सज़ा मुकम्मल, फिर भी हैं जेल में…

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Afroz Alam Sahil for Beyondeadlines

देश में जहां एक तरफ़ जहां हाई प्रोफ़ाइल व प्रभावशाली व्यक्तियों को बड़े आसानी से राहत मिल जा रही है, तो वहीं देश के विभिन्न जेलों में हज़ारों ग़रीब क़ैदी अपनी सज़ा मुकम्मल हो जाने के बाद भी जेलों में बंद हैं.

नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरो के 31 दिसम्बर 2013 तक के उपलब्ध आंकड़ें बताते हैं कि भारत के विभिन्न जेलों में 3044 क़ैदी ऐसे हैं, जिनकी सज़ा मुकम्मल हो चुकी है. लेकिन जुर्माने की रक़म न भर पाने की वज़ह से वो अभी भी जेल में बंद हैं.

इन 3044 क़ैदियों में 240 क़ैदी ऐसे हैं, जिनकी सज़ा 5 साल पहले ही मुकम्मल हो चुकी है, लेकिन वो अभी भी जेल के सलाखों के पीछे बंद हैं.

नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक ऐसे क़ैदियों की संख्या सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में है. उसके बाद पंजाब और महाराष्ट्र का नंबर आता है. उत्तर प्रदेश के विभिन्न जेलों में 1770 क़ैदी, पंजाब में 175 तो महाराष्ट्र के विभिन्न जेलों 109 ऐसे क़ैदी अभी भी जेल में हैं, जिनकी सज़ा मुकम्मल हो चुकी है.

पिछले महीने अप्रैल में रांची के बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 130  क़ैदियों ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पास इच्छा मृत्यु के लिए आवेदन भेजा. इस आवेदन में कैदियों ने बताया कि 20 साल तक जेल में बिताने के बाद भी उन्हें जेल से रिहा नहीं किया जा रहा है.

वहीं पिछले साल नवम्बर में पंजाब के अंबाला शहर में उन 7 सिख क़ैदियों की रिहाई के लिए गुरबख्श सिंह खालसा नामक एक व्यक्ति भूख हड़ताल पर बैठे थें, जिनकी सज़ा पूरी हो चुकी थी, लेकिन वो अभी भी सलाखों के पीछे अपनी ज़िन्दगी गुज़ार रहे थे.

पिछले साल यह मामला भी प्रकाश में आया कि सऊदी अरब के एक निवासी को उसकी सजा पूरी हो जाने के 11 साल बाद भी उसे जेल में रखा जा रहा था. इस पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने जेल प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई थी. इससे पूर्व 2012 में सुप्रीम कोर्ट भी पाकिस्तान के कई कैदियों की सजा पूरी हो जाने के बावजूद जेलों में बंद रखने के मामले पर केंद्र सरकार को फटकार लगा चुकी है.

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