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Reading: ‘एएमयू, जेएनयू और जामिया वालों! क्या कन्हैया की तरह मेरी भी मदद करोगे?’ —सज्जाद हुसैन
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‘एएमयू, जेएनयू और जामिया वालों! क्या कन्हैया की तरह मेरी भी मदद करोगे?’ —सज्जाद हुसैन

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published April 29, 2019 1 View
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Afroz Alam Sahil, BeyondHeadlines

नई दिल्ली: बेगूसराय में चुनाव का शोर अब थम चुका है. इस शोर के थमते ही जामिया से पढ़े सज्जाद हुसैन, जो जम्मू-कश्मीर के लद्दाख लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार हैं, ने एएमयू, जेएनयू और जामिया से पढ़े अपने दोस्तों से सवाल किया है कि अब तो आपने कन्हैया की हर तरह से मदद कर दी, वहां आज शाम मतदान भी ख़त्म हो जाएगा. लेकिन क्या आपने जिस तरह से कन्हैया की मदद की, उसी तरह से मेरी भी मदद करेंगे? शायद मेरे साथियों को याद होगा कि मैंने भी दिल्ली की सड़कों पर इंसाफ़ की हर लड़ाई में संघर्ष किया है. 

सज्जाद हुसैन ने बतौर एक्टिविस्ट दिल्ली में काफ़ी संघर्ष किया है. ख़ास तौर पर 2007 से 2011 तक दिल्ली के हर जन-आंदोलनों में नज़र आए हैं. बटला हाउस फ़र्ज़ी एनकांउटर के मामले में हुए हर धरना-प्रदर्शन में सबसे आगे रहे. इन्होंने दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया से ह्यूमन राईट्स में एमए किया है. इसके बाद यहीं के पर्शियन डिपार्टमेंट से इरानोलॉजी में डिप्लोमा की डिग्री हासिल कर अपने वतन कारगिल को लौट गए. फिर यहां उन्होंने ईरान के एक समाचार चैनल से जुड़कर यहां के स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाते रहे. और अब स्थानीय लोगों की डिमांड पर लद्दाख से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं.

सज्जाद हुसैन कहते हैं, ‘हिन्दुस्तान के जितने भी सेक्यूलर फोर्सेज़ हैं, वो हमारी मदद के लिए आगे आएं. जिस तरह से भी मुमकिन हो, अगर मेरी मदद कर सकते हैं, तो उन्हें ज़रूर करना चाहिए. क्योंकि आपने बदलाव के लिए पहल की है, ऐसे में लद्दाख से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार आता हूं तो यक़ीनी बात है कि सेक्यूलर फोर्सेज़ की जो लड़ाई है, उसे ताक़त मिलेगी.’

वो कहते हैं, ‘मेरे पास फंड भी नहीं है. बस यहां के स्थानीय दोस्तों व रिश्तेदारों व आम लोगों की मदद से लड़ रहा हूं. अख़बार में विज्ञापन तो बहुत दूर की बात, पर्चा छपवाने के लिए भी सोचना पड़ रहा है. ऐसे में मैं चाहता हूं कि जिस तरह बेगूसराय उम्मीदवार कन्हैया के लिए पूरी सिविल सोसाइटी, पूरा लिबरल व सेक्यूलर तबक़ा सामने आया था, उन्हें ज़रूर मेरे साथ भी अपनी सॉलीडारिटी दिखानी चाहिए.’

सज्जाद ये चुनाव यहां के स्थानीय मुद्दों पर लड़ रहे हैं. वो कहते हैं कि मैं यहां एक अदद यूनिवर्सिटी के लिए लड़ रहा हूं. मैं यहां मेडिकल कॉलेज के लिए लड़ रहा हूं. मैं यहां विमेन कॉलेज के लिए लड़ रहा हूं. जिन इलाक़ों में सड़क व बिजली नहीं पहुंच सकी है, उसके लिए लड़ रहा हूं. मैं यहां अस्पताल के लिए लड़ रहा हूं.  

सज्जाद का कहना है कि हमारा ये इलाक़ा पूरे 6 महीने दुनिया से कटा रहता है. पीएम मोदी ने यहां के लिए ‘उड़ान स्कीम’ का ऐलान किया, लेकिन आज तक इस स्कीम के तहत कुछ भी नहीं हो सका है. अभी तक मोदी का जहाज़ ज़मीन पर नहीं उतरा है. मई 2018 में लेह-लद्दाख में जिस जोजिला टनल का उद्घाटन पीएम मोदी ने किया और जिस कंपनी को इसका काम दिया गया, वो कंपनी ही लिक्वीडिटी क्रंच की शिकार हो गई. सच कहें तो केन्द्र सरकार का विकास यहां तक नहीं पहुंच सका है. तमाम बातें व वादे जुमला ही साबित हुए हैं.   

सज्जाद बताते हैं कि यहां बाक़ी प्रत्याशी मुझसे घबरा रहे हैं और ख़ास तौर पर बीजेपी के लोग डरे हुए हैं. लोगों में ये भ्रम फैला रहे हैं कि मुझे पॉलिटिक्स नहीं आती. तो मेरा उनको जवाब है —हां, मुझे हेट पॉलिटिक्स नहीं आती. मुझे कम्यूनल पॉलिटिक्स नहीं आती. मुझे जुमलेबाज़ी की पॉलिटिक्स नहीं आती. मैं सिर्फ़ ईमानदारी की सियासत करना चाहता हूं. मैं यहां के लोगों के हालात को बदलना चाहता हूं…

वो यह भी बताते हैं कि चूंकि मैंने 2011 से लगातर अब तक बतौर पत्रकार ईरान के एक चैनल ‘सहर टीवी’ के लिए काम किया है, इसलिए यहां के मुद्दों व समस्याओं को न सिर्फ़ क़रीब से देखा व समझा है, बल्कि उन्हें राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाता भी रहा हूं. यही नहीं, मैं यहां के तमाम जन-आंदोलनों में शामिल रहा हूं. और मैं इस चुनाव में खुद खड़ा नहीं हुआ हूं, बल्कि यहां के लोगों की डिमांड पर ये चुनाव लड़ रहा हूं. मुझे यहां तमाम लोगों का समर्थन हासिल है. साथ ही मुझे एनसी और पीडीपी जैसी सियासी पार्टियां अपना समर्थन दे चुकी हैं. इसलिए मैं मुतमईन हूं कि जीत यक़ीनन हमारी ही होगी.    

बता दें कि लद्दाख़ क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से देश बड़े लोकसभा क्षेत्रों में से एक है, वहीं आबादी के मामले में छोटे लोकसभा क्षेत्रों में शामिल है. यहां वोटरों की संख्या सिर्फ़ 1.66 लाख है. 2014 में यहां बीजेपी के थुपस्तान छेवांग ने जीत दर्ज की और यहां पहली बार कमल खिला. दूसरे स्थान पर निर्दलीय प्रत्याशी गुलाम रज़ा रहे, जो महज़ 36 वोटों से ये चुनाव हारे थे. छेवांग को 31 हज़ार 111 और गुलाम रज़ा को 31 हज़ार 75 वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर निर्दलीय प्रत्याशी सैय्यद मोहम्मद क़ाज़िम रहे और उनको 28 हज़ार 234 वोट मिले. इसके साथ ही चौथे नंबर पर रहे कांग्रेस के सेरिंग सेम्फेल को 26 हज़ार 402 वोटों से संतोष करना पड़ा था. छेवांग ने पार्टी नेतृत्व से असहमति का हवाला देते हुए नवंबर 2018 में लोकसभा से इस्तीफ़ा दे दिया और अपनी पार्टी छोड़ दी.

इस बार इस लोकसभा सीट से सिर्फ़ चार उम्मीदवार मैदान में हैं. बीजेपी ने यहां जामयांग शेरिंग नामग्याल को चुनाव मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस पार्टी ने रिगजिन स्पालबार पर दांव लगाया है. इसके अलावा असगर अली कर्बलाई और सज्जाद हुसैन बतौर निर्दलीय अपनी क़िस्मत आज़मा रहे हैं. हालांकि असगर अली कर्बलाई का संबंध भी कांग्रेस से ही है और बाग़ी उम्मीदवार के तौर पर लड़ रहे हैं. यहां मतदान पांचवें चरण चरण में 6 मई को है.

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