ख़बरें या मनोरंजन…?

Beyond Headlines
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Meraj Ahmad for BeyondHeadlines

चुनावी सरगर्मियां जब अपने चरम पर हों तो चुनावी मुद्दों पर चर्चा होना आम बात है. दिल्ली का चुनाव तो सर पर है ही, 2014 भी दूर नहीं है. ऐसे में मुख्य मुद्दे क्या होने चाहिए जिनके आधार पर राजनैतिक पार्टियाँ जनता के बीच जाएँ? वैसे तो हमारे देश में मुद्दों की कोई कमी नहीं है, लेकिन मुद्दों की प्राथमिकतायें तय कर देना, और फिर शार्ट टर्म गोल से लेकर लॉन्ग टर्म गोल का निर्धारण करना चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा है. चुनावों से पहले आम जनता से सम्बंधित मुद्दों पर यदि मीडिया में सारगर्भित राजनीतिक परिचर्चा हो जाये तो यह लड़खड़ाते हुए प्रजातंत्र के लिए यह ऑक्सीजन का काम करती है.

उचित तो यही है कि राजनीतिक पार्टियाँ लोक-लुभावन मुद्दे और उसके खोखलेपन से बाज़ आयें. मीडिया की ज़िम्मेदारी बनती है कि वह राजनीति की दशा और दिशा का निर्माण कर सरकारों तथा पार्टियों की जनता के प्रति जवाबदेही तय कर आम जनता से जुड़े मुद्दों पर खुली बहस कराये. लेकिन यदि मीडिया का ही एक बड़ा हिस्सा सतही ख़बरों पर निरंतर फोकस बनाये रखे तो यह चिंता का विषय है.

विगत कुछ समय से मीडिया (मुख्य रूप से विजुअल मीडिया) में आम जनता के मुद्दे पर बहस होना कम ही दिख रहा है. बिजली, पानी, रोज़गार, सड़क, जनहित सुविधाएँ, सामाजिक न्याय, कानून-व्यवस्था, महिला अधिकार इत्यादि मुद्दे सामान्य परिचर्चा से लगभग नदारद ही रहे हैं, और यदि रहे भी तो ‘सेंसेशन’ की भेंट चढ़ते दिखे. मुख्य रूप से ऐसे मुद्दे ही हावी रहे हैं जिनका आम जनता से सीधे तौर लेना देना नहीं है. 24X7 चलने वाले न्यूज़ चैनल्स सतही मुद्दों पर बहस करते या कराते दिखाई दे रहे हैं. स्टिंग आपरेशंस से लेकर साम्प्रदायिकता पर खोखली बहस, चरित्र हनन, खेल, फिल्म आदि मुद्दे ही पूरी जगह घेरे हुए दिख रहे हैं. ऐसा कहना उचित भी नहीं होगा कि यह ‘मुद्दे’ आवश्यक नहीं है, और नैतिकता की राजनीति में कोई जगह नहीं है, लेकिन इन ‘मुद्दों’ की सीमायें निर्धारित हो जानी चाहिए.

पिछले दिनों कुछ ‘मुद्दे’ बड़े हावी रहे हैं जिन्हें लगभग पूरे समय न सिर्फ ब्रॉडकास्ट किया गया बल्कि यह प्रमुख अखबारों के लगातार शीर्षक भी रहे. सचिन के रिटायरमेंट को जिस तरह से पूरे समय दिखाया गया और इसके बारे में लिखा गया उससे तो कम से कम यही भ्रम बना रहा कि देश का सबसे महत्त्वपूर्ण ‘मुद्दा’ यही है. ख़बरें यहीं खत्म भी नहीं होती हैं.

सचिन के लिए भारत रत्न की घोषणा हुई. इसके बाद भारत रत्न मिलने पर सवाल भी उठ खड़े हुए. कुछ चैनलों ने तो भारत रत्न मिलने की योग्यता पर लम्बी चौड़ी बहस ही करा दिया. नतीजा शून्य ही रहा. अभी मामला थमा ही था देश के महानतम खिलाड़ी ध्यानचंद को भी भारत रत्न मिलना चाहिए, इस पर भी ज़ोरदार बहस हुई. पूरे मन से देशवासियों ने इस ड्रामे को झेला. तत्पश्चात विश्वनाथ आनद का भी समय आया और कार्लसन विजयी हुए. आनंद के भविष्य पर चर्चा हुई. हफ्ते भर की ‘ख़बर’ फिर से पक्की हो गयी. बात सिर्फ खेल की ही नहीं है. मनोरंजन, आस्था, अन्धविश्वास और फिल्म सम्बंधित ‘ख़बरें’ भी मुख्य मुद्दे के रूप में चर्चा में बनी रहीं, जिसमें बाबा आसाराम ने कवरेज के मामले में टॉप ही कर दिया.

नित नए-नए होने वाले स्टिंग-आपरेशंस (जिसमें कई तो फर्जी रहे) भी एक तरह से सेंसेशन पैदा करते रहे हैं. ब्रॉडकास्ट मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया तक कोई कसर छोड़ते नहीं दिख रहे है. सत्यता को हर संभव ऐंगल से जांच-परख लेने की अजब क्षमता का विकास सा हो गया है. विषयों के महारथी और जानकार ‘एक्सपर्ट’ ओपीनियन देकर श्रोता/पाठक को किसी नतीजे पर न पहुँचने के लिए बाध्य किये दे रहे हैं. आरोप-प्रत्यारोप का दौर छोटी से छोटी बातों पर बना रहना राजनीति का हिस्सा है और इसकी सत्यता-असत्यता पर बहस होनी भी चाहिए लेकिन समस्या तब उत्पन्न होती है जब ऐसे आरोप-प्रत्यारोप दैनिक ख़बरों का प्रमुख मसाला निरंतर बने रहते हैं.

क्या इस प्रकार की ‘ख़बरों’ (या इस पूरी बहस) में कोई समानता है? थोड़ा गहराई से देखें तो एक धागा इस प्रकार की ‘ख़बरों’ से निकलता हुआ दिखाई देने लगता है. यह धागा एक मनोरंजन का साधन भी हो सकता है और ‘सेंसेशन’ का तो है ही. न्यूज़ चैनलों की भरमार और टी.आर.पी. का खेल संभवतः एक प्रमुख कारण है ‘मनोरंजक न्यूज़’ के पीछे. कुछ साल पहले तक चंद ही न्यूज़ चैनल हुआ करते थे जो कि कुछ घंटे ही ख़बरें प्रसारित करते थे. बाकी मनोरंजन के लिए श्रोता अन्य चैनलों (जो कि मूल रूप से विषय केन्द्रित हुआ करते थे) पर निर्भर रहा करता था. लेकिन आज ऐसा नहीं दिख रहा है. आज ‘ख़बरें’ सब कुछ हैं: मनोरंजन, क्राइम, थ्रिलर, रोमांस, कॉमेडी आदि. यदि आगे भी ऐसा ही चलता रहा तो निश्चित ही भविष्य में ऐसा समय आ सकता कि जब ‘ख़बरें’ मात्र मनोरंजन के लिए ही देखी और पढ़ी जाएँ. ऐसा होना उभरते भारतीय लोकतंत्र के लिए उचित नहीं होगा.

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