपत्ति हड़पने के नाम पर की जा रही है. ये वाक़या है बिहार के पश्चिम चम्पारण जिले के बेतिया शहर का, जहां कुछ ही दिन पहले एक पर्व को ‘मोदीकरण’ का रुप देकर धार्मिक भावनाओं को आहत करने की कोशिश की गई थी. इसी कड़ी में अब सरकारी ज़मीन पर मंदिर निर्माण की बात शुरु कर शहर का सांप्रदायिक सौहार्द तबाह करने की पुरजोर कोशिश की जा रही है.

ये मामला बेतिया के नाज़नी चौक, घसियार पट्टी रोड की एक सरकारी ज़मीन का है जिसका खसरा नं. 4332 है. इस ज़मीन पर एक कुआं व सरकारी नल लगा हुआ है जिसका यहां के लोग अरसे से इस्तेमाल करते आए हैं. पर अब मंदिर के नाम पर अवैध निर्माण कर यहां कब्जा करने व सांप्रदायिक सदभाव खराब करने की कोशिश की जा रही है. इस सिलसिले में स्थानीय लोगों ने बेतिया नगर के थाना प्रभारी को लिखित रूप में शिकायत भी दर्ज कराई है, जिसके बाद पुलिस प्रशासन की मदद से इस कोशिश पर फिलहाल रोक लग गई है. इस सिलसिले में स्थानीय लोगों ने शहर के ज़िला अधिकारी, पुलिस अधीक्षक और साथ ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी लिखित शिकायत भेजी है.

स्थानीय लोग बताते हैं कि इस ज़मीन पर कुआं व सरकारी नल के साथ ही पहले एक नीम का पेड़ भी हुआ करता था, जिस पर लोग आस्था स्वरूप धागा बांधा करते थे. बाद में वो पेड़ गिर गया तो यह प्रथा भी समाप्त हो गई. उसके कुछ सालों बाद वहां स्थानीय महिलाओं ने गाना-बजाना और कीर्तन शुरू किया, जिस पर मुहल्ले के लोगों ने आपत्ति भी दर्ज कराई. इस पर उन्होंने बताया कि यह सिर्फ कुछ दिनों की बात है. फिर इसे बंद कर दिया. इसके कुछ सालों बाद एक बार फिर से अचानक ही कुछ असामाजिक तत्वों ने इस ज़मीन पर अवैध निर्माण करने की कोशिश की. इस बात पर मुहल्ले वासियों ने एक बार फिर आपत्ति जताई और निर्माण कार्य रूक गया. लेकिन अब इसी नाम पर कुछ राजनीतिक व असामाजिक तत्व मंदिर निर्माण की कोशिश कर शहर का साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की क़वायद में हैं.

वहीं दूसरे पक्ष का कहना है कि विघीन माई का यह मंदिर काफी पुराना है. अब हम इसे बनाना चाहते हैं तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. हम मंदिर अपनी ज़मीन पर बना रहे हैं. लेकिन जब उनसे इसके कागज़ात दिखाने को कहा गया तो उनका स्पष्ट रूप से कहना था कि पूरे हिन्दुस्तान में किसी मंदिर का कोई कागज नहीं होता. ज़्यादातर मंदिर ऐसे ही बनते हैं.

इस सिलसिले में स्थानीय निवासी बब्लू बताते हैं कि ये ज़मीन सरकारी है और हमने ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते पुलिस प्रशासन को इस पूरे मामले से रूबरू करा दिया है. अब ये प्रशासन का काम है कि इस सरकारी ज़मीन की सुरक्षा करे, जो सबके इस्तेमाल में आती रही है. सरकार चाहे तो ज़मीन मंदिर के लिए दे भी सकती है, इसके लिए हम सबको कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन हम कुआं व नल को मंदिर में शामिल नहीं होने देंगे. कुआं को प्रशासन दोबारा खुदवाये.

वहीं जब इस सिलसिले में BeyondHeadlines ने बेतिया ज़िला अधिकारी अभय कुमार से बात की तो उन्होंने बताया कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है और शहर में ऐसा कोई मामला नहीं है.

स्पष्ट रहे हैं कि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के एक नहीं तीन-तीन आदेश आ चुके हैं. देश की सबसे बड़ी अदालत का पहला और सबसे अहम आदेश 2009 में आया था. 29 सितंबर 2009 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मंदिर, चर्च, मस्जिद या गुरुद्वारे के नाम पर अब किसी सरकारी सड़क, पार्क या कोई भी सरकारी जगह पर अवैध निर्माण की ना तो इजाज़त दी जाएगी और ना ही ऐसा निर्माण होने दिया जाएगा. अवैध धार्मिक इमारतों के निर्माण को अब इस आधार पर भी इजाजत नहीं दी जाएगी कि उन्हें हटाने पर कानून-व्यवस्था की मुश्किल खड़ी हो सकती है.

इसी साल 18 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने सड़क किनारे अतिक्रमण, धार्मिक स्थल का निर्माण या फिर नेताओं की मूर्तियां लगाने पर पाबंदी लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में सरकारी मशीनरी को ये अधिकार भी दिया है कि वो धार्मिक स्थल की आड़ में होने वाले गैर-कानूनी निर्माण पर हर हाल में रोक लगाए. कोर्ट का तर्क था कि अक्सर स्थानीय स्तर पर सियासी दबाव और लोगों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं करता. इसीलिए कोर्ट की तरफ से भी जवाबदेही स्थानीय अफसरों की ही तय की गई है.

10 मई 2011 को एक और मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि अगर गैर-कानूनी तरीके से बिना इजाज़त सरकारी ज़मीन पर धार्मिक इमारत का निर्माण किया गया हो तो अदालत इस बात पर भेद नहीं करेगी कि वो मंदिर है या मस्जिद.

अब देखना यह है कि बेतिया के स्थानीय अफसर व बेतिया पुलिस सुप्रीम कोर्ट के इन आदेशों का कितना पालन करते हैं. और अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन यहां के प्रशासन करती है तो इस स्थल पर अब तक हुए तमाम निर्माण को अविलंब हटा देना चाहिए…

हम आपको बताते चलें कि यह शहर गांधी के सत्याग्रह की भूमि रही है और अहिंसा ही इस धरती की पहचान है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से गांधी के गुजरात के ही एक सपूत के नाम पर शहर का साम्प्रदायिक माहौल खराब करने की कोशिश लगातार की जा रही है…

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