BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : रिहाई मंच ने आतंकवाद के आरोप में फंसाए गए 6 मुस्लिम नौजवानों के लखनऊ की अदालत से बरी किए जाने को आतंकवाद के नाम पर मुस्लिम समाज को बदनाम करने वाली सरकारों, खुफिया विभाग और सुरक्षा एजेंसियों के मुंह पर तमाचा बताया है.
संगठन ने इन्हें फंसाने वाले पुलिस और खुफिया विभाग के अधिकारियों के खिलाफ़ कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है.
संगठन ने कहा है कि अगर सपा सरकार ने अपना चुनावी वादा निभाते हुए इन बेगुनाहों को छोड़ दिया होता तो इनकी जिंदगी के तीन साल और बच गए होते.
रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के अध्यक्ष और बरी हुए बेगुनाहों पश्चिम बंगाल के जलालुद्दीन उर्फ बाबू, नूर इस्लाम, मोहम्मद अली अकबर हुसैन, शेख मुख्तार हुसैन, अजीजुर रहमान सरदार और बिजनौर के नौशाद के वकील मोहम्मद शुऐब ने कहा कि इन बेगुनाहों का अदालत से बरी किया जाना आतंकवाद के नाम पर मुसलमानों को बदनाम करने वाली सरकारों के साम्प्रदायिक चेहरे को बेनकाब करता है, जिन्होंने इन बेगुनाहों को आतंकी संगठन हूजी का खतरनाक आतंकी बताते हुए इनकी जिंदगी की बेशकीमती 8 सालों को बर्बाद कर दिया.
उन्होंने मांग की सरकार इन बेगुनाहों को फंसाने वाले पुलिस और खुफिया विभाग के अधिकारियों के खिलाफ़ कानूनी कार्रवाई करे ताकि आगे से किसी भी बेगुनाह को ये साम्प्रदायिक अधिकारी फंसा न सकें.
उन्होंने कहा कि बेगुनाहों को फंसाने के लिए जिस तरह अधिकारियों ने उनके पास से एके-47 और कई किलो ख़तरनाक विस्फोटक आरडीएक्स बरामद दिखाया वह एक बार फिर साबित करता है कि पुलिस और खुफिया विभागों के पास अवैध और खतरनाक विस्फोटकों का ज़खीरा है. जिसे वे बेगुनाहों को फंसाने के लिए ही इस्तेमाल नहीं करते हैं, बल्कि फ़र्जी आतंकी संगठनों के नाम पर खुद किए जाने वाले विस्फोटों में भी करते हैं.
उन्होंने कहा कि सरकार को बताना चाहिए कि ये हथियार पुलिस के पास कहां से आए, उन्होंने खुद बनाएं हैं या किसी आतंकी समूह ने उन्हें दिया है.
रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम ने बताया कि 23 जून 2007 को इन बेगुनाहों को पुलिस ने आंतकी बताकर लखनऊ के विभिन्न हिस्सों से पकड़ने का दावा करने के साथ ही उत्तर प्रदेश की पुलिस ने इन्हें आतंकी संगठन हूजी से जुड़ा बताकर उनके अंतरराष्ट्रीय आतंकी नेटवर्क से जुड़े होने को प्रचारित किया था. चार्जशीट में कहानी गढ़ी गई थी कि जलालुद्दीन ने खादिम शू कम्पनी के मालिक पार्थो रॉय बरमन के अपहरण से प्राप्त पैसों को अपने नेटवर्क के ज़रिए 11 सितम्बर 2001 को अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले में इस्तेमाल करने के लिए मोहम्मद अत्ता नाम के आंतकी को दिया था. जिसने इसी पैसे से वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हमला किया था.
रिहाई मंच के नेता ने कहा कि अब पुलिस को बताना चाहिए कि उसने यह फ़र्जी कहानी किसके कहने पर गढ़ी थी, क्योंकि इस कहानी को प्रचारित करके पूरे मुस्लिम समाज को आंतकी साबित कर उन्हें आतंकित किया गया और आने वाले दिनों में और भी कई बेगुनाहों को फंसाया गया था.
शाहनवाज़ आलम ने मांग की कि प्रदेश सरकार प्रदेश में हुई तमाम कथित आतंकी घटनाओं की जांच हाईकोर्ट के वर्तमान न्यायाधीश के नेतृत्व में आयोग बना कर कराए, क्योंकि गिरफ्तारियों की तरह ही कई घटनाएं भी शुरू से ही संदिग्ध रही हैं, जिनमें खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों की भूमिका की जांच होनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर अमल करते हुए तारिक़ कासमी और खालिद मुजाहिद को फंसाने वाले अधिकारियों के खिलाफ़ कार्रवाई की होती तो पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह, पूर्व एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल समेत कई वरिष्ठ पुलिस और खुफिया अधिकारी आज जेल में होते और प्रदेश में हुई आतंकी घटनाओं की असलियत भी खुल जाती.
उन्होंने कहा कि ऐसे पुलिस और खुफिया अधिकारियों को जेल के बाहर रखना देश की अखंडता और समाज की सुरक्षा से समझौता करना है, क्योंकि इनके पास आरडीएक्स समेत तमाम तरह के विस्फोटक हैं जिनके ज़रिए ये विस्फोट कराकर बेगुनाहों की जान ले सकते हैं और मुस्लिम समाज को बदनाम करने का गंदा खेल खेल सकते हैं.
रिहाई मंच के प्रवक्ता ने कहा कि अगर समाजवादी पार्टी की सरकार ने अपना चुनावी वादा पूरा करते हुए आतंकवाद के नाम पर फंसाए गए बेगुनाह मुस्लिम युवकों के खिलाफ़ मुक़दमे वापस ले लिए होते तो इनकी जिन्दगी के तीन साल बच जाते और वो 2012 में ही रिहा हो गए होते.
उन्होंने मांग की कि प्रदेश सरकार आतंकवाद के आरोप से बरी हुए नौजवानों को मुआवजा दे और पुर्नवास की नीति बनाए.