जामिया की ज़मीन पर भू-माफियाओं का बढ़ता कब्ज़ा

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Farha Fatima for BeyondHeadlines

सेंट्रल यूनिवर्सिटी ‘जामिया मिल्लिया इस्लामिया’ की ज़मीन स्थापना के दौर से ही अतिक्रमण का शिकार रही है. यूनिवर्सिटी कैंपस से सटे रिहाइशी इलाक़ों में करोड़ों की ज़मीन पर कब्ज़ा किया जा चुका है. कई मामले ऐसे हैं, जहां कैंपस की चारदीवारी के भीतर भी मकान खड़े कर लिए गए. दिलचस्प यह कि अतिक्रमण का गोरखधंधा आज भी बदस्तूर जामिया प्रशासन की जानकारी में जारी है.

बटला हाउस, गफ़्फ़ार मंज़िल, गफ़ूर नगर, मुजीब बाग़ और महबूब नगर जैसे मुहल्ले उन्हीं इलाक़ों में शुमार हैं, जहां यूनिवर्सिटी की ज़मीन पर सबसे ज़्यादा कब्ज़ा किया गया है. BeyondHeadlines की तफ्तीश बताती है कि ज़मीनी दस्तावेज़ का दांव-पेंच फंसा कर भूमाफिया बड़ी आसानी से अवैध क़ब्ज़े का कारोबार अभी भी कर रहे हैं.

नया मामला बटला हाउस बस स्टैंड के पास अब्बासी कॉलोनी का है. यहां मेट्रो पिलर की दायीं तरफ कच्ची दुकानें अवैध तरीक़े से बनाई गई थीं. अवैध क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ जामिया एडमिनिस्ट्रेशन ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया, जहां फैसला भी जामिया के हक़ में आया. मगर मज़े की बात यह है कि केस जीतने के बावजूद अवैध दुकानें वहां से हटवाई नहीं जा सकीं. उलटा कच्ची दुकानें पक्की दुकानों में तब्दील हो गई हैं.

BeyondHeadlines की तफ़्तीश में पता चलता है कि अवैध कब्ज़े का यह काला कारोबार यूनिवर्सिटी के कुछ अफ़सरों की मिलीभगत से चल रहा है. अवैध दुकान चलाने वाले जामिया अफ़सरों को मोटी रक़म हर महीने पहुंचा कर उनकी ज़ुबान बंद कर देते हैं. रुपए वसूलने वाले अफ़सरों की तरफ़ से अफ़वाह यह भी फैलाई गई है कि दुकानें किराए पर चल रही हैं. फिलहाल यहां एक नई दुकान का कंस्ट्रक्शन अवैध तरीक़े से किया जा रहा है.

यूनिवर्सिटी के सिक्योरिटी एडवाइजर एस. ए. अलवी ने बताया कि अवैध निर्माण की जानकारी उन्होंने अपने आला अफ़सरों तक पहुंचा दी है.

jamia land encroachmentदूसरा मामला यूनिवर्सिटी के फाइन आर्ट्स डिपार्टमेंट के पास का है, जहां एडमिन डिपार्मेंट के एम्पलॉइज़ ने ही अतिक्रमण कर रखा है. कर्मचारियों और अधिकारियों ने मौका देखकर जामिया की ज़मीन में दो-दो मंज़िला घर खड़ा कर लिया. हालांकि इसकी शिकायत आला अफसरों तक भी पहुंची, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला.

रेवन्यू डिपार्टमेंट ने अपनी जांच रिपोर्ट में दावा किया कि ज़मीन जामिया यूनिवर्सिटी की नहीं है. दिलचस्प यह कि लगभग डेढ़ साल पहले इसी ज़मीन की बाउंड्री वक़्फ़ बोर्ड की तरफ़ से खड़ी की जा रही थी. तब जामिया ने ज़मीन पर अपना हक़ जताते हुए कंस्ट्रक्शन रुकवा दिया था. फिलहाल ज़मीन के मूल मालिकान की जांच जारी है.

Jamia land Encroachement-1तीसरा मामला जामिया हॉस्टल के पीछे बसा महबूब नगर का है. यहां कई हज़ार गज़ की ज़मीन जामिया मिल्लिया इस्लामिया की है. बल्कि जामिया प्रशासन की माने तो पूरा महबूब नगर ही जामिया के ज़मीन पर बसा हुआ है. सालों पहले एडमिनिस्ट्रेशन ने अपनी ज़मीन की चारदीवारी करवाई, लेकिन वहां पहले से मौजूद 5-6 घरों के चलते 8 हज़ार गज़ ज़मीन छोड़ दी. एडमिनिस्ट्रेशन अगर सूझ-बूझ से फैसले लेता तो इन घरों के लिए एक गली छोड़ी जा सकती थी. मगर ज़मीन का इतना बड़ा हिस्सा छोड़ने की वजह से उस पर अतिक्रमण शुरू हो चुका है. अवैध पार्किंग माफियाओं ने यहां अपना बसेरा जमा लिया है.

यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स का कहना है कि अफ़सरों की लापरवाही की वजह से बहुत बड़ी ज़मीन भू-माफियाओं के हाथ में चली गई. एडमिनिस्ट्रेशन को बाक़ायदा इसकी तफ्तीश के लिए एक कमेटी बनाई जानी चाहिए.

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