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चक्रव्यूह में घिरते हम और हमारा समाज

मोहम्मद आसिफ इकबाल

दुनिया में जब कोई बच्चा पैदा होता है तो उसके माता-पिता उसको ढ़ेर सारा प्यार करते हैं, जानने वाले बधाई देते हैं और लोग खुशियां मनाते हैं. पूरे घर में जश्न जैसा माहौल होता है. इस खुशी के मौक़ो से दावतें की जाती हैं. हालात यहां तक हैं कि कई लोग ऐसे हैं जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, फिर भी उनके जन्म-दिवस को बड़े धूम-धाम से सेलिब्रेट किया जाता है. लोगों में इतनी खुशियां होती हैं कि मानों अभी-अभी उन्होंने जन्म लिया हो. अब आप ही देखिएगा न कि ‘कृष्ण’ जी के जन्म की खुशी में लोग क्या तक नहीं करते…

लेकिन अब हमारे देश को क्या हो गया है? हमें तो खुश होना चाहिए कि हमारे देश में 87 वर्षीय नेजा जी के घर में एक जवान बेटा भगवान ने दिया है, लेकिन अफसोस कोई खुशी नहीं है. बेटे का बाप ही नाखुश दिख रहा है. और यह बेटा! बेटा जिसको भगवन का रूप भी कहा जाता है वह खुद ही को पिता का बेटा साबित करने के लिया DNA टेस्ट का सहारा लेता है.

हे भगवान! यह तेरी धरती पर क्या हो रहा है? बेटा DNA टेस्ट करवाता है और उच्च न्यायालय फैसला करता है. यह कैसा पिता, कैसा बेटा और कैसा देश है? यहां मर्यादाओं से खिलवाड़ हो रही है और लोग हैं कि खामोश बैठे हैं.

आखिर क्यूं ऐसा हो रहा है? यह तो भारत है और भारतीय समाज की मिसालें पूरी दुनिया में दी जाती हैं. फिर किया हो गया है इस भारत के भारतीय समाज को? कहीं यह भारतीय समाज पश्चिमी सभ्यता को तो इख़्तियार नहीं करने लगी है? अगर ऐसा ही है तो फिर हमारे देश की दुनिया के सामने किया पहचान बचेगी?

आज प्रश्न बहुत हैं जो हर तरफ बिखरे पड़े हैं. और हम और हमारा समाज इन प्रश्नों के चक्रव्यूह में घिरता जा रहा है, क्या हमें इस बात की ख़बर है?

(ये लेखक के अपने विचार हैं.)

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