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BeyondHeadlines > Literature > इश्क़ में शहर हुए पुस्तक प्रेमी…
Literature

इश्क़ में शहर हुए पुस्तक प्रेमी…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published February 16, 2015
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5 Min Read
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BeyondHeadlines News Desk

नई दिल्ली : विश्व पुस्तक मेला के तीसरे दिन युवाओं ने शहर से खूब इश्क फरमाया. मौका था लप्रेक श्रृंखला की पहली पुस्तक ‘इश्क़ में शहर होना’ पर चर्चा का… प्रगति मैदान के हॉल न. 6 के सेमिनार हॉल में युवाओं की भीड़ इस क़दर उमड़ी कि उन्हें खड़े होकर कार्यक्रम देखना पड़ा.

वरिष्ठ टीवी पत्रकार रवीश कुमार लिखित ‘इश्क़ में शहर होना’ पर अपनी बात रखते हुए लेखक-पत्रकार निधीश त्यागी ने कहा “इस किताब ने जिस तरह से युवाओं में हिन्दी के प्रति आकर्षण पैदा किया है, वह एक शुभ संकेत है. रवीश अच्छे वाक्य लिखते हैं. इनके लिखे को पढ़ते हुए आप वैसे ही सांस लेते हैं, जैसे इसे लिखते समय लेखक ने ली होगी. मनुष्यता बचाने का प्रयास है यह… हिन्दी के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि वह नए सिरे से सांस ले रही है.’’

जाने माने रंगकर्मी, लेखक, गीतकार पीयूष मिश्रा ने ‘इश्क़ में शहर होना’ पुस्तक को जोरदार बताते हुए अपने पसंद की लगभग एक दर्जन कहानियां लप्रेक प्रेमियों को सुनायी. बीच-बीच में वो खुद को इन कहानियों से जोड़ते भी रहें.

लप्रेककार रवीश कुमार ने अपने किताब के बारे में कहा कि ‘हमने सोच कर नहीं लिखा. हम लिख रहे थे. बिल्कुल हम रचनात्मक प्रक्रिया से गुज़र रहे थे. कई बार लप्रेक लिखना कई तकलीफों से मुक्त होना भी था. उस खाप से भागते हुए इस शहर में जगह भी बनानी थी जिसके आगे कोई बोल नहीं पा रहा था. इस किताब को मैंने बैठे-बैठे ख्याल से नहीं लिखा. इसमें एक कहानी देखेंगे. सराय जुलैना की… वहां मैं कई दिनों तक भटका हूं. वहां के जीवन को महसूस किया है तब जाकर लिखा है. हर कहानी लिखने से पहले गुजरा हूं. पहली बार जब बताया गया कि ये किताब की शक्ल में आएगी मैं तैयार हो गया था. थोड़ी बहुत आशंका थी कि साहित्य के लोग क्या कहेंगे? कहीं उन्हें यह बात बुरी न लग जाए कि हम अपने प्रभाव या ये जो टीवी वाली लोकप्रियता टाइप की चीज़ है, उसका इस्तेमाल कुछ घटिया फैलाने में तो नहीं कर रहे हैं. लेकिन हमने साहित्य के बाहर कुछ भी नहीं लिखा है. जो लिखा है उस पर साहित्य का भी असर है. ये आशंका थी मगर सत्यानंद के भरोसे पर हम चल पड़े. मैं चाहता था कि लोग इसे देखें. अगर ये बुरा है, तो भी देखें ताकि हमें पता तो चले कि हम साहित्य में किसी बदलाव को लेकर कितने तैयार हैं.’

वहीं इस श्रृंखला के दूसरे लप्रेककार विनीत कुमार व गिरिन्द्र नाथ झा ने भी अपनी-अपनी लप्रेक की कहानियां सुनायी. लप्रेक श्रृंखला का चित्रांकन करने वाले ‘इश्क़ में शहर होना’ से अपने चित्रांकन का जादू बिखरने वाले चित्रकार विक्रम नायक ने कहा कि मैंने अपने रेखांकन से कई बार दिल्ली को बनाया है, लेकिन वो मेरी दिल्ली नहीं थी. लेकिन इस बार मैंने अपनी दिल्ली को रेखांकित किया है. संपादक व लेखक के साथ बतौर इलेस्ट्रेटर मंच साझा करने को अपने लिए ऐतिहासिक क्षण बताते हुए विक्रम ने कहा कि यह मेरे लिए ऐतिहासिक क्षण है.

सूत्रधार की भूमिका निभा रहे राजकमल प्रकाशन समूह के संपादकीय निदेशक सत्यानंद निरूपम ने कहा कि ‘भारत में गंभीर साहित्य और सस्ते साहित्य के बीच कोई कनेक्शन नहीं है. गंभीर व सस्ते साहित्य पढ़ने वाले बेहद लिमिटेड हैं. सबसे बड़ा वर्ग है तो इन दोनों के बीच का पाठक वर्ग है, जिसके लिए हमेशा से सुगम साहित्य की कमी रही है. इस दौर में अगर हम देखें, तो सोशल मीडिया पर भारी मात्रा इस तरह का कंटेट बिखरा हुआ है. यह एक खास किस्म का कंटेंट है, जिसका मिजाज बिलकुल अलग है. यह कह देने भर से नहीं चलेगा कि लोगों की पढ़ने की आदत कम हो गयी है. दरअसल लोगों के पास अपनी बोलचाल की भाषा में पढ़ने का मटेरियल ही उपलब्ध नहीं है. सोशल मीडिया पर उपलब्ध उपयोगी कंटेंट को हमने पाठकों तक ले जाने की कोशिश की है. इसके ज़रिए हमारी कोशिश होगी आम और खास, दोनों तरह के पाठकों के बीच एक कड़ी बनाने की.’

इस मौके पर राजकमल प्रकाशन समूह के निदेशक अशोक महेश्वरी, मार्केटिंग निदेशक अलिंद महेश्वरी सहित सैकड़ों लप्रेक प्रेमी उपस्थित रहे.

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