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Reading: लॉकडाउन -2: देश के प्रधानमंत्री से पांच सवाल…
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लॉकडाउन -2: देश के प्रधानमंत्री से पांच सवाल…

Md Subhan Ali
Md Subhan Ali Published April 15, 2020
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6 Min Read
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कोरोना वैश्विक महामारी से लड़ने के लिए भारत के प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन को 3 मई 2020 तक बढ़ा दिया है. अपने संदेश में माननीय प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत का हर नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन कर बलिदान दे. जिस संविधान का हवाला माननीय प्रधानमंत्री ने नागरिकों के कर्तव्य पालन के लिए दिया, उसी संविधान के हवाले से भारतीय नागरिक कुछ सवाल कर जानना चाहते हैं कि यह सरकार संविधान प्रदत्त कर्तव्यों का निर्वहन कैसे कर रही है?

पहला सवाल: चूंकि यह वैश्विक महामारी देश के बाहर से आने वाले यात्रियों के संक्रमण से आई है. और 30 जनवरी 2020 को भारत में पहले कोरोना संक्रमित व्यक्ति की पहचान हो गई थी, तो सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय हवाई यात्री की स्क्रीनिंग (जांच–पड़ताल) हवाई अड्डे पर 30 जनवरी 2020 से ही क्यों नहीं की? मार्च 2020 के दूसरे सप्ताह तक किसी भी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर यात्रियों की किसी भी तरह से जांच–पड़ताल नहीं करने के कर्तव्यों को भूल भारतीय नागरिकों की जान को ख़तरे में डालना सरकार के स्वास्थ्य संबंधी गंभीरता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है.

दूसरा सवाल: अब जबकि कोरोना संक्रमित रोगियों की संख्या 11 हज़ार से ऊपर एवं मृतकों की संख्या क़रीब 400 तक पहुंच चुकी है तो ज़रूरी है कि कोरोना की टेस्टिंग अधिक से अधिक संख्या में हो ताकि इसके तीसरे या चौथे फेज़ में पहुंचने से रोका जा सके.

सरकार के अस्पतालों एवं लैबों में टेस्टिंग की कमी है. ऐसे में सरकार सभी प्राइवेट अस्पतालों एवं लैबों की टेस्टिंग क्यों नहीं मुफ़्त कर देती है. भारत में यदि सभी प्राइवेट अस्पताल टेस्टिंग मुफ्त प्रारंभ कर दे, तो इसके संक्रमण को रोका जा सकता है. साथ ही सरकारी अस्पतालों पर दबाव को नियंत्रित किया जा सकता है. अब जबकि ‘जन आरोग्य योजना’ के अंतर्गत अधिकतर प्राइवेट अस्पताल शामिल हैं, उन्हीं अस्पतालों में मुफ़्त टेस्टिंग नहीं करवाने के पीछे क्या कारण है?

तीसरा सवाल: स्वास्थ्यकर्मी चिकित्सक को भी कोरोना संक्रमण हो रहा है. यह एक गंभीर स्वास्थ्य संबंधी विपदा को जन्म दे सकता है. क्यों सरकार इन लोगों को पीपीई किट, गलव्स, मास्क उपलब्ध नहीं करा रही है. क्या लोकतंत्र में जनता को यह जानने का अधिकार है कि सरकार के पास कुल कितने पीपीई किट, मास्क, गलव्स भंडार में उपलब्ध हैं तथा यह कितने दिनों के लिए पर्याप्त होगा? हाल ही में कई राज्यों से स्वास्थ्य संबंधी उपकरण एवं सामाग्री की कमी की शिकायत की जा रही थी. इन आंकड़ों को सार्वजनिक करने की आवश्यकता है.

चौथा सवाल: भारत के कई महानगरों में प्रवासी मज़दूर जो मुख्यतः बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, उड़ीसा से हैं, फंसे हुए हैं. इनकी संख्या लाखों में है. इनके पास इतने भी साधन नहीं हैं कि अगले 3 मई तक उसी स्थान पर रह सकें. ऐसे में सरकार की ही पूर्ण ज़िम्मेदारी बनती है कि उनके खाने–पीने–रहने की व्यस्था करनी चाहिए, जो वो नहीं कर पा रही है. जिसके कारण 14 अप्रैल 2020 को बांद्रा, महाराष्ट्र एवं गुजरात के सूरत में हज़ारों की संख्या में प्रवासी मज़दूर सड़क पर आकर अपने अपने घर जाने की ज़िद कर रहे थे. उनका कहना था कि कई दिनों से खाने को नहीं मिल रहा है. अगर न्यूनतम मज़दूरी (300-500 रूपये प्रतिदिन) उनको नहीं मिल पा रही है, तो सरकार उन्हें बुनियादी सुविधा उपलब्ध करवाने की ज़िम्मेदारी से कैसे बच सकती है.

पांचवा सवाल: लोकतंत्र की सबसे बड़ी ख़ूबसूरती सवाल पूछना है. सवाल उनसे जो सत्ता में हैं. इस वैश्विक महामारी में अमेरिकी राष्ट्रपति से वहां के पत्रकार कई सवाल पूछ रहे हैं. सरकार की व्यवस्था प्रबंधन एवं भविष्य की रूपरेखा को जनता के सामने लाने के लिए पत्रकार अमेरिकी राष्ट्रपति से सवाल करते देखे जा रहे हैं. भारत की सत्तारूढ़ सरकार एवं उसके मुखिया माननीय प्रधानमंत्री ने जबसे वैश्विक महामारी भारत में आई है, एक भी प्रेसवार्ता नहीं किया. ना ही पत्रकारों से रूबरू हुए. क्या यह प्रधानमंत्री का कर्तव्य नहीं है कि सरकार के स्वास्थ्य संबंधी प्रबंधन पर प्रेस से सवाल लें? चूंकि प्रेस जनता की आवाज़ होती है और जनता अपनी चुनी हुई सरकार से इस महामारी से लड़ने के उपायों एवं व्यवस्थाओं की पूर्ण जानकारी चाहती है. पिछले कई महीनों से प्रेसवार्ता नहीं करके सरकार संवैधानिक कर्तव्यों से मुकर रही है.

मजबूर जनता की जायज़ मांग के विरुद्ध पुलिस द्वरा लाठीचार्ज करना, मज़दूरों को (1000 कि.मी. तक) पैदल जाने पर मजबूर करना, स्वास्थ्य उपकरणों की कमी, विदेशी यात्राओं पर जांच–पड़ताल की कमी इत्यादि कुछ गंभीर सवाल का जबाव देना सरकार और माननीय प्रधानमंत्री का कर्तव्य है और अविलम्ब सरकार इसका पालन करे. जनता अपने कर्तव्य का पालन करने को तैयार है.

(लेखक बिहार के बेगुसराय ज़िले में ज़िला परिषद के उपाध्यक्ष हैं.)

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