‘प्रधानमंत्री राहत कोष’ का एक सच…

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Amit Bhaskar for BeyondHeadlines

जब-जब हमारे देश में कोई आपदा या मुश्किल की घड़ी आई है. हम सबकुछ भूल कर एक हुए हैं. मदद के लिए हम सब एक साथ सामने आते हैं. बड़ी उम्मीद से प्रधानमंत्री राहत कोष में पैसा भेजते हैं. और सरकार उन पैसों को ख़र्च भी करती है, लेकिन वो ये पैसा कहां, कैसे और किस संस्था के माध्यम से ख़र्च करती है, देश की जनता को इसकी कोई जानकारी न मिल पाती.

BeyondHeadlines ने जब आरटीआई के ज़रिए प्रधानमंत्री कार्यालय से ‘प्रधानमंत्री राहत कोष’ के खर्च के ब्यौरे का हिसाब मांगा तो प्रधानमंत्री कार्यालय इस सवाल को यह कहते हुए टाल गया कि इसकी जानकारी आप प्रधानमंत्री के वेबसाइट से हासिल कर सकते हैं. हमने वेबसाइट की छान-बीन की, लेकिन वहां हमें ऐसी कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

आरटीआई से हासिल महत्वपूर्ण दस्तावेज़ यह भी बताते हैं कि पिछले साल जब उत्तराखंड में दिल दहलाने वाला विपदा आई थी,  तो लोगों ने दिल खोलकर प्रधानमंत्री राहत कोष में मदद की. इस तरह से साल 2013-14 में 12 फरवरी, 2014 तक 336.67 करोड़ रूपये राहत कोष में जमा हुए, और अब तक 278.88 करोड़ खर्च भी हो गए, लेकिन दस्तावेज़ बताते हैं कि उत्तराखंड आपदा में इस राहत कोष से सिर्फ 154.105 करोड़ रूपये ही उत्तराखंड सरकार को दिया गया है. जानकारी यह भी बताती है कि साल 2012-13 तक इस कोष में पहले से ही 1727.79 करोड़ रूपये मौजूद थे.

1937668_672330209456089_1850005022_oअब प्रधानमंत्री राहत कोष में आए पैसे और खर्च की बात की जाए तो आरटीआई से हासिल महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बताते हैं कि साल 2012-13 में राहत कोष में 17.59 करोड़ आएं और खर्च 181.52 करोड़ हुए. जबकि प्रधानमंत्री की वेबसाइट यह बता रही है कि इस साल राहत कोष में 211.41 करोड़ रूपये आएं.

यही हाल 2011-12 का भी है. आरटीआई से हासिल महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बताते हैं कि साल 2011-12 में राहत कोष में 22.75 करोड़ आएं और खर्च 128.84 करोड़ हुए. जबकि प्रधानमंत्री की वेबसाइट यह बता रही है कि इस साल राहत कोष में 200.79 करोड़ रूपये आएं.

आरटीआई से हासिल दस्तावेज़ के मुताबिक साल 2010-11 में 28.43 करोड़ राहत कोष में आएं और खर्च 182.31 करोड़ हुए. जबकि प्रधानमंत्री की वेबसाइट यह बता रही है कि इस साल राहत कोष में 155.61 करोड़ रूपये आएं. बाकी के वर्षों की कहानी भी ऐसी ही है.

आगे की कहानी और भी गंभीर है. ‘इंडिया टूडे’ के एक खबर के मुताबिक प्रधानमंत्री राहत कोष एक प्राइवेट संस्था है, जिसका सरकार से कोई लेना-देना नहीं है.

स्पष्ट रहे कि इस कोष की स्थापना देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की जनवरी 1948 में जारी अपील से हुई थी, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान से आए विस्थापितों की सहायता के लिए प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष बनाया था. उस अपील के मुताबिक फंड का संचालन एक कमेटी करेगी, जिसमें प्रधानमंत्री, कांग्रेस अध्यक्ष, उप प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, टाटा न्यासियों का, प्रतिनिधि और प्रधानमंत्री राहत कोष की प्रबंध समिति में फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स द्वारा नामित सदस्य होंगे. लेकिन पीएमओ की वेबसाइट के मुताबिक सारे निर्णय पीएम ही विवेक से करते हैं.

अब इस कोष का इस्तेमाल बाढ़, चक्रवात, भूकंप, दुर्घटनाओं-दंगों के पीडि़तों को राहत देने के अलावा दिल की सर्जरी, गुर्दा प्रत्यारोपण, कैंसर जैसी गंभीर और महंगे इलाज के लिए भी होता है. यह फंड बजटीय प्रावधान से नहीं, बल्कि नागरिकों, कंपनियों, संस्थाओं से मिले दान से संचालित होता है. इसमें दान करने वालों को अंशदान पर इनकम टैक्स भुगतान में छूट मिलती है. लेकिन इस फंड से मिलने वाली सहायता के पात्र व्यक्तियों के चयन की कोई प्रक्रिया नहीं है. सहायता पूरी तरह से प्रधानमंत्री के विवेक और उनके निर्देशों के अनुसार दी जाती है. इस कोष का काम पीएमओ के संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी राहत कोष के सचिव के तौर पर देखता है, जबकि उनकी सहायता के लिए निदेशक स्तर का अधिकारी तैनात होता है. इस कोष का ऑडिट संवैधानिक संस्था कैग नहीं, बल्कि बाहरी चार्टर्ड एकाउंटेंट करता है.

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