मुज़फ्फरनगर : न्याय की रक्षा अगर अदालतें नहीं करेंगी तो कौन करेगा…?

Beyond Headlines
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Himanshu Kumar

आज मुज़फ्फर नगर कचहरी में गया. यहाँ मेरे ताउजी की याद में एक द्वार बना हुआ है. वहाँ कुछ वकीलों से मुलाक़ात भी हुई.

वकील साहेबान बता रहे थे कि बहुसंख्य समुदाय के जिन दंगाइयों पर तीन-तीन हत्या के मामले भी थे उन्हें तो फटाफट ज़मानत दे दी गयी है. दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक नेता की दूकान का एक कांच टूटने के मामले में तीन दंगा पीड़ित मुसलमानों को शरणार्थी शिविर में से उनकी झोंपड़ी में से खींच कर जेल में डाल दिया गया और उन पर हत्या की कोशिश का मामला बना दिया गया. इन तीनों को ज़मानत देने से उसी अदालत ने इनकार कर दिया जो हत्या के आरोपियों को हाथों-हाथ ज़मानत दे रही है.

मैं इनकी पत्नियों से मिल कर लौटा हूँ.

अदालत में भी दंगाई समुदाय के वकीलों का दबदबा है. अल्पसंख्यक समुदाय के वकील दबाव की बात कहते हैं. मेरे पास इनकी बात पर यकीन करने के पर्याप्त कारण हैं.

मुझे अपने वकील दोस्त शोएब साहब का किस्सा मालूम है. उन्हें लखनऊ में वकीलों ने ही अदालत में जूतों की माला पहना कर जलूस निकाल दिया था और मुंह पर कालिख पोत दी थी क्योंकि शोएब साहब ने दो मुसलमान लड़कों की तरफ से अदालत में पेश होने के लिए अपना वकालतनामा पेश कर दिया था. जबकि पुलिस का प्रचार था कि वो युवक आतंकवादी है. हांलाकि बाद में उनमें से एक युवक खालिद की पुलिस हिरासत में ह्त्या कर दी गयी. लेकिन इस मामले में वकीलों ने जो किया वो हम सब की स्मृति में एक कड़वी याद छोड़ गया है. ये भी उल्लेखनीय है कि कि शोएब साहब आपातकाल में जेल भी गए थे और प्रगतिशील खेमे के सक्रीय कार्यकर्त्ता रहे हैं.

अगर हमारी अदालतें बिहार में अट्ठावन दलितों के हत्यारों को सज़ा नहीं देती. अगर अदालतें आदिवासियों की हत्याओं के मामलों की सुनवाई ही नहीं करती. अगर अदालतें मुसलमानों के जनसंहार पर इस तरह खुलेआम भेदभाव करेंगी तो भारत देश की जो पूरी परिकल्पना है उसकी ही हत्या हो जायेगी.  कानून और न्याय की रक्षा अगर अदालतें नहीं करेंगी तो कौन करेगा.

अगर न्याय के लिए आवाज़ उठाने वालों पर हमला किया जाएगा उन्हें देशद्रोही कह कर सताया जायेगा तो न्याय और बराबरी की संवैधानिक गारंटी का क्या होगा?

लेकिन हम सब लोग जो इस देश और इसके निवासियों को प्यार करते हैं और जिन्हें देश की चिंता है वो हाथ पर हाथ रख कर नहीं बैठे रहेंगे. हम अपनी पूरी ताक़त से न्याय और बराबरी के लिए अपनी जद्दोजहद जारी रखेंगे. इस माहौल में पीड़ितों को न्याय दिलवाना अब हमारे सामने बड़ी चुनौती होगी.

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