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डेंगू डंस गया पिछले 5 साल में 3 हज़ार करोड़ रूपये…

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

क्या दिल्ली और क्या मुंबई… इस बार तो  देश के हर कोने-कोने में डेंगू का क़हर है. मच्छर के काटने से होने वाली ये बीमारी धीरे-धीरे विकराल रूप अपनाती जा रही है. देश में इसका इतना आतंक है कि यह आतंकवाद से भी बड़ी समस्या बन चुकी है. लेकिन हमारी सरकार को इससे कोई ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता. जब मामला ख़ुद से ना सुलझ पाता है तो सारा ठीकरा आम जनता के  सिर फोड़ दिया जाता है. जबकि BeyondHeadlines को आरटीआई से मिले अहम दस्तावेज़ बताते हैं कि डेंगू जैसे बीमारी के नाम पर हजारों करोड़ खर्च के बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही है.

स्पष्ट रहे कि भारत में साल 2006 में डेंगू के महामारी बनने के बाद सरकार ने आनन-फानन में वेक्टर बोर्न डिजीज़ कंट्रोल प्रोग्राम शुरू किया था, जिसके तहत वेक्टर जनित रोगों की रोकथाम के लिए हर साल सैंकड़ों करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं. डेंगू, मलेरिया, चिकगूनिया, काले बुखार, फिलारिया और जापानी बुखार की रोकथाम के लिए सरकार ने साल 2007 में नेशनल वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम शुरू किया था. प्रोग्राम के शुरू होने के बाद से इन रोगों के नाम पर कई हजार करोड़ रुपये तो खर्च किए जा चुके हैं लेकिन अभी तक इन रोगों पर पूरी तरह से काबू नहीं पाया जा सका. आंकड़ों पर नज़र डाले तो सरकार का खर्चा और मरीजों की संख्या दोनों ही लगातार बढ़ती ही जा रही है.

Photo Courtesy: www.thehindu.comसूचना के अधिकार के ज़रिए BeyondHeadlines को प्राप्त जानकारी के मुताबिक साल 2005-06 में सरकार ने वेक्टर जनित रोगों की रोकथाम के कार्यक्रमों के लिए कुल 348.45 करोड़ रुपये जारी किए थे जिनमें से 260.45 करोड़ रुपये विभिन्न कार्यक्रमों पर खर्च कर दिए गए. साल 2006-07 में भी सरकार ने रोकथाम के कार्यक्रमों के लिए कुल 371.58 करोड़ रुपये जारी किए थे जिनमें से 318.13 करोड़ रुपये विभिन्न कार्यक्रमों पर खर्च कर दिए गए. उसी तरह साल 2007-08 में सरकार ने वेक्टर जनित रोगों की रोकथाम के कार्यक्रमों के लिए कुल 399.50 करोड़ रुपये जारी किए थे जिनमें से 386.36 करोड़ रुपये विभिन्न कार्यक्रमों पर खर्च कर दिए गए.

साल 2008-09 में सरकार ने वेक्टर जनित रोगों के लिए प्लान फंड के तहत 472.25 करोड़ रुपये मंजूर किए, जिनमें से मात्र 297.62 करोड़ रुपये ही खर्च किए जा सके. वहीं नॉन-प्लान फंड के तहत 269.12 करोड़ रूपये का बजट रखा गया और इसमें से 191.73 करोड़ खर्च भी किया गया. इस प्रकार साल 2008-09 में इस रोग से रोकथाम के लिए कुल 489.35 करोड़ रूपये खर्च किया गया.

साल 2009-10 में भी सरकार ने प्लान फंड के तहत 442.25 करोड़ रुपये मंजूर किए थे जबकि कार्यक्रमों पर कुल 338.87 करोड़ रुपये ही खर्च हुए. वहीं नॉन-प्लान फंड के तहत 306.58 करोड़ रूपये का बजट रखा गया और इसमें से 214.11 करोड़ खर्च किया गया. इस प्रकार साल 2009-10 में कुल 552.98 करोड़ रूपये खर्च किया गया.

साल 2010-11 के लिए सरकार ने प्लान फंड के तहत 418 करोड़ रुपये मंजूर किए थे जिनमें से 408.41 करोड़ रुपये विभाग ने विभिन्न कार्यक्रमों पर खर्च कर दिए. वहीं नॉन-प्लान फंड के तहत 235.11 करोड़ रूपये का बजट रखा गया और इसमें से 207.18 करोड़ खर्च किया गया. इस प्रकार साल 2010-11 में कुल 615.46 करोड़ रूपये खर्च किया गया.

वित्तीय वर्ष 2011-12 के लिए वेक्टर जनित रोगों की रोकथाम के लिए प्लान फंड के तहत 520 करोड़ रुपये का बजट पास हुआ जिनमें से 517.93 करोड़ रुपये खर्च किए गए. वहीं नॉन-प्लान फंड के तहत 359.76 करोड़ रूपये का बजट रखा गया और इसमें से 339.94 करोड़ खर्च किया गया. इस प्रकार साल 2011-12 में कुल 857.87 करोड़ रूपये खर्च किया गया.

कुछ ऐसा ही हाल हाल वित्तीय वर्ष 2012-13 का भी रहा. इस वर्ष प्लान फंड के तहत 572 करोड़ रुपये का बजट पास हुआ जिनमें से 304.37 करोड़ रुपये ही खर्च किया जा सका. वहीं नॉन-प्लान फंड के तहत 404.89 करोड़ रूपये का बजट रखा गया था और इसमें से 180.09 करोड़ खर्च किया गया. इस प्रकार साल  कुल 484.46 करोड़ रूपये खर्च किया गया.

वहीं आंकड़े बताते हैं कि मरीज़ों की संख्या घटने के बजाए लगातार बढ़ती ही जा रही है. नेशनल वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम के आंकड़ों के मुताबिक साल 2007 में भारत में डेंगू के कुल 5534 मामले सामने आए और 69 मरीजों की मौत हो गई, साल 2008 में 12561 मामले सामने आए और 80 मरीजों की मौत हो गई, साल 2009 में 15535 डेंगू के मामले सामने आए और 96 मरीजों की मौत हो गई जबकि साल 2010 में 28292 डेंगू के मामले रिपोर्ट किए गए और 110 की मौत हुई. साल 2011 में कुल 18860 मामले सामने आए और 169 की जान चली गई जबकि 2012  में देश भर में डेंगू के कुल 50222 मामले सामने आए जिनमें 242 की मौत हुई. वहीं इस साल सितम्बर 2013 तक 38179 मामले दर्ज किए गए हैं और 109 लोगों की मौत हो चुकी है.

डेंगू के मामले में इस वर्ष केरल सबसे उपर रहा. यहां डेंगू के 7001 मामले सितम्बर तक दर्ज किया गया है. वहीं कर्नाटक 5680 डेंगू के मामलों के साथ दूसरे नम्बर है. तीसरे नम्बर पर उड़ीसा का नाम है, यहां इस वर्ष 5012 डेंगू के मामले सितम्बर तक दर्ज किए गए हैं.

वहीं अगर मौत की बात करें तो इस साल सबसे अधिक मौत महाराष्ट्र में हुई है. यहां इस वर्ष सितम्बर तक 31 लोगों की मौत डेंगू के कारण हो चुकी है. वहीं केरल में 23 लोग और कर्नाटक में 12 लोग डेंगू के शिकार बन इस दुनिया को हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए.

डेंगू के नाम पर सियासत…

नाना पाटेकर का वो डायलॉग शायद आप सबको याद ही होगा. अरे वही… “एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है…” लेकिन मच्छर डेंगू का हो तो लोगों को मौत की नींद ही सुला देता है. वहीं इस मच्छर का इतना आतंक है कि कांग्रेसी नेता दिल्ली में इस मच्छर के पनपने का कारण नरेन्द्र मोदी को मानते हैं.  नॉर्थ एमसीडी में नेता विपक्ष मुकेश गोयल ने पिछले दिनों एक बयान में कहा कि ‘मोदी की रैली के लिए क्या महापौर, क्या स्थाई समिति अध्यक्ष और क्या नेता सदन सभी लगे हुए हैं. अरे वोट के लिए आप रैली कर रहे हो, लेकिन वोट तो तब मांगोगे ना जब कोई जिंदा बचेगा.’

उन्होंने बताया कि दिल्ली में डेंगू से सबसे ज्यादा प्रभावित एमसीडी का रोहिणी जोन इलाका ही है और यहीं मोदी की रैली होनी है. (अब हो चुकी है). एमसीडी के रोहिणी जोन में मोदी के रैली के पहले तक डेंगू के सबसे ज्यादा 99 मामले सामने आए हैं. वहीं इस नगर निगम यानी उत्तरी नगर निगम में अब तक 1026 मामले दर्ज किए गए.

अब भले ही यह एक संयोग हो, लेकिन विपक्ष को रैली के बहाने सत्ता पक्ष को घेरने का मौका मिल ही गया. मामला बढ़ा तो खुद नार्थ एमसीडी के महापौर को सफाई देनी पड़ी और नॉर्थ दिल्ली के मेयर आजाद सिंह ने बताया कि ‘ऐसा नहीं है… रैली में हर कोई नहीं जा रहा है… सिर्फ वही लोग जा रहे हैं जो पदाधिकारी हैं.’

इन सबके बीच दिल्ली में डेंगू से दहशत बरकरार है. नॉर्थ एमसीडी कमिश्नर ने बुधवार को डेंगू पर आपात बैठक बुलाई. दिल्ली में इस साल विधानसभा चुनाव हैं जाहिर है ऐसे में डेंगू के मुद्दे पर राजनीति होने पर किसी को हैरानी नहीं होगी लेकिन देखना ये है कि आखिर तेजी से फैलते डेंगू के डंक को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं.

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