उस दिन ईट भट्टे से मज़दूरी करके लौटा था कि पुलिस वाले आ धमके और…

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BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ/बहराइच : ‘वह उस दिन ईट भट्टे से मज़दूरी करके लौटा था कि पुलिस वाले आ धमके और उसके साथ दो भतीजों साजन, राजन और भाई नसीबुल को उठा ले गए. बाद में मुन्ना पर रासुका लगा दिया गया.’

ये बातें आज मुन्ना के भाई अब्दुल ख़ालिद ने लखनऊ के सामाजिक व राजनीतिक संगठन रिहाई मंच के एक प्रतिनिधि मंडल को बताया.

बता दें कि पिछले साल 2 दिसंबर को बारावफ़ात के जुलूस के दिन बहराइच के नानपारा में साम्प्रदायिक तनाव होने के बाद बड़े पैमाने पर मुस्लिम समुदाय के लोगों की गिरफ्तारियां हुईं थी. कुछ लोगों की हाईकोर्ट से ज़मानत मिल चुकी है. वहीं इस मामले में 5 व्यक्तियों (मुन्ना, नूर हसन, असलम, मसहूद रज़ा, मो. अरशद) पर रासुका के तहत कार्रवाई हुई. आज रिहाई मंच के एक प्रतिनिधि मंडल ने इनके परिवारों से मुलाक़ात की.

रिक्शा चलाकर परिवार का पेट पालने वाले नूर हसन की पत्नी अक़ीला बानो दो साल की बेटी सैय्यदा को दिखाते हुए बताती हैं कि ये बीमार थी. इसकी दवा लेने के लिए वो डा. हुसैन बख्श के यहां गए थे, पर बवाल की वजह से दवा नहीं मिली. तभी पुलिस की गाड़ी आई और उन्होंने उनको बैठा लिया. हमने पूछा तो कहा कि पूछताछ के लिए ले जा रहे हैं. तब से वो नहीं आए.

यह पूछने पर कि क्यों नहीं वो छूट रहे हैं तो वह बोलती हैं कि वो नहीं जानती. वो तो इस बात से ही परेशान हैं कि जेल में मिलाई का ही उनके पास पैसा नहीं है वो क्या केस लड़ेगी. उनके पति के ऊपर रासुका लगी है, ये तो वो जानती हैं पर ये है क्या वो नहीं जानती.

असलम की पत्नी शन्नो बताती हैं कि उस दिन वो अपनी चूड़ियों की दुकान पर थे, वहीं से पुलिस ने उन्हें उठाया और अब तक नहीं छोड़ा. हफ्ते में तीन मिलाई होती है, पर मुश्किल से वो एक या दो बार महीने में जा पाती हैं, क्योंकि एक बार जाने में ही डेढ़-दो सौ रुपए लग जाते हैं. रासुका को वह बार-बार असोका कहती हैं और पूछने पर नहीं बता पाती हैं कि क्या है ये. बस यही जानती हैं कि यह कोई बड़ी धारा है जिसको सरकार लगाती है.

मदरसे में पढ़ाकर अपने परिवार को पालने वाले मसहूद रज़ा के पिता खलील बताते हैं कि वह उस दिन अपनी बहन से मिलने गया था और बाज़ार में जैसे ही बच्चों के खाने-पीने की चीजें खरीदकर घर आ रहा था कि पुलिस ने उसे उठा लिया. उसका आधार कार्ड, मोबाइल सब ज़ब्त कर लिया. उसके दो छोटे-छोटे बच्चे हैं.

वो कहते हैं कि मैं चल फिर पाने में लाचार हूं, ऐसे में मैं खुद का तो कुछ नहीं कर पाता उसके परिवार का कैसे पालन-पोषण करुं.

अरशद की मां शमा बताती हैं कि वो एक दिन पहले केरल से आया था. वह वहीं पढ़ता था और यह उसका आख़िरी साल था. पर पुलिस ने उसे ऐसा फंसाया कि उसका कैरियर ही बर्बाद हो गया. मेरे 19 साल के बेटे पर रासुका लगा दी गई हैं.

वहीं अरशद की बहन क़नीज़ फ़ातिमा भी अपने भाई और ख़ासतौर पर उसकी पढ़ाई को लेकर फिक्रमंद हैं. रासुका पर वो कहती हैं कि यह देशद्रोह जैसा है. वो सवाल करती हैं कि आख़िर उनके भाई ने ऐसा क्या किया था कि उन पर रासुका थोप दिया गया.

अरशद की अम्मी बताती हैं कि उनके पति मो. शाहिद के साथ त्योहार पर मिलने आए भाई अब्दुल मुहीद, बहनोई मो. ख़ालिद व उनके साथ आए 14 साल के कलीम को भी पुलिस उठा ले गई.

इस प्रतिनिधि मंडल में सृजनयोगी आदियोग, लक्ष्मण प्रसाद, वीरेन्द्र गुप्ता, नागेन्द्र यादव, राजीव यादव के साथ बहराइच से वरिष्ठ पत्रकार सलीम सिद्दीक़ी और नूर आलम शामिल थे.

इस पूरे मामले पर रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव का कहना है कि, योगी सरकार दलितों व मुसलमानों पर रासुका लगाकर पूरे समाज को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरनाक घोषित करने का षडयंत्र रच रही है. इसी के तहत उसने भीम आर्मी के संस्थापक चन्द्रशेखर पर रासुका लगाया और अब भारत बंद के नेताओं पर भी लगातार लगा रही है.

रिहाई मंच ने इस मनुवादी और सांप्रदायिक षडयंत्र के ख़िलाफ़ चलाए जा रहे अभियान के तहत बहराइच के नानपारा का दौरा किया.

उन्होंने बताया कि इसके तहत बाराबंकी, कानपुर, सहारनपुर, मुज़फ्फ़रनगर, मेरठ आदि का दौरा किया जाना है, जहां रासुका के तहत दलितों-मुसलमानों को निरुद्ध किया गया है.

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