Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
शहर के पुरानी जामा मस्जिद के करीब एक छोटे से टूटे-फूटे घर में एक कुर्सी पर 13 साल का रोहित एक गमछा डाले गुमसूम सा बैठा हुआ है. वो चाहकर भी लेट नहीं सकता. क्योंकि उसके शहर में कुछ दिन पहले चली गोलियों में से एक उसके पीठ पर किनारे की तरफ लगते हुए सीने के एक हड्डी में धंसी हुई है.

घटना के बारे में पूछने पर रोहित के पास कोई जबाव नहीं हैं. उसकी ख़ामोश आँखें और दर्द से टूटा बदन इतना ही कह पाते हैं कि वो बेहद मुश्किल वक़्त से गुज़र रहा है. रोहित के चालीस वर्षीय पिता पूनम प्रकाश कहते हैं कि उसे कुछ भी पता नहीं हैं. उनके मुताबिक रोहित उस दिन घर पर ही था. जब फायरिंग होनी शुरू हुई तो वो पटाखे की आवाज़ समझ कर घर से बाहर निकला और एक गोली का शिकार हो गया.
रोहित मेवात में हाल ही में हुए सांप्रदायिक दंगों में घायल हुए कई लोगों में से एक हैं. ये दंगे एक डंपर की चपेट में आकर एक बाइक सवार की मौत के कारण हुए थे.
अपने पोतों रईस और मुबारक पर हुए ज़ुल्म की कहानी बताते हुए मो इदरीश की आँखें डूब जाती हैं. सुबकते हुए बताते हैं, “वो काफी देर तक पीटते रहे और किसी ने उन्हें नहीं बचाया. पुलिस के कुछ जवान काफी देर के बाद पहुंचे. उन्हें किसी तरह से बचाया, लेकिन उन गुस्साए लोगों ने फिर से उन्हें पुलिस के हाथों छीन कर सड़क पर गिराकर पिटाई की. उनकी हालत इतनी गंभीर थी कि उन्हें दिल्ली के ट्रामा सेन्टर भेजा गया. अभी फिलहाल वो गुड़गांव के पारस हॉस्पीटल में हैं.” दरअसल, इन्हीं के डंपर से ही तावड़ू में 8 जून की सुबह एक 22 वर्षीय बाइक चालक की मौत हुई थी और इसी घटना के बाद दो समुदाय के बीच हिंसा भड़क उठी थी.
उस दिन को याद कर स्थानीय निवासी मोहसिन पहले तो खामोश रहें. यहाँ की बाक़ी आँखों की तरह ही उनकी आँखें भी डरी हुईं थी. काफी देर सोचकर वे बोले, “एक्सिडेंट तो अक्सर ही होते रहते हैं. वो भी महज़ एक एक्सीडेंट ही था. एक मौत के बाद लोगों ने ड्राईवर व उसके सहयोगी को जमकर पीटा. हमें उस पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन अचानक उन्होंने अपना यह गुस्सा सड़क चलते लोगों पर निकालना शुरू कर दिया. जानबुझ कर एक खास समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया. और फिर शहर में मोबाईल, फेसबुक व व्हाटसप के ज़रिए अफवाह फैलाया गया कि मुसलमानों ने दो हिन्दू लड़कों को मार दिया है, अब तो अपने घरों से निकलो. यानी वो चाहते थे कि किसी तरह से इस आग को और भड़काया जाए और वो इसमें कामयाब भी रहें… और फिर वो बोलते बोलते खामोश हो जाते हैं.” फिर वो दुबारा बताते हैं कि ऐसी अफवाह मुस्लिम इलाकों में भी फैलाई गई थी.
व्यवसायी रमेश भारद्वाज ने बताया कि दंगों के दौरान दुकानें भी लूटी गईं. बग़ल के मिठाई दुकानदार की शिकायत है कि उनका भी दसियों हज़ार का नुक़सान हुआ. उनकी सारी मिठाइयां खराब हो चुकी हैं.
बाज़ार में थोड़ा आगे चलकर यहाँ के इकलौते मुस्लिम कारोबारी बहादुर खान के बेटे अफसील की दुकान है. उन्होंने कपड़ों का नया तीन फ्लोर का शोरूम खोला था. शो रूम को लूटकर आग के हवाले कर दिया गया था. अफसील के एक दोस्त शाहिद काफी मायूसी के साथ बताते हैं कि मेरे दोस्त ने न जाने कितने उम्मीदों व सपनों के साथ इस दुकान को खोला था. हम अक्सर शाम को यहीं आकर बैठा करते थे. पर अब सबकुछ बर्बाद हो गया. लाखों का माल लूट लिया गया. यह दर्द उनके दोस्त का था, अफसील के दिल पर क्या गुज़रा होगा, इसका अंदाज़ा आप खुद ही लगा सकते हैं.
एडवोकेट हाशिम खान काफी भावुकता के साथ बताते हैं कि भले ही हमारे हिन्दु भाईयों ने दुकाने बंद कर रखी हैं. पर हम अभी भी उन्हें दूध की सप्लाई दे रहे हैं. उनकी औरतें खुद हमारे मुहल्लों में आकर दूध लेकर जाती हैं और खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं. हम नहीं चाहते कि हमारे रिश्ते किसी भी तरह से खराब हों. न जाने इस शहर किसकी नज़र लग गई है.
दालाबास के सरपंच हनीफ मियां अपने आंखों के आंसू पोछते हुए बताते हैं कि दोनों पक्षों में काफी गहरा रिश्ता है. कारोबार हम साझे में ही करते हैं. हर दुख-दर्द में एक दूसरे के साथ रहते हैं. कई गांवों में हम खुद ही मंदिरों की सुरक्षा में लगे हुए हैं. लेकिन बड़ा अजीब लगता है कि जब एक पल में सारी मानवता समाप्त हो जाती है. वो हमसे बात करने तक को तैयार नहीं. हम अमन चाहते हैं. हमने बातचीत के लिए भी कई पैग़ाम भेजे. लेकिन एसपी, डीएसपी का कहना है कि वो तैयार नहीं हैं. इसका मतलब यह है कि ज़रूर कोई ऐसी ताक़त है जो उन्हें हमारे करीब आने से इस बार रोक रहा है. प्रशासन सब जानता है कि कौन हैं ये लोग….
इस तनाव के निशाने सिर्फ इंसान ही नहीं बने, बल्कि मस्जिद व मंदिर भी निशाने पर रहें. एक मस्जिद को आग लगा दी गई. तो दूसरे में तोड़-फोड़ की गई. कुरआन भी आग के हवाले किया गया. वहीं आरोप है कि मुसलमानों ने मंदिर पर हमला किया. 78 वर्षीय मंदिर के पुजारी बलदेव कृष्ण बताते हैं कि 407 में भरकर लोग आए थे और मंदिर पर पथराव किया था. मैं मंदिर के अंदर ही था. मेरे हाथ नहीं हैं, नहीं तो उनका मुकाबला करता… तो वहीं बगल में खड़े उनके मित्र पहले की फोटो दिखाने लगे कि किस प्रकार मूर्तियों को बिखेर दिया गया था. हालांकि मंदिर कोई नुक़सान नहीं हुआ था. खुद मंदिर पुजारी बताते हैं कि उन्हें भी कोई चोट नहीं आई.
आज इसी तनाव के नतीजे में शहर में कर्फ्यू है. हालांकि दिन में छूट दी जाती है. लेकिन शाम 7 बजे से कर्फ्यू नाफिज़ कर दिया जाता है. दिन में कर्फ्यू न होने के बावजूद शहर के सारे दुकानें पिछले सात दिनों से बंद हैं. अल्पसंख्यक तबका का आरोप है कि बाज़ार संघ की ओर से उन्होंने फरमान जारी किया है कि कोई भी दुकानदार किसी मुसलमान को सामान नहीं बेचेगा, अन्यथा उस पर 11 हज़ार रूपये की जुर्माना लगाई जाएगी. लेकिन शहर में जूते के व्यवसायी विपिन कुमार मक्खर इस आरोप को पूरी तरह से खारिज करते हैं. उनका कहना है कि हमने अपनी दुकानें इसलिए बंद की क्योंकि प्रशासन कार्रवाई नहीं कर रहा है. वो यह भी बताते हैं कि हमारे 60 फीसदी ग्राहक तो यही मुसलमान हैं. हम आपको बताते चलें कि रविवार से दुकानें पूरी तरह से खोल दी गई हैं.
एक तरफ जहां शहर में अमन व अमान क़ायम करने की कोशिश में शहर के अधिकतर बुद्धिजीवी लगे हुए हैं. तो वहीं अमर उजाला के एक खबर के मुताबिक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा का बयान ‘अब टेंशन लेने का नहीं, बल्कि टेंशन देने का समय है….’ काफी गंभीर प्रश्न खड़े कर रहा है.
बहरहाल, शहर में मेव समुदाय के लोगों ने अपनी तरफ से अमन के लिए 11 सदस्यों वाली एक अमन कमिटी का भी गठन किया गया है. इस कमिटी के चेयरमैन मो. अब्बास बताते हैं कि हम चाहते हैं कि हमारे इस इलाके का अमन व भाईचारा हमेशा के लिए कायम रहे. इसके लिए हमने प्रशासन को मेडियटर का काम सौंपा है.
वहीं सियासत से जुड़े लोगों का मानना है कि जान-बूझकर एक छोटी सी घटना को एक सियासी रंग दे दिया गया. यह प्रयास बिल्कुल वैसा ही है, जैसा लोकसभा चुनाव के पहले उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर इलाके में किया गया या फिर हाल के दिनों में महाराष्ट्र के पुणे शहर में. अगले साल हरियाणा में भी चुनाव होने को हैं, बस एक खास पार्टी इसी की तैयारी में लगी हुई है.
साथ ही मेवात के बुद्धिजीवी इस पूरे मामले को अवैध खनन से जोड़कर देखते हैं. उनका कहना है कि यहां पुलिस की मिलीभगत से काफी दिनों से अरावली के पहाडियों से अवैध खनन बेरोक टोक जारी है. इसी खनन के बाद बोल्डर इन डंपरों में भरकर जाते हैं. यह डंपर वाले कई बार काफी तेज़ गाड़ी चलाते हैं, ताकि कोई दूसरा पुलिस वाला उन्हें रोक न सके.
शहर के बंद दुकान, मस्जिद के जली हुई दिवारें, ज़मीन पर चिपकी हुई कुरआन जले हुए पन्ने, मंदिर के दिवार पर खरोंच और लोगों के दिलों में डर…. इन सबकी वजह काफी मामूली है. यूं तो मेवात के तावड़ू के करीब पटौदी रोड, न जाने कितने मौतों का गवाह है. यहां आए दिन सड़क दुर्घटना में मौतें होती रहती हैं. लेकिन पिछले 8 जून को एक डंपर व बाइक की टक्कर तावड़ू के लोगों के लिए एक बूरे सपने की तरह ही है.
स्पष्ट रहे कि 8 जून को इसी पटौदी रोड पर सुबह 8 बजे तावड़ू में 22 वर्षीय युवक की बाइक को एक डंपर ने हिट किया था. युवक की मौके पर ही मौत हो गई थी. इस मौत के बाद वहां गुस्साए लोगों ने डंपर के ड्राइवर व उसके साथी की पिटाई की और जाम लगा दिया. अभी इस मामले को ठंडा करने की कोशिश की ही जा रही थी कि इसे अचानक एक साम्प्रदायिक रंग दे दिया गया. फिर क्या था… जमकर दोनों समुदायों की तरफ से पथराव हुआ. बंदुके भी निकली और फायरिंग भी हुए. इसी फायरिंग का शिकार यहां का 13 वर्षीय रोहित भी हुआ. और तकरीबन 12 के करीब दोनों समुदाय के लोग ज़ख्मी हुए. अब भी तकरीबन 4-5 लोग शहर के अस्पताल में अपना इलाज करवा रहे हैं.
दोषी बख़्शे नहीं जाएंगे
शनिवार के दिन BeyondHeadlines से खास बातचीत में जिला मेवात के डिप्टी कमिश्नर आर. सी. वर्मा ने बताया कि अब हालात काबू में है. हमने कर्फ्यू में काफी ढ़ील दी हुई है. और हम कल कर्फ्यू पूरी तरह से खत्म कर देंगे. कल शाम से लोगों की तमाम दुकानें खुल जाएंगी. उन्होंने यह भी बताया कि इस सिलसिले में अब तक 16 शिकायतें दर्ज की गई हैं. मामले की जांच काफी तेज़ी के साथ किया जा रहा है. दोषी किसी भी हालत मे बक्शें नहीं जाएंगे.
एक प्रश्न के उत्तर में वो बताते हैं कि मेवात की तुलना उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर से करना बिल्कुल गलत होगा. क्योंकि यहां के लोगों में काफी भाईचारा है. दोनों समुदाय एक दूसरे के बगैर रह ही नहीं सकते. जल्द ही दोनों फिर एक हो जाएंगे…
अवैध खनन के संबंध में पूछे गए सवाल पर उनका कहना था कि पुलिस इसमें किसी भी तरह से संलिप्त नहीं है, लेकिन कुछ लोग शामिल ज़रूर हो सकते हैं. रिसोर्स की कमी की वजह से इस पर हम पूरी तरह से नकेल कसने में नाकाम हैं.
मुस्लिम इलाकों पर पुलिस का ज़ुल्म
अल्पसंख्यक समुदाय का आरोप है कि पुलिस एकतरफा कार्रवाई कर रही है. तावड़ी के गवारिका व पचगांवा इलाकों में रेड के नाम पर पुलिसिया ज़ुल्म का मंज़र साफ देखने को मिला. गिरफ्तारी के नाम पर लोगों के घरों में स्थानीय पुलिस के जवानों ने खूब तोड़-फोड़ मचाई है.
50 साला मगरी बताती है कि दिन के 3 बजे के आस-पास सैकड़ों पुलिस वाले उनके घर आएं. वो कासिम को पूछ रहे थे. कासिम घर पर नहीं था. बस फिर क्या था, उन्होंने घर के सारे शीशे व सामान तोड़ना शुरू कर दिया. हम उन्हें रोकते रहे और वो हमें धक्का व गाली देकर अपना काम करते रहें.
गवारिका गांव के लोगों का कहना है कि पुलिस इस गांव के 4 बच्चों को गिरफ्तार करके ले गई. 3 तो शाम को वापस आ गए, लेकिन 14 वर्षीय बशरू अभी तक लौटकर घर नहीं आया. उसके घर वाले थाना भी गए, लेकिन उन्हें अपना बच्चा नहीं मिला.
बशरूद्दिन के चाचा इलियास व उसकी चाची बताती हैं कि वो दिन 4 बजे के आस-पास घर पर ही सिलाई का काम कर रहा था. पुलिस वाले अचानक घर में आए और उसे पकड़ लिया. पूछने पर घर में हर तरफ तोड़-फोड़ मचा दी. यह कहानी सिर्फ इन्हीं की नहीं, बल्कि इस गांव में हमें कई घर मिले जहां पुलिस ने तोड़-फोड़ की है.
नई सरकार को आए अभी महीना भर भी नहीं हुआ है और ये 15वां दंगा है. अफ़सोस की बात यह है कि दंगे की वजह बेहद मामूली है. ऐसा लगता है कि हज़ारों साल से गंगा जमुनी तहज़ीब के जिस धागे ने भारत के हिेंदू-मुसलमानों को बाँधें रखा था वो अब टूट गया है. या किसी ने उसे तोड़ दिया है!