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13 नंबर प्रणव दा के लिए ‘लकी’ क्यों?

यूसुफ़ अंसारी

13 नम्बर महामहिम प्रणव दा के लिए लकी साबित हुआ. क्योंकि वो 13 न. को लकी मानते हैं. क़रीब 20 वर्षों से वो दिल्ली के 13 न. ताल कटोरा बंगले मे रह रहे हैं. केंद्र मे यूपीए की सरकार बनने के बाद से ही संसद में उनके दफ़्तर का न. भी 13 ही रहा है. और तो और राष्ट्रपति पद के लिए उनका नाम पहली बार 13 जून को ही सामने आया. प्रणव दा की शादी 13 जुलाई 1957 को हुई. 2004 में जब प्रणव दा प्रधानमंत्री नहीं बन पाए तो उनके कुछ क़रीबी लोगों ने इसे 13 न. बंगले में रहने का अपशकुन माना. दादा को कई बार उनके क़रीबी लोगों ने 13 न. बंगल और दफ़्तर बदलने की सलाह दी, लेकिन दादा ने अपशकुन के डर से अपना बंगला बदलने से साफ़ इंकार कर दिया.

कई साल पहले एक टीवी इंटरव्यू नें जब उनसे 13 न. बंगले के बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा था वो 13 न. ही नहीं बल्कि किसी भी नंबर को अशुभ नहीं मानते. इसके उलट उन्होंने 13 न. को अपने लिए शुभ माना. उनका तर्क था कि कि संस्कृत में 13 को “त्रयोदशी” कहते हैं. हिंदू कैलेंडर के हिसाब से ये एक पवित्र तिथि है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन शुरू किए जाने वाले काम के सकारात्मक और अच्छे नतीजे मिलते हैं. शायद प्रणव दा के इसी अटूट विश्वास की वजह से उन्हें हर क़दम पर कामयाबी मिली. 13 नम्बर के बंगले में रहते-रहते और संसद के 13 न. कमरे में काम करते-करते वो देश के सबसे बड़े बंगले राष्ट्रपति भवन में पहुंच गए.

कई साल पहले एक किताब पढ़ी थी “बड़ी सोच का बड़ा जादू”… इसका सार है कि कोई आदमी ज़्यादा रुपए-पैसे कमाने से या ज़्यादा बड़े ओहदे पर बैठने से बड़ा नहीं बनता बल्कि अपनी सोच से बड़ा बनता है. जितनी बड़ी सोच उतना बड़ा इंसान. प्रणव दा ने ज़िंदगी हमेशा बड़ी सोच रखी. लिहाज़ा वो लगातार बड़े बनते चले गए और आज देश के प्रथम नागरिक बन गए. उनकी ये उपलब्धि उनकी लगातार बड़ी सोच रखने का ही नतीजा है. मुझे याद है जब पश्चिम बंगाल में वामपंथियों के खिलाफ महाजोत बनाने की बात चली थे तब प्रणव दा ही थे जिन्होंने अपनी उम्र से क़रीब आधी उम्र की ममता बनर्जी को अपना नेता मानने में ज़रा भी हिचक नहीं दिखाई थी. महाजोत की अगुवाई करने के की पेशकश लेकर वो कांग्रेस की पश्चिम बंगाल इकाई के अध्यक्ष की हैसियत से ख़ुद ममता के पास गए थे. ये प्रणव के बड़प्पन की छोटी सी मिसाल है. ऐसी न जाने कितनी ही मिसालों से उनका जीवन भरा पड़ा है.

बात 13 नंबर के शुभ या अशुभ होने से शुरु हुई थी. अब ज़रा ग़ौर करें कि भारतीय राजनीति में कितने लोग हैं जो शुभ और अशुभ में यक़ीन नहीं रखते है. उंगलियों पर गिने जाने लायक लोग ही ऐसे हैं. आपको ये जानकर ज़रूर ताज्जुब होगा कि मंत्रियों और सांसदो के रहने के लिए विशेष तौर पर बसाई  गयी नई दिल्ली के लुटियंस ज़ोन में 13 नंबर के बंगले में रहने वाले प्रणव दा अकेले नेता हैं. पूरे लुटियंस ज़ोन में 13 नंबर के मकान ढूंढे नहीं मिलेगें. तमाम नेताओं ने अपने या तो अपने लकी नंबर के हिसाब से अलाट करा रखे हैं या फिर उनका नंबर अपने भाग्यशाली नंबर के हिसाब से बदलवा दिया है. लेकिन 13 नंबर से ज़्यादातर नेता तौबा ही करते नज़र आते हैं. पूरे लुटियंस ज़ोन में 13 तालकटोरा के बाद ले-देकर एक 13, तुग़लक रोड बंगला ज़रूर मिलता है. लेकिन इसमें कोई नेता नहीं बल्कि न्यायधीश रहते हैं.

सबसे बेहतरीन उदाहरण कांग्रेस की तरफ़ से भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किए जा रहे राहुल गांधी का है. 2004 में सांसद बनने के बाद जब राहुल के लिए सुरक्षित सी जगह बंगले की तलाश शुरु हुई तो ये तलाश 13 तुग़लक लेन पर जाकर ख़त्म हुई. ये बंगला सुरक्षा के लिहाज़ से बहुत ही सही जगह पर है. लेकिन राहुल गांधी के सलाहकारों ने 13 नंबर को अशुभ मान कर इसे रिजेक्ट कर दिया. सुरक्षा एजेंसियों ने इसी बंगले पर ज़ोर दिया तो 13 के अपशकुन से बचने के लिए न्यूमरोलोजी का सहारा लिया गया.  लिहाज़ा बंगले का नाम 12 ए कर दिया.

लुटियंस ज़ोन में अशोक रोड, अकबर रोड, जनपथ, फिरोज़ शाह रोड वगैरह पर बंगलों के नंबर आमने सामने डाले गए हैं. मसलन एक तरफ़ 1, 3, 5, 7, 9, 11, 13 और 15 तो उनके सामने क्रमशः 2, 4, 6, 8. 10, 12, 14 और 16 नंबर हैं. अशोक रोड पर 13 नंबर बंगला भाजपा दफ़्तर के ठीक बग़ल में है. इसमें उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता भगत सिंह कोशियारी रहते हैं. लेकिन उन्होंने 13 नंबर के प्रकोप से बचने के लिए इसका नाम 11ए करा रखा है. इसी तरह अकबर रोड पर 13 नंबर बंगला नहीं है. 13 नंबर बंगले का एंट्री गेट तुग़लक रोड की तरफ रख कर इसका नाम 2 तुग़लक रोड कर दिया गया है. लुटियंस ज़ोन के क़ायदे से रामविलास पासवान के बंगले 12 जनपथ के सामने वाले बंगले का नंबर 13 जनपथ होना चाहिए. लेकिन इसका एंट्री गेट मौलाना आज़ाद रोड पर रख कर इसके नाम 1ए मैलाना आज़ाद रोड कर दिया गया है. फ़िरोज़ शाह रोड, सफ़दर जंग रोड, तीन मूर्ती रोड, कुशक रोड, राजाजी मार्ग, कृष्णा मेनन मार्ग और त्यागराज मार्ग पर 13 नंबर के बंगले हैं ही नहीं.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने 13 नंबर पर दांव ज़रूर खेला था लेकिन ये उन्हें रास नहीं आया. 13 मई 1996 मे उन्होंने पहली बार बतौर प्रधानमंत्री शपथ ली थी. लेकिन वो बहुमत साबित नहीं कर पाए. उन्हें 13 दिन बाद ही इस्तीफ़ा देना पड़ा. दोबारा प्रधानमंत्री बने तो 13 महीने बाद उनकी सरकार गिर गयी. तीसरी बार उन्होंने 13 अक्टूबर 1999 को बतौर प्रधानमंत्री शपथ ली. तब उनके कई क़रीबी नेताओं ने शपथ ग्रहण की तारीख बदलने पर ज़ोर दिया था लेकिन वाजपेयी नहीं माने. अगली बार उनकी सरकार ही नहीं लौटी. प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद वाजपेयी अपना लकी 7 नंबर का बंगला लेना चाहते थे. उन्हें 7 नंबर बंगला नहीं मिला तो उन्हें 6ए, कृष्णा मेनन मार्ग पर ही संतोष करना पड़ा.

मीडिया में प्रणव दा के लिए 13 नंबर के भग्यशाली साबित होने पर तो पन्ने भरे जा रहे हैं. लेकिन तस्वीर का दूसरा रुख सामने नहीं रखा जा रहा. अफ़सोस होता है कि हम वैज्ञानिक युग में हैं और आज भी कुछ नंबरों को अशुभ होने पर न सिर्फ़ यक़ीन रखते हैं बल्कि अंधविशवास की हदें पार करते हुए तक उससे बचने के लिए टोटके करने से भी नहीं चूकते. उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रणव दा के 13 के अशुभ होने का भ्रम तोड़ने के बाद बाक़ी नेता भी इससे सबक़ लेंगे और 13 नंबर को अशुभ मानना छोड़ इसे शुभ नहीं तो कम से कम एक सामान्य संख्या तो ज़रूर ही मानेंगे.

(लेखक जाने-माने पत्रकार हैं. उनसे उनके मोबाइल न. 9811512904 पर संपर्क किया जा सकता है.)

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