राहुल गांधी का इंटरव्यू…

Beyond Headlines
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Abhishek Upadhyay

उफ… अरे थोड़ा तो पढ़ लेते, इंटरव्यू देने से पहले… एंकर बार-बार पूछ रहा था कि जब नरेंद्र मोदी को सुप्रीम कोर्ट की एसआईटी ने क्लीन चिट दे दी तो आप उन्हें गुजरात दंगों का जिम्मेदार कैसे मानते हैं? कोई जवाब ही नहीं था… आरटीआई की उपलब्धियां गिनाने लगे साहब.

एंकर पूछ रहा है कि सज्जन कुमार और टाइटलर के नाम शामिल हैं, सिख दंगों के मामलों में. जनाब बोल रहे हैं कि मैंने तो उन सिख दंगे में हिस्सा लिया ही नहीं था, मुझसे क्या? कुछ भी नहीं पढ़कर आए थे, नेहरू गांधी परिवार के चिराग़…

सुप्रीम कोर्ट की इसी एसआईटी ने साल 2010 की अपनी रिपोर्ट में मोदी सरकार के दो मंत्रियों अशोक भट्ट और आईके जाडेजा का जिक्र किया था. जिक्र किया था कि ये दोनो ही मंत्री अहमदाबाद पुलिस नियंत्रण कक्ष और राज्य पुलिस नियंत्रण कक्ष में 28 फरवरी 2002 को बैठे हुए थे. ये उसी वक्त की बात है जब गुजरात में दंगों का लावा फूटा था. जाहिर सी बात है कि ये दोनों उन ज्वलनशील हालातों में इन कंट्रोल रूमों मे बैठकर कोई चने नहीं भूज रहे थे. मगर राहुल बाबा को अपनी किसी “आरटीआई” के जवाब में भी ये नाम नहीं मिले होंगे.

इसी एसआईटी की जांच पर अहमदाबाद के नरोड़ा पाटिया दंगों के मामले में मोदी सरकार की मंत्री माया कोडनानी को 28 साल की सजा हुई है. उन्हें दंगों की सरगना तक क़रार दिया गया. मगर राहुल बाबा की हालत ये लग रही थी कि अगर आप उन्हें माया कोडनानी का नाम भी याद दिला दें तो वे पूछ बैठेंगे कि क्या इन्हें हमारी नरेगा और आरटीआई स्कीम का फायदा मिला है?

इसी एसआईटी की रिपोर्ट ने साल 2010 में मोदी के “क्रिया की प्रतिक्रिया” वाले बयान का जिक्र करते हुए उन हालातों में इसे बेहद ही गैर जिम्मेदाराना करार दिया था. ध्यान देने वाली बात है कि कुछ ऐसा ही बयान राजीव ने भी इंदिरा की मौत के बाद दिया था कि जब एक बड़ा पेड़ गिरता है, तो आस पास की ज़मीन हिल जाती है. राजीव के इस बयान की उस दौर में क्या प्रतिक्रिया हुई थी, ये जानने के लिए आपको किसी रिपोर्ट की धूल फांकने की जरूरत नहीं है, सिर्फ एक बार कुछ कदम चलकर दिल्ली के सुल्तानपुरी, मंगोलपुरी और त्रिलोकपुरी के इलाकों मे घूमकर देख लीजिए. कलेजा काटने वाला सच आज भी आपका इंतजार कर रहा होगा.

ठीक इसी तरह गुजरात के उन हालातों में मोदी के बयानो ने और उनकी भूमिका ने क्या कहर ढाया होगा, इसे जानने के लिए बस एक बार उत्तरी गुजरात के मेहसाना से लेकर अहमदाबाद के नरोड़ा पाटिया होते हुए दाहोद और भरूच तक घूमकर देख लीजिए. सारी तस्वीर आंखों के आगे क्रूरता के नंगे नाच के तौर पर दौड़ जाएगी.

2010 की इस रिपोर्ट में मोदी पर पक्षपात के आरोप भी सिद्ध हुए थे, मगर 2012 की रिपोर्ट में मोदी के ओएसडी संजय भावसर के हवाले से बदल दिए गए. इतना ही नहीं इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त वरिष्ठ वकील और एमाइकस क्यूरी राजू राम चंद्रन ने नरेंद्र मोदी की जिम्मेदारी तय करते हुए उन पर आईपीसी की 153A (1) (a) और (b), 153B (1) (C), 166 और 505(2) जैसी धाराओं के तहत केस चलाए जाने की बात की थी. ये धाराएं यानि धर्म आधारित दुश्मनी, राष्ट्रीय संप्रभुता को नुकसान पहुंचाना, दुश्मनी-नफरत और बुरी नीयत से बयान देना आदि अनादि…

ये तो फैक्ट हैं. आप इन्हें कैसे नकार सकते हैं? ऐसे तो 2-3 दिसंबर 1984 की भोपाल गैस त्रासदी जिसमें सरकार के मुताबिक ही दुर्घटना के तुरंत बाद 3787 लोग मारे गए जबकि गैर सरकारी आंकडो़ में मरने वालों की तादात 16 हजार से ऊपर और प्रभावितों की तादाद साढ़े पांच लाख से ऊपर थी, का भी वारा न्यारा कर देना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने तो साल 1996 में ही विश्व के इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक इस त्रासदी के आरोपियों से कठोर धाराएं हटाते हुए इन्हें सिर्फ आपराधिक लापरवाही तक सीमित कर दिया था. तो क्या इससे भोपाल गैस कांड के जघन्य आरोपियों के पाप धुल गए? मिल गया हजारों कत्लेगारतों को इंसाफ! हो गया लाखों अपाहिज जिंदगानियों के हक़ में फैसला!

इतना ही नहीं जब सीबीआई ने इसी मामले में साल 2011 में क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल की, कि इस मामले की फिर से सुनवाई हो तो सुप्रीम कोर्ट ने ही पूछ लिया कि भइया ये 14 साल बाद क्यूं नींद से जागे हो? अब तक क्या कर रहे थे? अब नहीं हो सकती कोई फिर से सुनवाई. यानि इस देश में अगर एक जांच एजेंसी इस बात पर आमादा हो जाए कि वो “ए” की जगह “जेड” ही लिखेगी तो वो “जेड” कितना ताक़तवर होता है, इसे बताने की नहीं, बस महसूस करने की ज़रूरत है.

जांच एजेंसी ने तय कर लिया कि राजीव गांधी बोफोर्स में शामिल नहीं हैं… तो फिर साबित ही कर दिया कि… नहीं हैं… सारे तथ्य धुल गए… सारे तर्क धुल गए…. राजीव गांधी बाइज्जत बरी हो गए, बोफोर्स से… जिस बात पर कांग्रेसियों तक को बड़ी मुश्किल से या यूं कह लें कि मजबूरन ही यकीन होता है, उस पर भी सीबीआई ने यकीन करा दिया.

आज बार बार यही ख्याल आ रहा था कि अगर राजनारायण, जेपी या लोहिया जैसा कोई नेता कुर्सी की दूसरी तरफ होता तो क्या आग उबलकर सामने आती. बात सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती है. तय मानिए कि राहुल गांधी को उनके चारण चाटुकारों के अब तक कम से कम 1021 फोन आ चुके होंगे… कि “बॉस क्या जवाब दिया… अरे धो धिया बॉस… क्या पटककर मारा है… इतिहास रच दिया बास आपने…”

उनकी माता जी को भी अब तक उनकी अपनी स्वामिभक्त पलटन की ओर से कम से कम 2019 फोन आ चुके होंगे कि… “मैडम आंख में आंसू आ गए… बाबा ने क्या जवाब दिया है… अरे लाजबाब कर दिया सबको… आज राजीव जी होते… मैडम तो… कितना नाज़ करते अपने-हमारे बाबा पर… मैडम हमारा सौभाग्य है… मैडम… कि हमने बाबा को इस रूप में देखा है… अब तो आप निश्चिंत हो जाएं मैडम… बाबा के हाथों में सिर्फ भारत ही नहीं… अमेरीका और फ्रांस तक सुरक्षित हैं… ये सब साले भी एक दिन बाबा से ही सीखेंगे मैडम…”

मेरे एक बेहद ही अजीज दोस्त हैं अनिरूद्ध यादव उर्फ अन्नी जो इन दिनो कानपुर में किसी बड़ी तपस्या में रत हैं. अभी फिलहाल पब्लिक की आंखों से ओझल हैं. अन्नी इस तरह के मौके पर एक बड़ी माकूल बात कहता है. जब भी कोई इस तरह की अव्वल दर्जे की बेवकूफी करके खुश होता है जैसा कि आज राहुल बाबा ज़रूर होंगे, अन्नी का एक ही बयान होता है कि गुरू आज ये इतना खुश होगा कि कसम से 12 बार उछला होगा और 24 बार गिरा होगा. हमने अन्नी से कई बार पूछा कि भाई, ये 12 बार उछलने वाली बात तो समझ में आ गई, मगर कोई 12 बार उछलकर 24 बार कैसे गिर सकता है?

अन्नी ने आज तक मेरे इस सवाल का जवाब नहीं दिया है. बस हर बार यही कहा कि- गुरू यही होता है… मान लो…जो मैं कह रहा हूं… दरअसल अन्नी की एक आदत है. वो अपने हर सवालों को महसूस कराना चाहता है. और महसूस आप तभी तक करेंगे जब तक जवाब न ढूंढ पाएं. फिर भी सोचता था कि अन्नी से जब अगली मुलाकात होगी तो एक बार फिर कोशिश करूंगा इस सवाल का जवाब जानने की कि आखिर कोई 12 बार उछलकर 24 बार कैसे गिर सकता है?

मगर राहुल गांधी के आज के इस इंटरव्यू को देखने के बाद अब अन्नी से जवाब मांगने की इच्छा ही मर गई है. अब पहली बार सीरियसली तौर पर अन्नी की प्रतिभा को नमन कर रहा हूं. आज पहली बार सीरियसली तौर पर अन्नी के इस बयान की सार्थकता को दिल से महसूस कर रहा हूं. अन्नी तुम बिल्कुल सही हो… 12 बार उछलकर 24 बार गिरना कोई बड़ी बात नहीं है…

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