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रोज़ी (रोज़ा) रोटी, सेना और मीडिया

शिवसेना के सांसद ने बुरे बर्ताव की पराकाष्ठा करते हुए महाराष्ट्र सदन में सेवाएं दे रही आईआरसीटीसी के एक कर्मचारी के  मुंह में रोटी ठूंस दिया.

वो कर्मचारी अपनी रोज़ी पर था और नेताजी सांसद होने की अकड़ में… संयोगवश वह कर्मचारी मुस्लिम था और रोज़ेदार भी.

अब देश में धार्मिक भावनाएं भड़काने पर बहस हो रही है. संसद ठप्प है. मीडिया प्रफ़ुल्लित…

यदि वह कर्मचारी रोज़ेदार मुसलमान न होता तो भी क्या बात इतनी बढ़ती? या सांसद का व्यवहार अलग होता. असल में ये मामला नेताजी की ऐंठ का ज़्यादा, धार्मिक भावनाएं आहत करने का कम है.

नेताज़ी ग़ुस्से में थे और जो सामने आया उसके मुंह में रोटी ठूंस दी. बहुत संभव है कि नेताजी को पता ही न हो कि कर्मचारी रोज़ेदार मुसलमान है. उसकी जगह कोई और भी होता तब भी शायद सत्ता के नशे में चूर सांसद का व्यवहार ऐसा ही होता.

अभी हम मामले को मीडिया की नज़र से देख रहे हैं. रोज़ेदार के मुंह में सांसद का रोटी ठूंसना ज़बरदस्त टीआरपी मेटेरियल है.

ये एक बेहद संवदेनशील मामला है क्योंकि इसमें सांसद लिप्त हैं. वो भी हिंदूवादी पार्टी के. यदि सांसद सेक्युलर चेहरे वाली पार्टी के होते तो भी क्या मामले को इतना तूल दिया जाता.

दरअसल, बीते कुछ सालों से इस देश में मीडिया को हर मामले को हिंदू-मुसलमान के चश्मे से देखने की आदत हो गई है. और ये दोनों समुदाय भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे को लेकर उत्तेजित हो जाते हैं.

ऐसा नहीं होता तो साइकिल-मोटरसाइकिल की टक्कर मुज़फ़्फ़रनगर दंगे का रूप न लेती. अहमदाबाद में कार भिड़ने से दंगा नहीं भड़का. वडोदरा में मोटरसाइकिल टकारने से धार्मिक स्थलों पर पत्थरबाज़ी नहीं होती.

मीडिया का घटनाओं को हिंदू-मुसलमान के नज़रिए से देखना हमारी ज़हनियत पर भी इतना हावी हो गया है कि हम भी बस हिंदू-मुसलमान ही देखते हैं. हद तो तब हो जाती है जब लोग दुर्घटनाओं में मारे जाने वालों लोगों का भी नाम ही सबसे पहले पढ़ते हैं. ये जानने की लिए की मरने वाला हिंदू था या मुसलमान.

मुद्दे की बात ये है कि शिवसेना के सांसद ने जो किया वो यदि किसी हिंदू या ग़ैर रोज़ेदार के साथ होता तब भी वो क़ानून व्यवस्था को हाथ में लेने का उतना ही गंभीर मामला था जितना की अब है.

ये अलग बात है कि तब इस पर इतनी बहस न होती. हंगामा न होता.

ये सच है कि शिवसेना का रवैया मुसलमानों के प्रति कठोर रहा है. ये भी सच है कि प्रवीण तोगड़िया जैसे नेताओं के ज़हरीले बयान नज़रअंदाज़ किए जाते हैं.

लेकिन ये भी उतना ही सच है कि हम भी हर घटना को हिंदू-मुसलमान के नज़रिए से देखने के आदी हो गए हैं. ये नज़रिया शिवसेना के व्यवहार से भी ख़तरनाक है.

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